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किस्सा करगिल का: ‘हमें रोटी नहीं सिर्फ गोली चाहिए थी, ताकि दुश्मन को मार सकें’

नायक दीपचंद अपने उन दिनों, जंग के माहौल को देखते हुए भावुक हो जाते हैं. दीपचंद ने करगिल की लड़ाई, जंग के वक्त कैसा माहौल होता है, दुश्मनों का सामना और देश में सैनिकों को मिलने वाले सम्मान को लेकर aajtak.in से दिल खोल कर बात की.

करगिल युद्ध के वक्त की तस्वीर (फोटो क्रेडिट: नायक दीपचंद) करगिल युद्ध के वक्त की तस्वीर (फोटो क्रेडिट: नायक दीपचंद)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 7:13 AM IST

''...सर, उस वक्त हमें कुछ भूख नहीं लग रही थी...हमें बस खाना नहीं चाहिए था, हम चाहते थे सिर्फ गोली दे दो जिससे हम सामने वाले को मार दें’’.

ये शब्द उस हीरो के हैं जिसने कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तान को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आज जब देश करगिल लड़ाई में जीत के 21 साल पूरे होने पर जश्न मना रहा है और गर्व कर रहा है. नायक दीपचंद अपने उन दिनों, जंग के माहौल को देखते हुए भावुक हो जाते हैं. दीपचंद ने करगिल की लड़ाई, जंग के वक्त कैसा माहौल होता है, दुश्मनों का सामना और देश में सैनिकों को मिलने वाले सम्मान को लेकर aajtak.in से दिल खोल कर बात की. उन्होंने बताया कि कैसे लड़ाई के वक्त वो सिर्फ थोड़ा-सा खाना खाते थे, ताकि अगर लड़ने का मौका आए तो कोई कमी ना रह पाए. कारगिल की लड़ाई का पूरा किस्सा जानें, नायक दीपचंद की ज़ुबानी...

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सवाल: मई में जब जंग शुरू हुई थी, तो आप उस वक्त कहां पर थे? आपको कब बताया गया कि अब आगे जंग के लिए जाना है?

नायक दीपचंद: जब जंग की शुरुआत हुई थी, तो हम उस वक्त बारामूला के पास थे. वहां पर ऑपरेशन रक्षक चल रहा था, वहां पर ही आतंकियों के साथ एनकाउंटर जारी था. लेकिन, हम लोगों को करगिल के लिए स्टैंड बाय पर रखा गया था..क्योंकि नीचे से जब सेना आ रही थी तो उसको वक्त था इसलिए हमें ही आगे जाने का ऑर्डर मिल गया था. जब वो लोग कैप्टन कालिया की बॉडी उठाने नहीं दे रहे थे, तब हमारी टीम पहुंची और वहां पर गोलीबारी शुरू हुई थी. शुरुआत में लगा कि सादी घुसपैठ है लेकिन फिर दहशतगर्द-पाकिस्तानी सेना साथ में आ गई.

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सवाल: स्टैंड बाय के वक्त जब कुछ नहीं कर सकते थे, सिर्फ इंतजार करना था. तो सेना के जवानों का क्या मूड रहता था, किस तरह आप तैयारी कर रहे थे?

नायक दीपचंद: हमें पता था कि हम स्टैंडबाय पर हैं, तो आगे नहीं जा रहे थे. लेकिन उस वक्त हमें बैकअप तैयार करने को कहा गया, घायलों को इकट्ठा करना, उनका इलाज करना. हथियारों की तैयारी करना, क्योंकि लड़ाई ऊपर लड़ी जा रही थी उस वक्त नीचे तैयारी करना काफी जरूरी था क्योंकि फ्रंट पर काफी दिक्कतें थीं.

नायक दीपचंद

सवाल: जंग के वक्त सैनिक को मदद कैसे मिल पाती है? खाना, जरूरत का सामान, इलाज और बाकी सुविधाएं किस तरह पूरी होती हैं?

नायक दीपचंद: जंग के वक्त ताजा खाना मिलने का तो सवाल ही नहीं होता, हम पैक का खाना ले जाते थे. साथ में सिर्फ एक कैल्शियम की तरह की गोली ले गए थे, बादाम-काजू की चीज़ें, बिस्कुट और कुछ ऐसी चीजें जिसे हम पतीले में गर्म करके खा लें. लेकिन अगर किसी पोस्ट को जीत लेते थे, तब किसी को मौका मिलता था तो अच्छा खाना खा लेते थे. वो भी मुश्किल होता था क्योंकि जो बीच का वक्त मिलता था उसमें सिर्फ हथियारों को संभालना और साफ करना पड़ता था.

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भूखा इंसान लड़ाई नहीं लड़ सकता है, लेकिन सिर्फ इतने खाने की जरूरत थी कि हम लड़ सकें. क्योंकि सामने दुश्मन था, तब खाने की जरूरत नहीं थी. हम तब कम पढ़े-लिखे थे, कुछ और चिंता नहीं थी बस हम ये कहते थे खाना बाद में दे देना, हमें बस इस सामने वाले को खत्म करना है. क्योंकि अगर आप उसे नहीं मारोगे तो वो आपको मार देगा, उस वक्त किसे भूख लगेगी.

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सवाल: जंग के वक्त घरवालों से किस तरह संपर्क होता था, क्या उनतक कोई संदेश पहुंच पाता था?

नायक दीपचंद: उस वक्त घरवालों से बात करना काफी मुश्किल था, कुछ दिनों में सैटेलाइट का फोन मिलता था जिसमें अपनी बात रिकॉर्ड कर देते थे. तब घरों में भी फोन नहीं होते थे, लेकिन कभी-कभी अपनी बात पहुंचा देते थे.

सवाल: जब पाकिस्तानी सैनिकों से आमना-सामना हुआ था, तो टीम का क्या माहौल था? उस वक्त क्या प्लानिंग रही?

नायक दीपचंद: हम जब आगे पहुंचे तो पाकिस्तानी सेना ऊंची पहाड़ी पर थी, इसलिए उन्हें काफी फायदा होता था. क्योंकि वो आसानी से हम सभी को देख सकते थे, हमारी ओर से पूरी तैयारी थी. पाकिस्तानी सैनिक पंजाबी और हिंदी में भड़काऊ बातें करते थे, हमें उकसाते थे. लेकिन हमारी ओर से भी करारा जवाब दिया जाता था.

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नायक दीपचंद

सवाल: कारगिल की लड़ाई से एक सैनिक होने के नाते क्या सीख मिली, क्या वो बातें हैं जो हमेशा याद रह जाती हैं?

नायक दीपचंद: उस वक्त सिर्फ देश दिख रहा था कि देश को बचाना है. तब कोई सैनिक शिकायत नहीं करता था, जो भी सुविधा मिल जाए, जैसा भी हथियार मिल जाए, जो भी खाने को मिल जाए. हमें पता था कि अगर हमें ये मिल गया तो इसी के साथ आगे बढ़ना है. हमें जितनी सुविधा मिली, हमने उतने में ही दुश्मन को खत्म कर दिया.

जब लड़ाई हुई तो उसके कुछ वक्त बाद संसद पर हमला हुआ था और उसके बाद एक हादसे में बम ब्लास्ट हुआ जिसमें मेरे दोनों पैर, हाथ को नुकसान हुआ था.

सवाल: कारगिल को 21 साल हो चुके हैं, तब से लेकर अबतक कई सरकारें बदल गई हैं. सरकार की ओर से सैनिकों के हीरो को किस तरह का समर्थन और साथ मिलता है?

नायक दीपचंद: हम देश की सेवा करने के लिए सेना में शामिल हुए थे, सरकार की ओर से किसको क्या मिला इससे फर्क नहीं पड़ता है. हम सैनिक ये नहीं सोचते हैं कि शहीद होने के बाद कितना रुपया मिलेगा. रुपया मिलना तो बोली लगाना हो गया, क्या हम देश में सैनिकों की बोली लगाएंगे. ज़िंदा सैनिकों का सम्मान करना चाहिए, क्यों किसी को इज्जत देने के लिए मरने का इंतजार किया जाता है.

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सरकारों की ओर से अलग-अलग हिसाब से सैनिकों को मदद दी जाती है, ऐसी मदद में भी भेदभाव क्यों किया जाता है. आज शहीद होने के बाद मेमोरियल के लिए जगह नहीं मिलती है.

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नायक दीपचंद

सवाल: आज देश में देशभक्ति की एक नई परिभाषा है, उसको लेकर युवाओं में सोशल मीडिया पर जोश देखने को मिलता है, ये कितना मायने रखता है?

नायक दीपचंद: आज सिर्फ लोगों को 26 जनवरी, 15 अगस्त और विजय दिवस के दिन ही लोगों को सैनिकों की याद आती है..लेकिन क्या बाकी साल हम देश की रक्षा नहीं करते हैं. नेता और सरकारें वादे कर देते हैं, लेकिन मदद पूरी नहीं मिलती है. आज कई ऐसी संस्थाएं हैं जो दिखावे के लिए बुलाती हैं, सिर्फ नाम का ऐलान करती हैं. लेकिन कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जो आपका सम्मान करती हैं जैसे "हमारा देश हमारे जवान" नाम का एक संगठन ससम्मान बुलाता है. संगठन की सचिव भावना शर्मा की ओर से हमें बुलाया जाता है और पहले ही बता दिया जाता है कि आपका पूरा सम्मान होगा, ऐसा ही होना चाहिए कि झूठा सम्मान नहीं करना चाहिए.

आज का युवा सिर्फ फेसबुक और ट्विटर तक ही देशभक्ति दिखाता है...मैं रेल में सफर करता हूं और कहता हूं कि मैं अपाहिज हूं तब कोई अपनी सीट नहीं दे सकता है. बोलता है कि मैंने चार महीने पहले सीट बुक की थी, आप सैनिक को अपनी सीट नहीं दे सकते हो और देशभक्ति की बात करते हैं.

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