
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) के विरोध में अब जाति का एंगल भी सामने आ गया है. पिछड़ों के एक संगठन ने दावा किया है कि ड्राफ्ट एनआरसी से 4 लाख पिछड़ों को बाहर कर दिया गया है. संगठन ने इसके विरोध में राज्य में कई जगहों पर रेल रोको आंदोलन भी किया.
ऑल इंडिया मतुआ महासंघ ने पश्चिम बंगाल के कई जिलों में बुधवार को रेल रोको आंदोलन चलाया. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, संगठन के एक पदाधिकारी ने बताया, 'असम में एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट से 40 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया है. इनमें चार लाख लोग हमारे समुदाय के हैं. हमारे समुदाय के लोगों की नागरिकता रातोरात छीन ली गई है, इस पर हम चुप नहीं रह सकते. हमने अपना विरोध जताने के लिए कई जगह ट्रेन रोकी हैं.
पूर्वी रेलवे के प्रवक्ता के मुताबिक 27 रेलवे स्टेशन पर इस विरोध प्रदर्शन की वजह से ट्रेन की आवाजाही बाधित हुई है. इस मसले पर राजनीति भी शुरू हो गई है. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि मतुआ समुदाय को ममता बनर्जी जैसे नेताओं के साए से बाहर आना चाहिए.
गौरतलब है कि असम में नागरिकता का ड्राफ्ट रजिस्टर जारी किया गया है, जिसमें करीब 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नही माना गया है. करीब 2 करोड़ 89 लाख लोगों को नागरिकता दी गई है. असम की कुल आबादी करीब 3 करोड़ 29 लाख है और चुनावों से लेकर अब तक बांग्लादेशी घुसपैठियों और नागरिकता का मसला सुर्खियों में रहा था.
असम का एनआरसी साल 1951 में बने एनआरसी को अपडेट करने की ही कवायद है. इसमें उन सभी लोगों को शामिल किया जा रहा है जिनका नाम 1971 से पहले की मतदाता सूची या 1951 के एनआरसी में शामिल है.
अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को एनआरसी अपडेशन की पूरी प्रक्रिया को तीन साल के भीतर पूरा करने का आदेश दिया था. केंद्र सरकार ने इस रजिस्टर को अपडेट करने के लिए 288 करोड़ रुपये मंजूर किए थे.