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नए राष्ट्रपति के नाम पर सस्पेंस बरकरार, बीजेपी ने अभी भी नहीं खोले पत्ते

जो लोग यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि शुक्रवार को राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू सोनिया गांधी से मिलकर 10 जनपद से बाहर निकलेंगे तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर सस्पेंस कुछ कम हो जाएगा, उन्हें निराशा हुई है.

सोनिया और राजनाथ के बीच हुई बात सोनिया और राजनाथ के बीच हुई बात
बालकृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2017,
  • अपडेटेड 10:49 PM IST

जो लोग यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि शुक्रवार को राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू सोनिया गांधी से मिलकर 10 जनपद से बाहर निकलेंगे तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर सस्पेंस कुछ कम हो जाएगा, उन्हें निराशा हुई है. राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू ने NDA के उम्मीदवार के लिए सोनिया गांधी से समर्थन तो मांगा, लेकिन अपने उम्मीदवार का नाम बताने के बजाय उन्हीं से उम्मीदवार के लिए सुझाव मांग लिया.

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कहने का मतलब यह साफ था कि यह मुलाकात राष्ट्रपति पद पर आम राय बनाने के लिए कम और शिष्टाचार भेंट ज्यादा थी. इस मुलाकात के बाद बैठक में मौजूद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा भी कि सरकार राष्ट्रपति के लिए अपने उम्मीदवार के नाम पर सिर्फ समर्थन चाहती है आम राय नहीं बनाना चाहती.

आमराय बनने की उम्मीद कम
समर्थन मांगने के लिए राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को सोनिया गांधी से मिलने के बाद सीपीएम दफ्तर जाकर सीताराम येचुरी से भी मुलाकात की और समर्थन मांगा. लेकिन यहां भी वही कहानी दोहराई गई. बीजेपी के दोनों नेताओं ने बिना उम्मीदवार का नाम बताए ही सीपीएम के सामने अपने उम्मीदवार को समर्थन देने का अनुरोध किया. सीताराम येचुरी ने जब BJP के नेताओं से उस उम्मीदवार का नाम जानना चाहा जिसके लिए वह दोनों नेता समर्थन मांगने आए थे, तो जवाब यह मिला कि बीजेपी ने अभी कोई नाम तय नहीं किया है.

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इस बैठक के बाद सीताराम येचुरी ने बाहर निकल कर कहा कि बिना उम्मीदवार का नाम जाने भला विपक्षी पार्टियां समर्थन देने या नहीं देने के बारे में फैसला कैसे कर सकती हैं. सीताराम येचुरी तो साफ कह रहे हैं कि चुनाव होकर रहेगा और आम राय बनने की कोई उम्मीद नहीं है.

बीजेपी के नेता लगातार राष्ट्रपति चुनाव के लिए जनादेश के सम्मान की बात करते रहे हैं. बीजेपी के कहने का मतलब यह है कि जिस पार्टी के पास बहुमत है उसी की पसंद का राष्ट्रपति होना चाहिए. लेकिन सीताराम येचुरी ने बैठक में बीजेपी के दोनों नेताओं को जनादेश के सम्मान का वह फॉर्मूला बता दिया जिसे सुनकर वेंकैया नायडू और राजनाथ सिंह दोनों जरूर चकरा गए होंगे.

 

बहुमत का नया फॉर्मूला
येचुरी ने BJP के नेताओं से कहा की लोकसभा चुनाव में BJP को सिर्फ 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे और बाकी का 69 प्रतिशत वोट विपक्षी पार्टियों को ही मिला था. येचुरी के कहने का मतलब यह था कि जनादेश के सम्मान का मतलब होना चाहिए कि विपक्ष के साझा उम्मीदवार को बीजेपी राष्ट्रपति बनाने को तैयार हो जाए. इस बात का कोई सवाल ही नहीं उठता कि बीजेपी इस प्रस्ताव को माना तो दूर इस पर विचार भी करेगी. यानी इन मुलाकातों का अर्थ सिर्फ यह है कि बीजेपी यह दिखाना चाहती है कि उसने सभी पार्टियों से इस मामले पर विचार विमर्श का शिष्टाचार पूरा किया.

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17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 28 जून है. यानी नामांकन करने के लिए अब सिर्फ 12 दिन का समय ही बचा है. सरकार की रणनीति यह है कि अपना उम्मीदवार देर से घोषित किया जाए, ताकि विपक्षी पार्टियों को दूसरा उम्मीदवार खोज कर उस के पक्ष में समर्थन जुटाने का समय ही ना मिले. यह बात लगभग तय है कि अब BJP अपने उम्मीदवार का खुलासा नामांकन के समय ही करेगी.

वैसे ऐसा करना कोई नई बात नहीं है. 2007 में कांग्रेस पार्टी ने प्रतिभा पाटील को अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा करने के बाद ही विपक्षी पार्टियों से सहयोग की अपील की थी. 2012 में भी ऐसा ही हुआ और प्रणब मुखर्जी के नाम की घोषणा करने के बाद कांग्रेस ने विपक्षी पार्टियों से समर्थन करने का अनुरोध किया था.

 

हाल फिलहाल के समय की बात करें तो 2002 में अब्दुल कलाम ही सिर्फ ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं जो चुने जाने से पहले आमराय के काफी करीब पहुंच गए थे. अटल बिहारी वाजपेयी ने अब्दुल कलाम के नाम की घोषणा करके सबको चौंका दिया था और कांग्रेस समेत सभी पार्टियों ने उनके समर्थन की घोषणा कर दी थी. लेकिन लेफ्ट पार्टियों ने यह कहकर अब्दुल कलाम का विरोध किया था कि वह बीजेपी के उम्मीदवार का समर्थन किसी भी हालत में नहीं कर सकते. तब लेफ्ट ने मशहूर स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मीदवार बनाकर अब्दुल कलाम के खिलाफ मैदान में उतारा था.

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