
साल 2014 लोकसभा चुनाव में जिन वादों के साथ बीजेपी सत्ता में आई थी उनमें शासन और प्रशासन में पारदर्शिता लाने का वादा भी शामिल था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री इस मुद्दे पर अपनी सरकार की पीठ ठोकने का भी कोई मौका नहीं चूकते. बीते रविवार 28 जनवरी को ही प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में ही कहा कि प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म पुरस्कारों को प्रदान करने में पूरी तरह से पारदर्शिता आ गई है और इन पुरस्कारों से अब आम आदमी को भी सम्मानित किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने पांच दिन पहले ही 23 जनवरी को स्विट्जरलैंड के दावोस में दुनिया भर के प्रतिनिधियों के बीच देश का विजन रखते हुए भी कहा था कि सरकार के काम में पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है.
पारदर्शिता का अर्थ है- ‘खुलापन, सूचना की आसानी से प्राप्ति और जबाबदेही.’ किसी भी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता बुनियादी मूल्य हैं. सूचना के अधिकार (RTI) के जरिए राष्ट्र नागरिकों के समक्ष अपनी कार्य और शासन प्रणाली से जुड़े पहलुओं को सार्वजनिक करता है. सूचना के अधिकार को भारत के नागरिक के सशक्तिकरण का सबसे बड़ा हथियार भी माना जाता है.
इसी सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री के कार्यालय से विभिन्न तरह की जानकारियां मांगी गई. लेकिन जिस तरह के जवाब आए, उनका अनुभव यही कहता है कि वो सरकार के पारदर्शिता वाले बयानों से मेल नहीं खाता.
बीते कुछ महीनों में प्रधानमंत्री कार्यालय में कई RTI आवेदन दाखिल कर कई जानकारियां मांगी गई. मसलन, प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के लिए कितनी बार सरकारी विमान का इस्तेमाल किया? प्रधानमंत्री का ट्वीटर हैंडल @PMOIndia कब शुरू किया गया और ये कब सर्टिफाइड हुआ? आदि.
आरटीआई को लेकर जिस तरह के जवाब मिले, उससे ये आभास हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने लगभग हर RTI आवेदन के लिए एक ही जवाब का टेम्पलेट बना रखा है. ऐसा इसलिए प्रतीत हुआ क्योंकि पांच आवदेन किए गए और उन सभी का एक ही जबाब आया. हर एक में यही कहा गया कि ‘आपका अमुक तारीख का आवदेन अमुक तारीख को मिला और इसको नोट कर लिया गया है. आप इसको अंतरिम जवाब माने. आपके आवदेन को आगे बढ़ाया जा रहा है और इसका जवाब जितनी जल्दी हो सके दिया जाएगा.’ ये बात दूसरी है कि इन आवदेनों का पूर्ण जवाब नहीं मिला.
जब इस तरह के पांच जवाब मिले तो इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से यह पूछा गया कि उनके पास पिछले पांच साल में कितने RTI आवेदन आए और उनमें से कितनों के जवाब दिए गए. साथ ही उनमें से कितने आवेदनों के अंतरिम जवाब दिए गए हैं. इन सवालों वाले आवेदन के जवाब में कहा गया कि ‘आपकी ओर से मांगी गई जानकारी बहुत अस्पष्ट और व्यापक है और इसका अनुपालन करने के लिए सार्वजनिक संसाधनों का अनुपात से कहीं ज्यादा उपयोग करना पड़ेगा और यह आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 7 ( 9) के प्रावधानों को आकृष्ट करेगा.’
बता दें कि आरटीआई के अधिनियम में कहा गया है कि 'किसी सूचना को साधारणत: उसी प्रारूप में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमे उसे मांगा गया है, जब तक की वह लोक प्राधिकारी के स्रोतों को आनुपातिक रूप से विचलित न करता हो या प्रसंगत अभिलेख की सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकूल न हो.'
सूचना के अधिकार को इसी उद्देश्य से लाया गया था कि जानकारी मांगने वाले नागरिक को सरकार की ओर से पारदर्शिता बरतते हुए जो जवाब मिले वो उसकी जिज्ञासा का अधिक से अधिक निवारण कर सके. लेकिन जिस तरह एक के बाद एक पांच RTI आवेदनों का एक जैसा ही जवाब मिला, अगर यही पारदर्शिता है तो फिर पारदर्शिता की कोई नहीं परिभाषा बनानी पड़ेगी.