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गुजरात पहुंची पुणे हिंसा की धधक, सरकारी बस को किया आग के हवाले

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की हिंसा की चिंगारी अब गुजरात तक पहुंच गई है. बुधवार को राजकोट के धोराजी के भूखी चौकड़ी के पास अज्ञात लोगों ने यात्रियों को उतारकर सरकारी बस को आग के हवाले कर दिया.

राजकोट में अज्ञात लोगों ने फूंकी बस राजकोट में अज्ञात लोगों ने फूंकी बस
राम कृष्ण/गोपी घांघर
  • अहमदाबाद,
  • 03 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 10:52 PM IST

महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की हिंसा की चिंगारी अब गुजरात तक पहुंच गई है. बुधवार को राजकोट के धोराजी के भूखी चौकड़ी के पास अज्ञात लोगों ने यात्रियों को उतारकर सरकारी बस को आग के हवाले कर दिया. हालांकि इसकी सूचना मिलते ही दमकल कर्मी घटनास्थल पर पहुंच गए.

बुधवार को इस आगजनी की घटना के पहले गुजरात के वापी में दलित सेना ने हाईवे जाम किया. साथ ही टायर जलाए. इसके बाद नासिक-नंदुरबार को बस सेवा पूरी तरह बंद करनी पड़ी. मालूम हो कि सोमवार को भीमा-कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने की खुशी में कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस बीच अचानक हिंसा भड़क गई.

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इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिसके बाद यह हिंसा पूरे महाराष्ट्र में फैल गई. पुणे, अकोला, औरंगाबाद और ठाणे से लेकर मुंबई तक में हालात बेकाबू हो गए. पुलिस हर जगह तमाशा देखती रही और सरकार खामोश बैठी रही.  इस हिंसा के खिलाफ बुधवार को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पोते और एक्टिविस्ट प्रकाश आंबेडकर के संगठन भारिप बहुजन महासंघ समेत आठ संगठनों ने महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया. इसके बाद राज्य सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए.

वहीं, यह मामला संसद में भी उठाया गया. लोकसभा में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ये फूट डालने की कोशिशों का नतीजा है. श्रद्धांजलि कार्यक्रम को लेकर विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है.

आखिर क्या है भीमा कोरेगांव की लड़ाई

भीमा कोरेगांव की लड़ाई एक जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में हुई थी. यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी. अंग्रेजों की तरफ 450 महार समेत कुल 500 सैनिक थे और दूसरी तरफ पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे. सिर्फ 500 सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था.

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हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं. यहीं वो जयस्तंभ स्थित है, जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. कहा जाता है कि साल 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे, जिसके बाद से अंबेडकर में विश्वास रखने वाले इसे प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं.

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