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बीजेपी के लिए चुनौती हार्दिक पटेल नहीं सौराष्ट्र है, क्या मना पाए मोदी?

दो दिन पहले नरेंद्र मोदी ने सूरत में रोड शो कर तूफानी आगाज भी कर दिया है. दो साल से राज्य में पटेल आंदोलन चर्चा में हैं, हार्दिक पटेल ने आरक्षण की मांग की और वे पटेल समुदाय की आवाज बन गए....

मोदी के लिए सौराष्ट्र से वोट बटोरना सबसे बड़ी चुनौती मोदी के लिए सौराष्ट्र से वोट बटोरना सबसे बड़ी चुनौती
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 2:24 PM IST

गुजरात चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. 2017 के अंत तक वोट डाले जा सकते हैं. उत्तर प्रदेश में लड़ाई जीत चुकी बीजेपी अब पीएम के गढ़ बचाने की कोशिश में लग गई है. दो दिन पहले नरेंद्र मोदी ने सूरत में रोड शो कर तूफानी आगाज भी कर दिया है. दो साल से राज्य में पटेल आंदोलन चर्चा में हैं, हार्दिक पटेल ने आरक्षण की मांग की और वे पटेल समुदाय की आवाज बन गए. लेकिन बीजेपी के लिए अब चुनौती हार्दिक नहीं बल्कि सौराष्ट्र है. सौराष्ट्र यानी पटेल समुदाय.

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क्योंकि सौराष्ट्र के बारे में कहा जाता है कि यहां सड़कें और यहां का कारोबार पूरे राज्य को गति प्रदान तो करता है लेकिन जब बात राजनीति की हो तो अच्छे-अच्छे धुरंधर की रफ्तार पर ब्रेक भी लगा है.

- गुजरात की कुल आबादी 6 करोड़ 27 लाख है. इसमें पटेल-पाटीदार लोगों की तादाद 20 फीसदी है. लंबे समय से यह समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है. ये लोग खुद को ओबीसी कैटेगरी में शामिल कराना चाहते हैं, ताकि कॉलेजों और नौकरियों में कोटा मिल सके. राज्य में अभी ओबीसी रिजर्वेशन 27 फीसदी है.

- गुजरात की कुल 182 विधानसभा सीटों में 54 सीटें सौराष्ट्र क्षेत्र से आती हैं. यह क्षेत्र राज्य में पटेल-पाटीदारों के प्रभुत्व का है. फौरी राजनीतिक आंकलन है कि इस क्षेत्र में कम से कम 30 विधानसभा सीटों पर यह समुदाय किसी को भी चुनाव हराने और जिताने का फैसला करता है.

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-ये सौराष्ट्र का दम ही था कि 1990 के दशक में बीजेपी ने कांग्रेस सरकारों का सिलसिला खत्म कर राज्य में पहली बार 1995 में बीजेपी की सरकार बनवाई और केशुभाई पटेल राज्य के मुख्यमंत्री बने. हालांकि जल्द ही वह आरएसएस के करीबी शंकरसिंह वघेला से विवादों में उलझे और नतीजा सौराष्ट्र ने उनकी रफ्तार को पूरी तरह से थाम लिया. जबकि माना जाता है कि सौराष्ट्र में बीजेपी की साख बनाने का काम खुद केशूभाई पटेल ने किया था और वही इस पूरे क्षेत्र में पटेल वोट बैंक को बीजेपी के पक्ष में लाने के लिए जिम्मेदार थे.

- नरेन्द्र मोदी के सीएम कार्यकाल के दौरान सौराष्ट्र लगातार नरेन्द्र मोदी के पक्ष में रहा. यह केशूभाई पटेल की बीजेपी को वोट न देने की तमाम अपील के बावजूद हुआ था. पटेल-पाटीदार समुदाय को नरेन्द्र मोदी से लगातार उम्मीद थी कि वह मजबूत हुए तो पटेलों की मांग को पूरा करने का फैसला ले सकते हैं. इस विश्वास के चलते ही एक दशक से लंबे समय तक मोदी सौराष्ट्र में सबसे ताकतवर पोस्टर बॉय रहे जिसे उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद हार्दिक पटेल के जरिए बदलने की कोशिश की जा रही है.

-गौरतलब है कि राज्य में सौराष्ट्र की 52 सीटें किसी भी पार्टी को न सिर्फ जादुई आंकड़े के पार पहुंचाने के लिए पर्याप्त रहती है बल्कि जादुई आंकड़ा पार करने वाली पार्टी को 150 सीटों से ज्यादा का स्तर पार करने के लिए भी बेहद अहम रहती है. नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के दौरान इस क्षेत्र से पटेल-पाटीदार बीजेपी के वोट बैंक जरूर रहे लेकिन आरक्षण पर फैसला लेने लायक विधानसभा में 150 प्लस का आंकड़ा वह नहीं छू सके.

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