Advertisement

आंदोलनकारी किसानों के लिए आगे आए डिब्बेवाले-डॉक्टर-मुसलमान

मुंबई में दाखिल होते ही इस शहर ने भी किसानों का दिल खोलकर स्वागत किया. मुंबई की लाइफ लाइन कहे जाने वाले डिब्बावाला से लेकर कई राजनीतिक दल भी किसानों के लिए खाने से लेकर दवा का इंतजाम कर रहे हैं.

पैदल चलने से किसानों के पैरों में छाले पड़ गए, मुंबई के डॉक्टरों ने किया इलाज पैदल चलने से किसानों के पैरों में छाले पड़ गए, मुंबई के डॉक्टरों ने किया इलाज
राहुल विश्वकर्मा
  • मुंबई,
  • 12 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 6:31 PM IST

30 हजार से ज्यादा किसान 180 किलोमीटर तक एक कतार में पैदल चलकर मुंबई तक चले आए. इन किसानों के अनुशासन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक साइकिल तक का रास्ता इन्होंने नहीं रोका. पूरे रास्ते में कोई शीशा नहीं टूटा, किसी की जिंदगी नहीं थमी, किसी को कोई मुश्किल नहीं हुई. मुख्यमंत्री फडनवीस के खाकी वर्दी वाले सिर्फ हाथों में डंडा थामे ही रह गए. किसानों ने इन छह दिनों में पूरे मुल्क का दिल जीत लिया है. मुट्ठीभर कार्यकर्ताओं के दम पर कानून को अंधेर की रस्सी से बांध देने वाले राजनीतिक दलों को किसानों के ऐसे अनुशासन से कोफ्त हो रही होगी.

Advertisement

हर धर्म और दल कर रहे किसानों की मदद

मुंबई में दाखिल होते ही इस शहर ने भी किसानों का दिल खोलकर स्वागत किया. मुंबई की लाइफ लाइन कहे जाने वाले डिब्बावाला से लेकर कई राजनीतिक दल भी किसानों के लिए खाने से लेकर दवा का इंतजाम कर रहे हैं. किसानों की मदद में हर धर्म के लोग सामने आते दिख रहे हैं. मुंबई डब्बावाला संघ के प्रवक्ता सुभाष तलेकर का कहना है कि यह हमारे अन्नदाता हैं, जो परेशान होकर यहां इतनी दूर आए हैं. ऐसे में हमें लगा कि हमें आज उनका पेट भरना चाहिए. हमने कोलाबा और दादर के बीच काम करने वाले अपने लोगों को अपने 'रोटी बैंक' से खाने का इंतजाम कर आजाद मैदान पहुंचाने को कहा, ताकि इन किसानों को खाना मिलकर सके.

शिवसेना ने लगाए कई जगह खाने के स्टॉल

Advertisement

कई जगह रात में मुस्लिम संगठन के लोग खाने और पानी के डिब्बे लेकर रास्ते में ही किसानों का इंतजार करते दिखे. आजाद मैदान में भी जगह-जगह मुंबईकर किसानों के खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचे. शिवसेना ने कई जगह किसानों की मदद के लिए स्टॉल लगाए हैं, जहां से किसानों को खाने-पीने से लेकर डॉक्टरी सुविधा तक मुहैया कराई जा रही है.

अखिल भारतीय किसान सभा कर रहा अगुवाई

दिल्ली और मुंबई के तख्तनशीनों से ठुकराई हुई किसानों की इस जमात के भीतर आखिर क्या टूटा होगा कि वे नासिक से पैदल ही चल पड़े. अखिल भारतीय किसान सभा इस मार्च की अगुवाई कर रहा है. किसान नेता अशोक धावले इसकी अगुवाई कर रहे हैं.

चलते-चलते पैरों से रिसने लगा खून

बुलेट ट्रेन के सपनों के बाजार में नंगें पैरों से रोटी और राजा का फासला नापते किसानों का कदमताल भारतीय लोकतंत्र का वह विहंगम दृश्य है, जिस पर समय शर्मिंदा है. इक्कीसवीं सदी के अट्ठारहवें बरस के मचान से अपने अन्नदाताओं के पैरों से रिसता हुआ खून पूरा देश देख रहा है.  

कैसा रहा बीते 6 दिनों का सफर

बीते 6 दिन से ये किसान हर सुबह चलना शुरू कर देते हैं. रास्ते में गांव वाले दोपहर का खाना खिला देते हैं. थोड़ा सुस्ताने के बाद ये फिर चल पड़ते हैं. जहां रात हुई वहीं खुले आसमान के नीचे मरे हुए सपनों की गठरी सिरहाने रखकर सो गए और भोर हुई तो उदास मौसम के खिलाफ फिर मोर्चा खोल चल पड़ते हैं. किसानों की इस लड़ाई में थक जाने का विकल्प ही नहीं था. उदास मौसम के मुहाने पर बैठा किसानों का यह मोर्चा अब मुंबई शहर से अपने अस्तित्व की शिनाख्त मांग रहा है.

Advertisement

इस बार हिसाब बराबर करेंगे

दरअसल किसानों की कमाई बढ़ाने के सपने दिखा रही सरकार उन्हें कर्जे तक से नहीं निकाल पाई है. अब किसान इसके लिए और इंतजार करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं. वो नासिक से यही सोचकर आए हैं कि इस बार सारा हिसाब करके जाएंगे.

पहली बार नहीं उठी हैं मांगें

अखिल भारतीय किसान सभा ने जो मांगें सामने रखी हैं वो कोई पहली बार नहीं रखी गई हैं. ये मांगें हर किसान आंदोलन का आधार पत्र हैं, लेकिन पुराने आंदोलनों में और इस आंदोलन में एक फर्क है. इस बार किसान निर्णायक लड़ाई की कसम खाकर आए हैं।

किसानों की सरकार से सात मांगें

पहली मांग- सभी किसानों को पूर्ण कर्जमाफी

दूसरी मांग- जंगल के उत्पाद पर आदिवासियों का हक हो

तीसरी मांग- मेगा प्रोजेक्ट के नाम पर जमीन की छीनाझपटी बंद हो

चौथी मांग- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करो

पांचवीं मांग- बुजुर्ग किसानों को मासिक पेंशन दो

छठी मांग- खेतिहर मजदूरों की न्यूतम मजदूरी तय करो

सातवीं मांग- मनरेगा का कड़ाई से पालन

यह स्वामीनाथन आयोग की ही सिफारिशें थीं, जिनमें फसल लागत से डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की बात की गई थी. नरेंद्र मोदी ने कई बार इसका वादा किया था. लेकिन सरकार अभी तक इस पर कोई ठोस पहल नहीं कर पाई है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement