
चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को लिखी चिट्ठी में सिफारिश की है कि जिन विधायकों या सांसदों के खिलाफ चुनाव में मतदाताओं को रिश्वत देने के मामले में आरोपपत्र दाखिल कर आरोप तय हो जाये तो उन्हें अयोग्य किये जाने का प्रावधान हो. आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक कानून मंत्रालय को भेजे पत्र में आयोग ने लिखा है कि इसके लिए जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 में संशोधन करके इस प्रावधान जोड़ा जाए.
जन प्रतिनिधित्व कानून के मौजूदा प्रावधान के मुताबिक जनप्रतिनिधि के खिलाफ संगीन अपराध साबित हो जाये और उसे सज़ा सुना दी जाए तब उसे पद से बर्खास्त कर सज़ा की मियाद पूरी होने और उसके 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी होती है . अदालत में तय होने वाले आरोपों में सज़ा कम से कम पांच साल तक की हो. आयोग की सिफारिश है कि पांच साल की बजाय एक साल की सज़ा होने पर भी जनप्रतिनिधि को बर्खास्त करने और चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई जाए. हालांकि रिश्वत देने के आरोपी जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग की इस सिफारिश को सरकार तीन बार ठंडे बस्ते में डाल चुकी है.
लॉ कमीशन का मानना है कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए ये प्रावधान काफी नहीं हैं. क्योंकि कानूनी मामलों लंबे वक्त चलने और बहुम कम मामलों में सजा सुनाई जाती है. लेकिन चुनाव आयोग चाहता है कि चुनाव में घूस और नाजायज दवाब पर भी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार दिया जाए. चुनाव आयोग का कहना है कि मतदाता को रिश्वत देना एक गंभीर अपराध है और इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए.
चुनाव आयोग की ये सिफारिश हाल के वर्षों में चुनाव में भ्रष्टाचार की शिकायतों के मद्देनजर आई है जहां कई जगह वोट के बदले नोट देने की शिकायतें मिली हैं. चुनाव आयुक्त नसीम जैदी पहले जनप्रतिनिधि कानून की धारा 58A में संशोधन करने की मांग कर चुके हैं जो बूथ कैप्चरिंग के मामले में चुनाव रद्द या स्थगित करने का समर्थन करता है. आयोग चाहता है कि अगर किसी चुनाव क्षेत्र में मतदाता को जनप्रतिनिधि से घूस दी जाती है तो कानून में धारा 58B को भी जोड़कर उस जनप्रतिनिधि के खिलाफ इसी तरह की कड़ी कार्रवाई की जाए.
हाल के मामले को देखें तो तमिननाडु की आरके नगर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की वोटिंग में मतदाताओं को पैसे बांटने के आरोप लगे थे. इसके बाद चुनाव आयोग ने वोटिंग रद्द कर दी थी. इसके बाद आयकर विभाग ने वी के शशिकला गुट के नेता टीटी दिनाकरन पर भी चुनाव में समर्थन पाने के लिए मतदाताओं को 90 करोड़ की रकम देने का आरोप लगाया है.