
केरल की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने को लेकर कांग्रेस और मोदी सरकार में बयानबाजी हो रही है. इस बीच केंद्रीय मंत्री अल्फोंस कन्ननथानम ने केरल की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की कांग्रेस नेताओं की मांग को खारिज कर दिया और कहा कि आपदा प्रबंधन कानून 2005 में ऐसा करने का प्रावधान नहीं है.
इस संबंध में पूर्व रक्षा मंत्री और कांग्रेस नेता ए के एंटनी के बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आपदा प्रबंधन कानून तब पारित किया गया था जब केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग की सरकार थी.
एंटनी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया जताते हुए कन्ननथानम ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का प्रावधान नहीं है, कांग्रेस जब 2004-14 में सत्ता में थी तो किसी भी आपदा को राष्ट्रीय आपदा नहीं घोषित किया गया था. ’’
उधर, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने भी मांग की है कि केंद्र केरल की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे. बता दें कि कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी, केरल के वामपंथी दलों और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने भी केंद्र सरकार से इसी तरह की मांग की है.
क्या होती है आपदा
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के मुताबिक 'आपदा' का मतलब होता है किसी भी इलाके में प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से, या दुर्घटना या उपेक्षा की वजह से आई ऐसी कोई महाविपत्ति, अनिष्ट, तबाही आदि जिससे मानव जीवन की भारी हानि या संपत्ति को भारी नुकसान और विनाश, या पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचे और यह इतने बड़े पैमाने पर हो कि जिससे स्थानीय समुदाय के लिए निपटना संभव न हो.
भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात, सुनामी, शहरी इलाकों में बाढ़, लू आदि को 'प्राकृतिक आपदा' माना जाता है, जबकि न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल आपदाओं को 'मानव जनित आपदा' माना जाता है.
कैसे तय होती है राष्ट्रीय आपदा
किसी भी आपदा को राष्ट्रीय आपदा मानने के बारे में कोई सरकारी या कानूनी प्रावधान नहीं है. हाल में संसद के मानसून सत्र में गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था, 'स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फंड (SDRF) या नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फंड (NDRF) के मौजूदा गाइडलाइन इसके बारे में नहीं बताते कि किस आपदा को 'राष्ट्रीय आपदा' घोषित किया जाए.'
दसवें वित्त आयोग (1995-2000) के सामने विचार के लिए यह प्रस्ताव आया था कि किसी आपदा को 'असाधारण प्रचंडता की राष्ट्रीय आपदा' घोषित किया जा सकता है, यदि यह राज्य की एक-तिहाई जनसंख्या को प्रभावित करती हो. आयोग ने इसे स्वीकार तो किया, लेकिन यह तय नहीं किया कि 'असाधारण प्रचंडता की आपदा' किसे कहेंगे.
लेकिन आयोग ने कहा कि यह केस टू केस पर निर्भर होगा यानी अलग-अलग मामलों के हिसाब से तय किया जा सकता है. उत्तराखंड में बादल फटने से आई बाढ़ और चक्रवात हुदहुद को इस तरह की आपदा घोषित किया गया था.
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