Advertisement

इंडिया@70: क्रांतिकारियों ने जंग-ए-आजादी के लिए ऐसे लूटा था सरकारी खजाना

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में काकोरी कांड हमेशा याद रखा जाएगा. ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग छेड़ने की खतरनाक मंशा को पूरा करने के लिए क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे. जिसके लिये ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई गई और इस ऐतिहासिक घटना को 9 अगस्त 1925 के दिन अंजाम दिया गया. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्टल भी इस्तेमाल किए गए थे. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था.

काकोरी कांड के तीन मुख्य क्रांतिकारियों को सजा-ए-मौत दी गई थी काकोरी कांड के तीन मुख्य क्रांतिकारियों को सजा-ए-मौत दी गई थी
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में काकोरी कांड हमेशा याद रखा जाएगा. ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग छेड़ने की खतरनाक मंशा को पूरा करने के लिए क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे. जिसके लिये ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई गई और इस ऐतिहासिक घटना को 9 अगस्त 1925 के दिन अंजाम दिया गया. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्टल भी इस्तेमाल किए गए थे. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था.

Advertisement

दरअसल, उस दौर में क्रान्तिकारी आजादी के लिए आन्दोलन चला रहे थे. जिसे गति देने के लिये धन की जरूरत थी. इसी के मद्देनजर शाहजहांपुर में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों की एक खुफिया बैठक हुई. जहां राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई.

9 अगस्त 1925 को इस योजना को अमलीजामा पहनाया गया. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन को चेन खींचकर रोक लिया.

उसी वक्त क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने 6 अन्य साथियों के साथ समूची ट्रेन पर धावा बोल दिया. इसी दौरान क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश माउजर का ट्रैगर दबा दिया. जिससे गोली चली औैर अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गई. मौके पर ही उसकी मौत हो गई.

Advertisement

तभी सारे क्रांतिकारी चांदी के सिक्कों और नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बांधकर वहां से भाग गए. अगले दिन अखबारों के माध्यम से यह खबर पूरे संसार में फैल गई. सरकारी खजाना लुटने से अंग्रेजी हुकूमत सकते में आ गई थी. ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लेते हुए जांच का जिम्मा सीआईडी इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस टीम को सौंपा गया.

26 सितम्बर 1925 के दिन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया. बाद में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. जबकि 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार साल की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी यानी कि आजीवन कारावास की सजा दी गई.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement