
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 92 साल से चली आ रही रेल बजट की परंपरा को खत्म कर दिया है. कैबिनेट ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. इसके साथ ही अब संसद की मंजूरी के बाद आगामी साल से एक ही बजट पेश किया जाएगा. यानी अब अलग से रेल बजट पेश करने की जरूरत नहीं होगी.
रेलवे की स्वायत्तता बरकरार रहेगी: जेटली
जेटली ने कहा कि आज स्थिति अलग है, सिर्फ परंपरा के आधार पर अलग से रेल बजट पेश किए जाने की जरूरत नहीं है. इस साल एक बजट होगा और एक विनियोजन विधेयक होगा. इससे रेलवे की स्वायतत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि हर साल रेलवे पर चर्चा हो.
बता दें कि 1924 से अब तक आम बजट से अलग रेल बजट पेश होता रहा है. आगामी वित्त वर्ष के लिए साल 2017 में अब सिर्फ और सिर्फ आम बजट ही संसद में पेश किया जाएगा. रेल मंत्रालय का वित्तीय लेखा-जोखा भी आम बजट का उसी तरह से हिस्सा होगा, जैसे दूसरे मंत्रालय के लिए होता है. वैसे तो आम बजट में रेल बजट के मर्जर के सैद्धांतिक सहमति हो गई है. इसके लिए नीति आयोग के प्रस्ताव पर रेलमंत्री ने अपनी सहमति पहले ही जता दी है.
मंत्रालयों के अधिकारों का बंटवारा बाकी
रेलवे के आला अफसरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ही अब रेल मंत्रालय का बजट तय करेगा लेकिन अभी भी दोनो मंत्रालयों के अधिकारों का बटंवारा बाकी है और इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी इसको भी तय किया जाना
बाकी है. वित्त मंत्रालय और रेल मंत्रालय के बीच जिन विषयों पर अभी अतिम फैसला होना बाकी है उनमें पेंशन की देनदारी, डिवीडेंड, रेलवे को वित्त मंत्रालय से मिलने वाले ग्रॉस बजटरी सपोर्ट और किराया तय करने का
अधिकार जैसे मसले हैं.
किराया तय करने का अधिकार अपने पास रखना चाहता है रेल मंत्रालय
रेल मंत्रालय किराया और माल भाड़ा तय करने के अधिकार को अपने पास रखना चाह रहा है. इसके अलावा रेल मंत्रालय बाजार से पैसा उठाने के अधिकार को भी वित्त मंत्रालय को नहीं देना चाहता. रेल मंत्रालय की सबसे
बड़ी चिंता है कि सातवें वेतन आयोग का बोझ और माल भाड़े से हो मिल रहे राजस्व में आ रही तेज कमी. इसके चलते पहले से ही आर्थिक परेशानियों का दबाव झेल रहे रेल मंत्रालय के लिए डिविडेंट देने से लेकर
ऑपरेशनल लागत निकाल पाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में आम बजट में विलय के साथ रेल मंत्रालय के अधिकारो में और कटौती हुई तो उनकी दिक्कतें बढ़ सकती हैं.
ये है रेलवे का बजट प्लान
इस साल के रेलवे के बजट प्लान की बात करें तो 2016-17 के दौरान रेलवे को कर्मचारियों की सैलरी के लिए तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये चाहिए. रेलवे को गाड़ियों के ईंधन बिजली के लिए तकरीबन 23 हजार करोड़
रुपये चाहिए. रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन की मद में तकरीबन 45 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. इसी के साथ भारत सरकार को डिवीडेंड के तौर पर देने के लिए रेलवे को तकरीबन 5500 करोड़ रुपये की धनराशि
चाहिए.
रेल टैरिफ अथॉरिटी बनेगी
रेलवे के जानकारों के मुताबिक आम बजट में रेल बजट के विलय के साथ भारतीय रेलवे को वित्तीय तौर पर आजादी मिल सकेगी. इसी के साथ ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय रेलवे को डिवीडेंड देने से मुक्ति मिल
जाएगी. इसके अलावा रेल मंत्रालय को अब वित्त मंत्रालय के सामने ग्रॉस बजटरी सपोर्ट के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा. इसी के साथ ऐसा माना जा रहा है कि वित्त मंत्रालय सातवें वेतन आयोग की वजह से रेल मंत्रालय
पर पड़ रहे भारी भरकम बोझ को साझा करने में भी सहयोग करेगा. एक बड़ी बात ये है कि रेल किराया बढ़ाने के अधिकार को लेकर वित्त और रेल मंत्रालय के बीच इस बात पर सहमति है कि आने वाले दिनों में किराए
में कमी और बढ़ोतरी के लिए रेल टैरिफ अथॉरिटी बनाई जाएगी. आम बजट में रेल बजट के मर्जर के बाद भी रेल मंत्रालय को नई रेलगाड़िेयों और परियोजनाओं के ऐलान की छूट होगी.