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बूचड़खाने पर बैन का असली फायदा पाकिस्तान और बांग्लादेश को!

उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई का असर पश्चिम बंगाल में मीट प्रोसेसिंग और लेदर इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल में बीफ विक्रेता सप्लाई के लिए अधिकतर पंजाब, हरियाणा, झारखंड और उत्तर प्रदेश पर निर्भर रहते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
खुशदीप सहगल/इंद्रजीत कुंडू
  • कोलकाता,
  • 01 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 10:55 AM IST

उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई का असर पश्चिम बंगाल में मीट प्रोसेसिंग और लेदर इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल में बीफ विक्रेता सप्लाई के लिए अधिकतर पंजाब, हरियाणा, झारखंड और उत्तर प्रदेश पर निर्भर रहते हैं. इनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा स्थिति की वजह से कच्चे माल की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. लेदर इंडस्ट्री को ये भी आशंका है कि यही हालात रहे तो लेदर बिजनेस में भारत से बांग्लादेश और पाकिस्तान आगे निकल जाएंगे.

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कलकत्ता बीफ डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद अली का कहना है, उत्तर प्रदेश में हमारे डीलर आम तौर पर पशुओं को ट्रक पर चढ़ा कर बंगाल भेजते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस तरह की स्थिति है, उसे देखकर वो डरे हुए हैं. इसके चलते आपूर्ति आधी रह गई है.

अली के मुताबिक उनकी यूनिट्स में हर दिन करीब 400 पशुओं को प्रोसेस किया जाता है लेकिन अब ये संख्या घटकर 150-160 रह गई है. देश में बंगाल और केरल ही ऐसे राज्य हैं जहां गोवध की कानूनी इजाजत है. यहां लाइवस्टाक को उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों से लाया जाता है. अली ने कहा, अगर आपूर्ति ऐसे ही बाधित रही तो मीट के दाम जल्दी ही आसमान छूने लगेंगे. मांग और आपूर्ति में अंतर बढ़ने से ऐसा होगा.

पश्चिम बंगाल के बीफ डीलर्स की इस मुद्दे पर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने की योजना है जिससे कि उनसे स्थिति को सामान्य करने के लिए दखल देने की मांग की जा सके.

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पश्चिम बंगाल में लेदर इंडस्ट्री को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कोलकाता को लेदर उत्पादों का केंद्र माना जाता है. देश से जितना भी लेदर निर्यात होता है उसमें से 50 फीसदी कोलकाता से होता है. कोलकाता में करीब 350 टैनरीज हैं जो देश में टैनिंग के 25 फीसदी हिस्से को पूरा करती हैं. आपूर्ति घटने का मतलब है इंडस्ट्री को कच्चा माल कम मिलेगा. मीट की प्रोसेसिंग और रिटेल खपत की पैकेजिंग पूरी होने के बाद खाल को कच्चे माल के तौर पर टैनरीज को बेचा जाता है.

कलकत्ता लेदर कॉम्पलेक्स टैनर्स एसोसिएशन से जुड़े विनय सिंह करते हैं, 'हम चिंतित है कि हम विदेशी खरीदारों के ऑर्डर्स कैसे पूरा करेंगे जिसके लिए हम बहुत पहले ही प्रतिबद्धता जता चुके हैं. अगर हम डेडलाइन को पूरा नहीं कर सके तो हमें पेनल्टी देनी होगी.'

सिंह ने बताया, 'अमूमन कच्चे माल के 15-20 ट्रक उत्तर प्रदेश से रोज आते हैं जो अब घट कर 5-6 रह गए हैं. कलकत्ता लेदर कॉम्पलेक्स जिसे क्षेत्र का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है, यहां उत्पादन तेजी से घटा है.'

बंगाल को कच्चे माल की 50 फीसदी आपूर्ति उत्तर प्रदेश और झारखंड से होती है. लेदर निर्माता चिंतित है कि किस तरह वो आपूर्ति को सामान्य बनाए रख पाएंगे. अगर यही हालात आगे भी रहे तो उन्हें आशंका है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को लाभ होगा. अगर भारतीय निर्माताओं को विदेश से ऊंची कीमत पर कच्चा माल मंगाना पड़ा तो अंतरर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बने रहना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा.

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कोलकाता से अग्रणी लेदर निर्यातक जिया नफीस का कहना है, 'हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया की बात करते हैं. फिलहाल ये 12 अरब रुपए का उद्योग है. हमारा लक्ष्य 24 अरब का है. लेकिन ये कैसे हासिल होगा अगर आपूर्ति बाधित रहेगी.'

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