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लद्दाख में जारी तनाव के बीच उत्तराखंड सीमा पर भी सेना सतर्क, सड़क निर्माण का काम तेज

भारत और चीन के बीच जारी तनाव को बातचीत से सुलझाने की कोशिश हो रही है. लद्दाख मसले पर बीते दिनों अधिकारियों के बीच चर्चा हुई जो आगे भी जारी रहेगी.

सांकेतिक तस्वीर (फोटो: PTI) सांकेतिक तस्वीर (फोटो: PTI)
मंजीत नेगी
  • नेलांग घाटी ,
  • 04 जून 2020,
  • अपडेटेड 1:50 PM IST

  • लद्दाख में जारी है भारत-चीन के बीच तनाव
  • उत्तराखंड सीमा के पास भी बढ़ाई गई चौकसी

भारत और चीन के बीच लद्दाख में इन दिनों तनाव जारी है. पिछले एक महीने से दोनों देशों की सेनाएं यहां आमने-सामने हैं. इस मसले को बातचीत से हल करने पर काम जारी है. लेकिन चीन का सामना करने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह से मुस्तैद है. सिर्फ लद्दाख सीमा ही नहीं बल्कि उत्तराखंड की सीमा के पास भी भारत ने अपनी मुस्तैदी बढ़ा दी है. इसके साथ ही सड़क और पुल निर्माण के काम में तेजी लाई गई है.

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भारतीय सेना उत्तराखंड में भी चीन से लगने वाली सीमा पर नजर रख रही है. 1962 में उत्तराखंड की नेलांग घाटी में भारत-चीन के बीच भिड़ंत हुई थी.

यहां करीब 8000 फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सरहद के आखिरी गांव में ही 1962 की लड़ाई हुई थी. यहां नेलांग घाटी में भारत-चीन सीमा पर स्थित आखिरी गांव में युद्ध के निशान बाकी हैं. इस बार भी खबर है कि चीन ने अपनी दो हवाई पट्टियों पर लड़ाकू विमान तैनात कर दिए हैं लेकिन भारत ने भी चीन से निपटने की तैयार कर ली है.

ये भी पढ़ें: चीन ने कहा- तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं, बातचीत से निपटाएंगे भारत से विवाद

लद्दाख में चीन के साथ बढ़ते विवाद के बीच उत्तराखंड में चीन से लगने वाले भारत के सरहदी इलाकों में भी तनाव बढ़ गया है. भारतीय सेना ने इन इलाकों में भी अपनी तैयारी बढ़ा दी है. खास तौर पर इस वजह से क्योंकि 1962 के युद्ध में चीन ने इन इलाकों को भी निशाना बनाया था.

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यहां हर्षिल शहर के पास नेलांग घाटी की तरफ बढ़ने के दौरान रास्ते में सड़क बनाने का काम तेजी से चलता नजर आया. वहीं सेना के ट्रक और ITBP की बसों में सरहदी इलाकों की ओर जाते जवान नज़र आए. इस इलाके में चीन ने अब तक कोई हरकत नहीं की है लेकिन सेना पूरी तरह से सतर्क है.

वहीं चीन से मुकाबले में पुलों और सड़कों का जाल बिछाना काफी अहमियत रखता है. दरअसल, इनके जरिए ही भारतीय सेना के जवान और उनका साजो-सामान जल्द से जल्द सरहद तक पहुंचता है. इन्हीं रास्तों पर चलते हुए आगे जाकर चीन सीमा से सटा गांव बगोरी पड़ता है.

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इस इलाके में सेना और ITBP की मौजूदगी है. इन इलाकों में अब भी 1962 युद्ध के समय बने पुल मौजूद हैं. लेकिन सेना के भारी-भरकम टैंकों और तोपों को ले जाने के लिए मजबूत पुलों का निर्माण किया जा रहा है. दरअसल, बगोरी गांव नेलांग घाटी में भारत-चीन सीमा का आखिरी गांव है. 1962 युद्ध के दौरान इससे आगे के गांव उजड़ गए, भारतीय सेना ने उन्हें वहां से हट जाने को कहा और अब वो बगोरी में आकर बस गए हैं.

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यहां ज़्यादातर लोग तिब्बत की भूटिया जाति से ताल्लुक रखते हैं, इनमें हिंदू और बौद्ध दोनों हैं. इनमें से कई लोग हैं जिन्होंने 1962 की लड़ाई देखी थी. इस बार उन्हें चीन की किसी हरकत की खबर नहीं लेकिन यहां के कई लोग ये मानते हैं कि चीन के मुकाबले हमारी तरफ सड़क-पुल बनाने में और तेजी लाने की जरूरत है.

इस इलाके में भारत-चीन की तैयारियों की बात करें तो चीन ने अपने इलाके के थोलिंग मठ और सारंग में हवाई पट्टी बनाई है जहां उसके लड़ाकू विमान मौजूद हैं.

दूसरी तरफ भारत ने फॉरवर्ड पोस्ट तक जाने के लिए चौड़ी सड़कों का निर्माण तेज कर दिया है. चीन ने अपने इलाके में सड़क और पुल बनाए हैं तो भारत ने भी अपने फॉरवर्ड पोस्ट को पुलों से जोड़ रखा है. इनके जरिए अब नेलांग घाटी में सेना के जवान पहुंच रहे हैं, चीन की सरहद के करीब भारतीय सेना में हलचल दिखाई पड़ रही है.

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