
जम्मू और कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर से रखी गई एकतरफा सीजफायर की मांग को जहां केंद्र से हरी झंडी मिलने के आसार ना के बराबर है, वहीं सूत्रों के मुताबिक सुरक्षाबलों की लीडरशिप भी इस तरह का कोई कदम उठाने के हक में नहीं है.
महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा था कि मई के मध्य में रमजान शुरू होने से लेकर अगस्त में अमरनाथ यात्रा संपन्न होने तक केंद्र को एकतरफा सीजफायर पर विचार करना चाहिए. महबूबा की इस मांग से जम्मू-कश्मीर सरकार में सहयोगी पार्टी बीजेपी ही इत्तेफाक नहीं रखती.
दरअसल, घाटी में पत्थरबाज़ों के हमले में कभी सैलानी की जान चली जाती है तो कभी बस पर स्कूली बच्चों को निशाना बनाया जाता है. सेना के ऑपरेशन्स में भी आए दिन पत्थरबाज़ बाधा डालते रहते हैं. सेना ने घाटी में आतंकियों के खिलाफ बड़ा अभियान चला रखा है. सेना के पराक्रम के आगे आतंकियों के हौसले पस्त हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर से एकतरफा सीजफायर की मांग किए जाना ना तो केंद्र के गले उतर रहा है और ना ही सुरक्षा प्रतिष्ठानों के.
राम माधव ने सीजफायर शब्द पर जताई आपत्ति
बीजेपी के महासचिव राम माधव का कहना है कि केंद्र की ओर से दिनेश्वर शर्मा को पहले से ही जम्मू और कश्मीर में इच्छुक पक्षों से बात करने के लिए नियुक्त किया हुआ है. राम माधव ने साथ ही साफ किया कि जहां तक आतंकवादियों का सवाल है तो हमें उनसे सख्ती से निपटना चाहिए. उनके मुताबिक भारत सरकार को अभी तक कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है. राम माधव ने सीजफायर शब्द पर आपत्ति जताई है.
राम माधव ने कहा, ‘हमें ऐसी स्थिति में सीजफायर जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. राम माधव ने कहा, अगर आतंकवादी रमजान में अपनी गतिविधियों से दूर रहते हैं, अगर आतंकवाद रुकता है तो सुरक्षाबलों के ऑपरेशन अपने आप बंद हो जाएंगे. सुरक्षाबलों की ड्यूटी है कि वे लोगों की सुरक्षा करें.’ बता दें कि महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक में एकतरफा सीजफायर की मांग की थी.
गृह मंत्रालय को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला : राजनाथ
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अभी तक उनके मंत्रालय को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला है, लेकिन वे इस मुद्दे को जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के सामने उठाएंगे. बीजेपी की जम्मू और कश्मीर यूनिट ने महबूबा मुफ्ती की मांग को ‘विवेक से परे’ बताया है.
आतंक विरोधी ऑपरेशन स्थगित करने के हक़ में नहीं सुरक्षा बलइस बीच, जम्मू और कश्मीर सरकार के अधिकारियों का कहना है कि लिखित प्रस्ताव की संभावना कम ही है क्योंकि ये पहल राजनीतिक स्तर पर की गई. सूत्रों के मुताबिक सुरक्षाबलों की लीडरशिप भी महबूबा मुफ्ती की मांग माने जाने के हक में नहीं है. सूत्रों ने बताया कि सेना या सुरक्षा प्रतिष्ठान किसी भी सीजफायर के पक्ष में नहीं हैं. और ना ही वे आतंकवादियों के खिलाफ आपरेशन को स्थगित करने के पक्ष में है.
सीजफायर से आतंकियों को सिर उठाने का मिलेगा मौका
सूत्रों का कहना है कि घाटी में लश्कर-ए-तैयबा , जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आंतकवादी संगठन इस वक्त बिना किसी प्रभावी लीडरशिप के हैं और भारी दबाव में हैं. एलओसी के पास सुरक्षाबलों के लगातार ऑपरेशन और प्रो-एक्टिव स्टैंड ने घाटी में आतंकी संगठनों की कमर तोड़ कर रख दी है. इन आतंकी संगठनों के बचे खुचे सरगना भी इधर उधर भागते फिर रहे हैं.
सूत्रों का ये भी कहना है कि स्थानीय नागरिकों की ओर से भी आतंकवादियों के मूवमेंट के बारे लगातार सूचनाएं मिलती रहती हैं. इससे पता चलता है कि घाटी के आम लोग आतंकवाद और हिंसा से तंग आ चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक अगर इस वक्त सुरक्षाबलों के ऑपरेशन को स्थगित करने या सीजफायर जैसा कोई कदम उठाया जाता है तो इससे आतंकी संगठनों को ही फायदा मिलेगा.
सूत्रों की ओर से 2016 की घटनाओं का भी हवाला दिया जाता है. तब हिजबुल मुजाहिदीन के आंतकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. तब फोकस आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन्स से हटा कर लॉ एंड ऑर्डर की ड्यूटी की ओर मोड़ना पड़ा था. इससे आतंकी संगठनों को दोबारा सिर उठाने का मौका मिला था. इसके बाद सुरक्षा बलों को दोबारा स्थिति पर काबू पाने में कई महीने का समय लगा था.
सूत्र ये भी कहते हैं कि महबूबा मुफ्ती ने सीजफायर की मांग की है, लेकिन इसके शर्तों आदि के बारे में और कुछ साफ नहीं किया है. बड़ी राजनीतिक पहल के बिना सीजफायर से जम्मू कश्मीर की स्थिति में फर्क नहीं आएगा.
अच्छा नहीं रहा अनुभव
सूत्र ये भी कहते हैं कि घाटी में अतीत में ऑपरेशन को स्थगित करने या सीजफायर के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते समय सीजफायर या ‘कॉम्बेट ऑपरेशन्स की पहल नहीं’ (NICO) का फैसला लिया गया था. सेना और सुरक्षा बलों की ओर से ये दिसंबर 1999 से मार्च 2000 तक लागू रहा था. उस वक्त भी सेना को हटाया नहीं गया था, सिर्फ घेराबंदी और सर्च ऑपरेशन को स्थगित किया गया था. लेकिन वो पहल नाकाम रही क्योंकि आतंकियों ने श्रीनगर एयरपोर्ट समेत कई जगह हमलों को अंजाम दिया था.
हर महीने औसतन 48 लड़के होते हैं आतंकी संगठनों में शामिल
सूत्रों ने आंकड़ों के साथ घाटी में आतंकवाद की स्थिति को बताया. सूत्रों के मुताबिक 2018 शुरू होने के बाद से औसतन हर महीने 48 स्थानीय लड़के आतंकी संगठनों में शामिल होते रहते हैं. इसके अलावा 22 स्थानीय लड़के लापता है. उनके भी आतंकी संगठनों में शामिल होने की आशंका है. सुरक्षाबल उन्हें वापस मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से तलाश कर रहे हैं. लेकिन उन्हें मुख्यधारा में तभी लिया जाएगा जब उन्होंने किसी आतंकी गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया होगा.
सूत्रों ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक 70 विदेशी आतंकवादी अब घाटी में छुपे हुए हैं. आतंकी संगठनों में जिन नए लड़कों को शामिल किया गया है, वो प्रशिक्षित नहीं हैं. इसलिए सुरक्षा बलों को उन पर काबू पाने में अधिक दिक्कत नहीं आती. अगर सुरक्षा बलों के ऑपरेशन्स स्थगित किए जाते हैं तो आतंकियों को दोबारा एकजुट होने और संगठित होने का मौका मिलेगा. सुरक्षा बल इन दिनों रियाज निक्कू, जीनत उल इस्लाम और कुछ अन्य आतंकियों की तलाश में हैं और जल्दी ही उन तक पहुंच सकते हैं. ऐसे में सुरक्षा बलों का ऑपरेशन स्थगित करने से इस अभियान पर असर पड़ सकता है.