
राज्यसभा चुनाव में वोट को लेकर खरीद-फरोख्त की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है. वोट के लिए पैसा मांगते कर्नाटक के जेडीएस विधायक मल्लिकार्जुन खुबा और निर्दलीय वर्थुर प्रकाश कैमरे में कैद हुए. 'आज तक' पर खुलासे के बाद राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया है. वहीं चुनाव आयोग ने पूरे मामले पर संज्ञान लिया है. कर्नाटक के मुख्य चुनाव अधिकारी से पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी जा सकती है. इस बीच आयोग के अधिकारियों के बीच एक अहम बैठक हुई. आयोग रॉ फुटेज मंगा कर जांच करा सकता है.
जेडीएस के विधायक कैमरे में कैद
दरअसल राज्यसभा सदस्यों के चुनाव से पहले एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस के विधायक मल्लिकार्जुन खूबा, राम, बी आर पाटील और वर्थुर प्रकाश क्रॉस वोटिंग के लिए बिकने को तैयार हैं. यानी इनको मालामाल कीजिए और राज्यसभा सदस्य बन जाइए. आजतक के स्टिंग आपरेशन में अगर कर्नाटक के विधायक बिकने को तैयार हैं तो बाकी राज्यों में ऐसा नहीं होगा, ऐसा दावा कोई कर नहीं सकता. कर्नाटक की चार राज्यसभा सीटों के लिए 11 जून को चुनाव है. कांग्रेस ने ऑस्कर फर्नांडीस, जयराम रमेश और पूर्व आईपीएएस के सी रमामूर्ति को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने निर्मला सीतारमण को कर्नाटक से राज्यसभा में भेजना तय किया है. इसके अलावा रियल एस्टेट कारोबारी बी एम फारुक जेडीएस के प्रत्याशी हैं.
पर्दे के पीछे से होती है डील
लेकिन जेडीएस के विधायक जिस तरह से बिकने को तैयार हैं तो उसका सीधा गणित यह है कि हर उम्मीदवार को जीतने के लिए तय 45 वोट चाहिए. 224 विधायकों वालों विधानसभा में 124 विधायकों के साथ कांग्रेस ऑस्कर फर्नाडीस और जयराम रमेश को आसानी से जीता देगी. बीजेपी के 46 विधायक हैं तो निर्मला सीतारमण को भी दिक्कत नहीं होगी. लेकिन लड़ाई कांग्रेस के रामामूर्ति और जेडीएस के फारुक के बीच होगी. बहरहाल कोई जीते कोई हारे लेकिन सच यही है कि कई विधायक बिकने को तैयार हैं. यानी राज्यसभा सदस्य बनने के लिए कैसे करोड़ों लुटाकर बड़े-बड़े उद्योगपति पहुंचते रहे हैं या पैसे देकर क्रॉस वोटिंग होती है. इन आरोपों से अब कोई इंकार नहीं सकता.
खरीद-फरोख्त का इतिहास पुराना
कर्नाटक की सीट से राज्यसभा में पहुंचने की जो लड़ाई 11 जून को लड़ी जाएगी, वह लड़ाई 6 साल पहले भी इसी तरह से लड़ी गई थी. अंतर सिर्फ इतना है कि इसबार अरबपति उद्योगपति फारुक जेडीएस और कांग्रेस के रामामूर्ति में से कोई एक ही चुना जाएगा. 6 बरस पहले 2010 में कांग्रेस के टीवी मथूरी के खिलाफ अरबपति विजय माल्या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे थे. तब जेडीएस और बीजेपी ने विजय माल्या का साथ दिया और मथूरी हार गए. लेकिन विजय माल्या तो ऐसे खिलाड़ी रहे जो 2002 में राज्यसभा पहुंचे तो कांग्रेस के समर्थन से और 2010 में राज्यसभा में धमाकेदार वापसी की तो एक-दूसरे के धुर-विरोधी जेडीएस और बीजेपी ने उन्हें समर्थन दे डाला. खुद माल्या दोनों बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही उतरे थे. पैसे की ठसक देखिए कि माल्या को 2002 में जीतने के लिए सिर्फ 45 वोट चाहिए थे लेकिन 51 वोट मिले और यही हाल 2010 में भी रहा. हालांकि अब राज्यसभा ने उनपर दबाव बनाकर इस्तीफा जरूर ले लिया. लेकिन वो नीति नहीं बना पाई जिससे कोई माल्या फिर राज्यसभा न पहुंच पाए. इसी का नतीजा है कि विधायक बिकने को तैयार बैठे हैं तो खरीदार खरीदने को.
पैसों के बल पर राजनीतिक चमक
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2015 में राज्यसभा के कुल 241 सदस्यों में से 124 सदस्यों की पहचान राजनीति से ज्यादा धंधों से जुड़ी थी. 74 सांसद या तो कंपनियों या कॉरपोरेट के मालिक थे, या फिर कंपनियों को संभालने वाले. 22 सांसद कंपनियों के डायरेक्टर पद पर थे. 28 सांसद कंपनियों से वेतन लेते थे या कभी-कभी कंपनियों को संभालते थे. यानी राज्यसभा के कई सांसदों का राजनीति से सिर्फ इतना ही लेना-देना है कि राजनीतिक दलों का दामन पकड़कर अपने धंधों को फलने-फूलने देने के लिए संसद पहुंच गए. संसद सदस्य बनते ही सारे अपराध भी ढक गए और विशेषाधिकार भी मिल गए. यानी नोट के बदले कैसे राज्यसभा को ही धंधे के लाभ में बदला जा सकता है, उसका खुला नजारा नीतियों के जरिये ही उभरता है. इसी कड़ी में विजय माल्या एविएशन के धंधे में होते हुए एविएशन पर स्थायी समिति के सदस्य बन गए.
कई राज्यसभा सांसद बड़े कारोबारी
कर्नाटक की तर्ज पर राज्यसभा पहुंचने वाले सांसदों के लिए संविधान की शपथ लेने का मतलब क्या है? यह भी अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बनने वाली संसद की स्टैंडिंग कमेटी के जरिये समझा जा सकता है. मसलन फाइनेंस की स्टैंडिंग कमेटी के कुल 61 सदस्यों में 19 सदस्य ऐसे हैं जिनके अपने फाइनेंस पर संकट गहरा सकता है. इसी तर्ज पर कंपनी अफेयर की स्टैंडिंग कमेटी में राज्यसभा के 6 सांसद ऐसे हैं जो कई कंपनियों के मालिक हैं. इसी तरह हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन की स्टैंडिंग कमेटी में 3 सांसद ऐसे हैं, जिनके या तो अस्पताल हैं या फिर मेडिकल शिक्षा संस्थान है.