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अयोध्या फैसला: पूर्व जस्टिस एके गांगुली बोले- अल्पसंख्यकों के साथ गलत हुआ

जस्टिस गांगुली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये संवैधानिक कर्तव्य है कि वो सभी के अधिकारों की रक्षा करे. इसमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "इस देश के लोग क्या देखेंगे...यहां एक मस्जिद थी, जिसे 1992 में तोड़ दिया गया...उस जमीन पर कोर्ट एक मंदिर बनाने की इजाजत दे रही है.

जस्टिस एके गांगुली ( India Today Archive) जस्टिस एके गांगुली ( India Today Archive)
मनोज्ञा लोइवाल
  • कोलकाता,
  • 10 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:20 PM IST

  • अयोध्या फैसले पर जस्टिस गांगुली के सवाल
  • 'मुसलमानों के साथ गलत हुआ है'
  • 'संविधान का छात्र होने के नाते फैसला समझ नहीं पा रहा'

अयोध्या के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ए के गांगुली ने कहा कि इस मामले में मुसलमानों के साथ गलत हुआ है. कोलकाता में आजतक से बात करते हुए रिटायर्ड जज एके गांगुली ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे इस फैसले से व्यथित हैं.

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जस्टिस गांगुली ने कहा कि अयोध्या में आखिर मस्जिद गिराई गई थी. कोई भी कहेगा कि मुसलमानों की मस्जिद गिराई गई थी. सरकार इस मस्जिद को बचाना चाहती थी. इस मामले में अदालत में अभी भी केस चल रहा है. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान जब अस्तित्व में आया तो नमाज यहां पढ़ी जा रही थी. एक वैसी जगह जहां नमाज़ पढ़ी, जहां पर मस्जिद थी, अब इस जगह को सुप्रीम कोर्ट मंदिर के लिए देने को कह रहा है. ये सवाल मेरे दिमाग में उठ रहा है. उन्होंने कहा कि संविधान का एक छात्र होने के नाते फैसले को समझने में मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही है.

पढ़ें: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या होगा राजनीतिक असर

जस्टिस गांगुली ने कहा कि मस्जिद लगभग 500 सालों से थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट ने ये नहीं पाया है कि मस्जिद, मंदिर तोड़कर बनाई गई थी. इसके अलावा इस बात के भी पुरातात्विक सबूत नहीं हैं कि मस्जिद के नीचे मंदिर था. वहां पर कोई ढांचा जरूर था. लेकिन इस ढांचे के हिंदू ढांचा होने के सबूत नहीं हैं.

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जस्टिस एके गांगुली

बता दें कि जस्टिस गांगुली वही हैं, जिन्होंने 2012 में टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में अपना जजमेंट सुनाया था. जस्टिस गांगुली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये संवैधानिक कर्तव्य है कि वो सभी के अधिकारों की रक्षा करे, इसमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "इस देश के लोग क्या देखेंगे...यहां एक मस्जिद थी, जिसे 1992 में तोड़ दिया गया...उस जमीन पर कोर्ट एक मंदिर बनाने की इजाजत दे रही है...किन सबूतों के आधार पर...यह उस आस्था के आधार पर दिया गया कि ये जमीन रामलला से जुड़ी हुई थी, लेकिन क्या आस्था के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है." 

जस्टिस गांगुली ने आगे कहा कि जो सबूत मिले हैं और जो फैसला आया है, उससे मैं अपने को संतुष्ट नहीं कर पा रहा हूं. उन्होंने कहा कि हो सकता है कि उनकी समझ में कुछ खामियां हो, लेकिन उनके विचार से इस जजमेंट में कई सवालों के जवाब अनुत्तरित रह गए हैं. 

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