
मॉनसून सत्र की शुरुआत से कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी को लेटर लिखकर यह सुनिश्चित करने को कहा कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का बिल पास हो. यह बात सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है कि इसके जवाब में बीजेपी ने ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला पर कांग्रेस से समर्थन करने को कहा है.
बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के बीच इस पर बयानबाजी चल ही रही थी कि इस बीच तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद डेरेक ओ ब्रियन ने अपनी पार्टी की वाहवाही करते हुए ट्वीट किया, 'एक ऐसे पार्टी के कार्यकर्ता होने का गर्व है जिसकी पहले से ही लोकसभा में 33 फीसदी सांसद महिलाएं हैं.'
इंडिया टुडे-आजतक की फैक्ट चेक टीम ने यह जांचने की कोशिश की कि वास्तव में हमारे राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने के मामले में कितने गंभीर हैं. इसके लिए 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया.
मौजूदा 16वीं लोकसभा में सिर्फ 62 महिला सांसद हैं. कुल सांसदों का यह महज 11 फीसदी हिस्सा है. इस कम संख्या की एक वजह यह भी है कि देश में चुनाव लड़े कुल 8,251 उम्मीदवारों में से महज 668 महिला कैंडिडेट ही थीं.
इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल ही माने जा सकते हैं, जिन्होंने महिला उम्मीदवारों में बहुत कम भरोसा दिखाया है. इस मामले में सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही अपवाद हैं.
सत्तारूढ़ बीजेपी ने 2014 में 428 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिसमें से सिर्फ 38 महिला उम्मीदवार थीं. इस तरह पार्टी ने कुल महज 8.8 फीसदी महिलाओं को टिकट दिए थे. पार्टी को कुल 282 सीटों पर जीत मिली थी.
कांग्रेस को महज 44 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस ने अपने कुल 464 उम्मीदवारों में से सिर्फ 60 महिलाओं को टिकट दिए थे. इस तरह कांग्रेस में भी महिला उम्मीदवारों का हिस्सा भी महज 12.9 फीसदी था.
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने 439 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और इनमें महिला उम्मीदवारों का हिस्सा 13.4 फीसदी था. पार्टी ने 59 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए थे.
इस मामले में संतोषजनक रेकॉर्ड क्षेत्रीय दल तृणमूल कांग्रेस का ही रहा है. ममता बनर्जी के नेृतृत्व वाली इस पार्टी ने 45 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इसमें महिलाओं की संख्या 15 थी. यानी उसने मांग के मुताबिक 33 फीसदी सीटों पर महिला उम्मीदवार खड़े किए थे.
इस मामले में दो महिला नेताओं मायावती के बसपा और जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों का रेकॉर्ड खराब ही रहा. AIADMK ने सिर्फ 10 फीसदी महिला कैंडिडेट उतारे थे, जबकि बसपा ने तो सिर्फ 5.3 फीसदी महिलाओं को टिकट दिए थे.