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कहीं कर्नाटक में कांग्रेस को भारी न पड़ जाए राहुल की ये रणनीति?

जद(एस) सूबे की सियासत में भारी दखल रखती है. बावजूद इसके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने बयानों में उसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री के. सिद्धारमैया के साथ राहुल गांधी कर्नाटक के मुख्यमंत्री के. सिद्धारमैया के साथ राहुल गांधी
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST

कर्नाटक के चुनावी रण का उद्घोष हो चुका है. कांग्रेस जहां अपनी सत्ता बचाने की पुरजोर कोशिश में जुटी है, तो वहीं कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लेकर चली बीजेपी यहां से उसे उखाड़ फेंकने को उतारू है. ऐसे में दोनों मुख्य दलों के बीच चल रही कांटे की टक्कर अगर किसी ठोस चुनावी नतीजे तक नहीं पहुंच पाती है, तो जनता दल (एस) किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकती है. 

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जद(एस) सूबे की सियासत में भारी दखल रखती है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी 224 सीटों में 40 पर जीत दर्ज कर वो बीजेपी के बराबर रही थी. साथ ही इससे पहले वो सूबे की सत्ता भी संभाल चुकी है. बावजूद इसके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने बयानों में उसके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. हाल ही में जब राहुल ओल्ड मैसूर क्षेत्र गए तो उन्होंने यहां भी जनता दल(एस) को नहीं बख्शा. राहुल ने सीधे तौर पर जद(एस) को बीजेपी की 'बी-टीम' बताते हुए उसे जनता दल (संघ परिवार) की संज्ञा तक दे डाली.

हालांकि, राहुल के इस बयान के पीछे भी एक रणनीति मानी जा रही है. दरअसल, जहां राहुल ने यह बयान दिया उस इलाके में मुस्लिम वोटरों की बड़ी भूमिका रहती है. जो मुख्य रूप से कांग्रेस और जद(एस) को समर्थन करते आए हैं. 2013 के पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो क्षेत्र के चार जिलों की 29 सीटों में से 16 पर कांग्रेस और 12 पर जद(एस) ने जीत दर्ज की थी. यही वजह है कि कांग्रेस यहां मुस्लिम वोटरों को ध्यान में रखकर जद(एस) पर बीजेपी की मददगार होने का दांव खेल रही है.

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इतना ही नहीं, जनता दल सेक्यूलर के नेताओं को कांग्रेस में शामिल करने का काम भी किया जा रहा है. हाल ही में कांग्रेस ने जदस के सात विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल किया, जिसे लेकर भी जदस में नाराजगी है.

हालांकि, चर्चा ये भी है कि जद(एस) के प्रति राहुल गांधी के इस स्टैंड से स्थानीय कांग्रेस नेता चिंतित हैं. वो इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में जद(एस) सरकार बनाने में अहम रोल अदा कर सकती है, क्योंकि अतीत में भी ऐसा हो चुका है.

2004 के विधानसभा चुनाव में सूबे में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका था, जिसके बाद कांग्रेस और जद(एस) ने मिलकर एन. धर्म सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. उस वक्त के. सिद्धारमैया भी जद(एस) का हिस्सा थे और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था.

इसीलिए, राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि कांग्रेस का जद(एस) से दूरी बनाना बीजेपी के सत्ता परिवर्तन के आह्वान को कहीं परवाज न दे दे. इसकी भी एक वाजिब वजह है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस परिस्थिति को भांप रहे हैं और वो अब तक जद(एस) के प्रति शांति अख्तियार किए हुए हैं. वहीं, जनता दल सेक्यूलर के मुखिया एच.डी देवेगौड़ा ने भी राहुल पर पलटवार किया है. उन्होंने कहा है कि जब सिद्धारमैया डिप्टी सीएम और धर्म सिंह मुख्यमंत्री थे उस वक्त हमारी पार्टी कांग्रेस की 'बी टीम' हुआ करती थी. वर्तमान में हमारी पार्टी कांग्रेस की 'बी-टीम' होगी या फिर कांग्रेस पार्टी जनता दल (सेक्यूलर) की बी टीम साबित होगी, यह देखना है.

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गोवा, मणिपुर और मेघालय जैसे राज्यो में छोटे दल के रूप में उभरने के बावजूद बीजेपी ने या तो छोटे दलों की मदद से अपनी सरकार बनाई है या फिर अपना समर्थन देकर क्षेत्रीय दलों को नेतृत्व का मौका दिया है. ऐसे में कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर के बीच खाई जितनी गहरी होगी, बीजेपी उसे पाटने का उतना ही मौका भुनाने की हर संभव कोशिश करेगी. यही वजह है कि कर्नाटक में सरकार बनाने का दावा कर रहे अमित शाह अपने भाषणों में सिर्फ और सिर्फ मौजूदा कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री के. सिद्धारमैया के भ्रष्टाचार को ही मुद्दा बना रहे हैं.

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