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क्यों बारिश के मशरूमों की तरह फिर से उग आया है राम मंदिर मुद्दा?

अचानक से साक्षी महाराज, सुब्रमण्यम स्वामी, विनय कटियार, उमा भारती, महेश शर्मा जैसे नाम राम-राम जपते नज़र आ रहे हैं. राम राज पाने की सीढ़ी बन गए हैं. चुनाव के मेघ गड़गड़ा रहे हैं, राम का छाता तानकर सब पार उतरना चाहते हैं.

फाइल फोटो फाइल फोटो
प्रियंका झा
  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

राम का नाम फिर से चर्चा में है. चर्चा में लाने वाले वही पुराने चेहरे हैं. लेकिन इस बार पीठ बचाकर बयान दिए जा रहे हैं. कोई अयोध्या में रामायण संग्रहालय की बात कर रहा है तो कोई यहां थीम पार्क बनाने का वादा कर रहा है. इसमें कुछ ऐसे भी हैं जो राम मंदिर से कम कुछ नहीं जैसे अपने पुराने नारों से धूल झाड़कर मैदान में कूद पड़े हैं.

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अचानक से साक्षी महाराज, सुब्रमण्यम स्वामी, विनय कटियार, उमा भारती, महेश शर्मा जैसे नाम राम-राम जपते नज़र आ रहे हैं. राम राज पाने की सीढ़ी बन गए हैं. चुनाव के मेघ गड़गड़ा रहे हैं, राम का छाता तानकर सब पार उतरना चाहते हैं.

राम क्या कोई स्वीमिंग पूल हैं कि जब मन किया, नहाने के लिए कच्छे पहनकर कूद पड़े. क्या राम के प्रति कोई राजनीतिक दल गंभीर भी हैं या फिर केवल उन्हें भुनाने का गंदा खेल चल रहा है. भाजपा को पता है कि सूबे में सत्ता में आ पाना आसान नहीं है. प्रचार की हवा ज़मीनी सच से अभी भी कोसों दूर है. वहीं सपा को भी विश्वास नहीं कि वो वापस सूबे में सत्तासीन हो सकेगी. तो फिर कहने में क्या जाता है. राम के नाम पर वादे की कोई ज़मानत किसी को नहीं देनी होती.

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चुनाव जब सामने हैं तो देखते जाइए कि राम का नाम अभी कितने रंग दिखाता है.

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