
मोदी सरकार की कैबिनेट ने बीते दिन सरकारी बंगलों और फ्लैट्स की समय सीमा खत्म होने के बाद भी अवैध तरीकों से रह रहे सांसदों, पूर्व मंत्रियों, पूर्व सांसदों, मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों को बाहर करने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन की मंजूरी दी. इसके लिए सरकार Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act 1971 के सेक्शन 2 और 3 में संशोधन करेगी.
इस ऐक्ट में संशोधन के जरिए आवासीय अकॉमोडेशन की परिभाषा और उसे खाली कराने के प्रावधानों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है. कानून में संशोधन के बाद डायरेक्टर इस्टेट के अधिकारियों के पास अधिकार होंगे कि वे सरकारी आवास में रहने की तय सीमा खत्म होने के बाद बंगले को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू कर सकेंगे.
डायरेक्टर इस्टेट जरुरत के मुताबिक कर सकेगा पूछताछ
डायरेक्टर इस्टेट जरुरत के मुताबिक सरकारी आवास को खाली कराने को लेकर सीधे संबंधित व्यक्ति से पूछताछ कर सकेंगे. इसके लिए उसे पुराने नियमों के तहत लंबी चौड़ी प्रक्रिया पालन की कोई जरूरत नहीं होगी. सरकारी आवास में रहने की समय सीमा खत्म होने पर डायरेक्टर इस्टेट के अधिकारी बंगला खाली करने का आदेश भी दे सकते हैं. इतना ही नहीं यदि कोई इस आदेश को नहीं मानता है तो बंगला खाली कराने में पुलिस की मदद ली जा सकती है. हैवी फाइन लिया जा सकता है.
असल में मोदी सरकार को यूपीए सरकार में मंत्री, सांसद और कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगलो को खाली कराने में काफी मसक्कत करनी पड़ी थी. जैसे अम्बिका सोनी, अधीरंजन चौधरी, हरीश रावत, उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं से उनका बंगला खाली कराने में मोदी सरकार के शहरी विकास मंत्री वैंकैया नायडू के पसीने छूट गए थे.