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अभी नहीं पांच साल बाद लेते नोटबंदी का फैसला, आम लोगों को नहीं होती परेशानी

कुल मिलाकर एक बात साफ है कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी के इस फैसले को जारी करने में जल्दबाजी दिखा दी और अब पूरा मामला उसके लिए बड़ा सिर दर्द बन चुका है.

कैश के लिए लाइन में खड़े लोग कैश के लिए लाइन में खड़े लोग
अंजलि कर्मकार
  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:51 PM IST

केंद्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला क्या लिया कि पूरा का पूरा देश करेंसी संकट में फंस गया है. देशभर में एटीएम खाली पड़े हैं तो बैंकों और पोस्ट ऑफिसों के बाहर लंबी-लंबी कतारें हैं. नौबत यहां तक आ चुकी है कि अब देशभर में सरकारी और प्राइवेट पेट्रोल पंपों का सहारा लिया जा रहा है, जिससे आम जनता को करेंसी के संकट से बाहर निकाला जा सके.

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सरकार में अफरा-तफरी का आलम ये है कि सुबह रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय बैंक से पैसा वितरण के लिए उंगली में स्याही लगाने का आदेश देते हैं तो अगले दिन की सुबह इस फैसले को वापस ले लेते हैं. एटीएम और बैंक से निकासी कि कीमत को कभी बढ़ा दिया जाता है, तो अगले 24 घंटों में एक बार फिर कीमत कम कर दी जाती है.

कुल मिलाकर एक बात साफ है कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी के इस फैसले को जारी करने में जल्दबाजी दिखा दी और अब पूरा मामला उसके लिए बड़ा सिर दर्द बन चुका है.

आखिर क्यों सरकार को इस फैसले को लेने के लिए सही वक्त का इंतजार करना था?

1. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2.6 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं और 70 करोड़ डेबिट कार्ड हैं. बैंक के मुताबिक, देश में कैशलेस बैंकिग के ये इंन्सट्रूमेंट सीमत जनसंख्या के पास ही उपलब्ध है. मतलब एक व्यक्ति के पास दो-तीन से अधिक कार्ड मौजूद है. जिससे देश की 125 करोड़ की जनसंख्या में बड़ी तादाद ऐसी है, जो इन तरीकों से बैंकिग का फायदा नहीं उठा सकती.

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2. देश में भुगतान करने के तीन तरीके हैं. पहला, आप ऑनलाइन बैंकिग के जरिए पेमेंट कर सकते हैं. दूसरा, आप किसी एटीएम से पैसे निकालकर भुगतान कर सकते हैं. और तीसरा आप अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए दुकान, पेट्रोल पंप जैसी जगहों पर स्वाइप मशीन की मदद से भुगतान कर सकते हैं. लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि इन सभी माध्यम से भुगतान करने के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी पूरे देश में उपलब्ध नहीं है. देश में एटीएम डेनसिटी बेहद खराब है. ग्रामीण इलाकों से एटीएम सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर है. बैंकिग की हालत उससे भी खराब है. वहीं स्वाइप मशीन अभी भी शहरों की सीमित दुकानों में पाया जाता है. ऐसे में पूरा देश सिर्फ कैश ट्रांजैक्शन के भरोसे था जब यह फैसला लिया गया.

3. केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया के लिए देशव्यापी कार्यक्रम को 2015 में लॉन्च किया था. इस कार्यक्रम के जरिए देश में डिजिटल लिटरेसी को 100 फीसदी तक बढ़ाने की कवायद हो रही है. मौजूदा समय में देश के गांवों को छोड़िए अभी सभी शहरों को इंटरनेट से जोड़ने का काम पूरा नहीं किया जा सका है. सरकार के वीजन डॉक्यूमेंट के मुताबिक, पूरे देश में इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने में अभी 5 साल का वक्त है. वहीं मोबाइल पेनीट्रेशन के जरिए गांवों तक पहुंचने के काम में भी दिकक्तों का सामना करना पड़ रहा है. स्मार्टफोन देश में नया है और इसे सभी तक पहुंचाने के काम में मोबाइल कंपनियों के भी पांच साल का समय लगेगा.

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ऐसे में, सरकार को यह सोचने की जरूरत थी कि पहले देश में गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंचाए और देश की ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या को डिजिटल लिट्रेट बनाए. नोटबंदी का यह आदेश अगर इन बातों का ध्यान रख कर दिया जाता और इसे पारित करने के लिए पहले देश को तैयार कर दिया गया होता तो आम आदमी को आज इतनी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता. अब भले ही सरकार की यह कवायद देश के हित में हो, काले धन पर एक झटके में लगाम लगाने के लिए हो, इसे पारित करने में वक्त का ध्यान रखा गया होता तो आम आदमी को आज कतार में खड़ा नहीं होना पड़ता.

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