
उरी हमले के बाद पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की उम्मीदों के बीच केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी के भीतर अलग-अलग सुर सुनाए दिए. मोदी सरकार और बीजेपी को लगता है कि ताजा चुनौती से निपटने के लिए अलग-अलग मोर्चे पर लड़ाई लड़नी चाहिए. ऐसा भी हो सकता है कि केंद्र की मौजूदा सरकार के पड़ोसी मुल्क से निपटने की रणनीति को लेकर आम राय नहीं है. जबकि आज अगर पीएम की कुर्सी पर इंदिरा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री होते तो उनके जवाब का तरीका शायद इस तरह का नहीं होता. आतंक को कुचलने के लिए पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाता. जैसे, 9/11 हमले के बाद अमेरिका में आतंकवाद के खिलाफ जंग को लेकर सरकार के बीच किसी तरह का कन्फ्यूजन नहीं था.
पीएम का पाकिस्तानी अवाम से संवाद
उरी हमले के 7वें दिन पीएम मोदी ने पाकिस्तान पर निशाना साधा. केरल के कोझीकोड में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दूसरे दिन पीएम अपने 32 मिनट के भाषण में 15 मिनट तक सिर्फ पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद पर बोले. इसमें एक नई बात यह थी कि उन्होंने पाकिस्तान के अवाम से संवाद करने की कोशिश की. गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी पर लंबे-चौड़े बयान दिए. जबकि इससे पहले ही पीएम मोदी नई दिल्ली में तीनों सेना प्रमुखों से मिले थे तो उम्मीद थी कि मोदी पाकिस्तान के खिलाफ कुछ सख्त बयान देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मोदी ने कहा कि 'पाकिस्तान की अवाम से कहना चाहता हूं कि आपकी सरकार आपको गुमराह करने के लिए हिन्दुस्तान से 1000 साल तक लड़ने की बात करती है. मैं लड़ने के लिए तैयार हूं. आओ लड़ते हैं... देखें अपने देश की गरीबी पहले कौन खत्म करता है? बेरोजगारी कौन खत्म करता है? देखें पहले कौन अशिक्षा से पार पाता है. आओ नवजात शिशुओं को बचाने की लड़ाई लड़ें.' पीएम ने पाकिस्तान के लोगों से सीधी बात कर उरी हमले पर उदार प्रतिक्रिया देने की कोशिश की. शायद वो यह दिखाना चाहते हों कि वो अन्य नेताओं से अलग हैं.
अमित शाह ने दिखाए तल्ख तेवर
कोझीकोड में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के तीसरे दिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पाकिस्तान को सख्त संदेश दिए. उन्होंने कहा, 'पड़ोसी ने हमारे ऊपर लंबी लड़ाई थोपी है लेकिन वह इसे परिणाम न समझे, उड़ी तो एक पड़ाव है, लड़ाई कितनी भी लंबी हो, विजय हमारी सेना की ही होगी.' यानी पाकिस्तान के खिलाफ जंग को लेकर पार्टी अध्यक्ष के तेवर तल्ख दिखे.
शाह ने पाकिस्तान को निशाना बनाते हुए और उसे घेरने के लिए मोदी सरकार के कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन भी किया. उन्होंने कहा कि पार्टी देश में व्याप्त गुस्से को महसूस करती है. शाह ने कहा, 'आतंकवाद किसी देश की सरकारी नीति का हिस्सा बन जाए तो वह युद्ध अपराध से कम नहीं होता है. पाकिस्तान में यही हो रहा है. बीजेपी साजिशकर्ताओं के खिलाफ जनता के आक्रोश को महसूस करती है. हम इसका करारा जवाब देंगे.' इस तरह शाह ने देश की जनता के बीच व्याप्त गुस्से को पार्टी की ओर से जगजाहिर किया.
सुषमा के जरिये डिप्लोमैटिक चाल
सोमवार शाम विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ओर से संयुक्त राष्ट्र में दिए जाने वाले बयान को लेकर भारत और पाकिस्तान के अवाम की निगाहें हैं. उम्मीद है कि सुषमा का बयान सरकार और पार्टी के रुख से थोड़ा हटकर होगा और वहां लड़ाई कूटनीतिक मोर्चे पर लड़ी जानी है.
उरी हमले के बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को इस हरकत के लिए जिम्मेदार नहीं होने की सफाई देता फिर रहा है. इसी क्रम में नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया था. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कश्मीर में मारे गए आतंकी बुरहान वानी को शांतिप्रिय बताया था. सुषमा की ओर से शरीफ के इस बयान का यूएन के मंच से ही करारा जवाब दिए जाने की उम्मीद है.
भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि भारत को जवाब देने का पूरा अधिकार है. पाकिस्तान को आतंकवाद पैदा करने वाला और आतंकवादी देश कहा जा सकता है. उसे आतंकवाद को हथियार की तरह प्रयोग कर युद्ध अपराध करने वाला करार दिया जा सकता है. यानी भारत वैश्विक मंच के जरिये पाकिस्तान को दुनियाभर में अलग-थलग करने की कूटनीति पर भी काम कर रहा है.
जब शास्त्री ने चटा दी थी धूल
उरी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते खराब हो रहे हैं. भारत सरकार हफ्ते भर बाद भी आतंकियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है. ऐसे में देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का समय देशवासियों के जेहन में ताजा हो जाता है. 51 साल पहले जब पाकिस्तान ने भारत की धरती पर कब्जे की सोची थी तो कैसे उस वक्त पीएम रहे शास्त्री ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी. शास्त्री को मजबूत इरादों और बड़े फैसलों के लिए आज भी दुनिया सलाम करती है.
साल 1965 के दौर में पड़ोसी मुल्क ने 3-3 बार सरहद लांघने की कोशिश की थी. पाकिस्तान की इस हरकत को शास्त्री ने दो बार नजरअंदाज करने की कोशिश की लेकिन तीसरी बार उनके सब्र ने जवाब दे दिया. उन्होंने जम्मू-कश्मीर ही नहीं, पंजाब से लेकर राजस्थान की सीमा पाकिस्तान में दाखिल होने की इजाजत भारतीय सेना को दे दी. कश्मीर पर कब्जे का ख्वाब देखने वाली पाकिस्तानी सेना के लिए लाहौर और सियालकोट बचाना मुश्किल हो गया. आखिरकार यूएन को दखल देना और सीजफायर का ऐलान किया गया.
जब इंदिरा ने तोड़ दी थी पाकिस्तान की कमर
उरी हमले के बाद पैदा हए इस नाजुक माहौल में लोग पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद कर रहे हैं जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी और उसे धूल चटाई.
1971 में एक बार ऐसा वक्त आया जब भारत के पूर्व में बसे पाकिस्तान के उस हिस्से में, जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है, ऐसा कुछ हो रहा था जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा था. उस वक्त अप्रैल में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बड़ी मीटिंग में देश के आर्मी चीफ से दो टूक कहा कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जंग करनी पड़े तो करें. उन्हें इसकी परवाह नहीं. दिसंबर आते-आते पाकिस्तान ने युद्ध का माहौल बना दिया और भारत के कुछ शहरों पर बमबारी करने की गलती कर दी.
हमले की खबर मिलते ही इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को जवाब देने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया. अगले दिन भारतीय फौज ने पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला बोल दिया. 10 दिनों के भीतर पाकिस्तानी फौज घुटने टेकने को मजबूर हो गई. भारत ने यह जंग तो जीती ही, इंदिरा ने बांग्लादेश को अलग देश के तौर पर मान्यता देने का ऐलान कर दिया.