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जब ममता ने ही उठाया था बांग्लादेशियों का मसला, गुस्से में स्पीकर की तरफ फेंका था कागज

एनआरसी के मसले पर आज आगबबूला दिख रहीं ममता बनर्जी पहले खुद ही अवैध बांग्लादेश‍ि‍यों का मसला उठाती रही हैं. एक बार तो लोकसभा में इस मसले को उठाते हुए वह इतने गुस्से में आ गईं कि स्पीकर की तरफ कागज फेंक दिया था.

ममता बनर्जी (फाइल फोटो: Getty) ममता बनर्जी (फाइल फोटो: Getty)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 02 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 1:48 PM IST

असम के एनआरसी पर आज आगबूबला हो रहीं तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता ममता बनर्जी कभी खुद अवैध बांग्लादेशि‍यों के मसले को उठाती रही हैं. साल 2005 के अगस्त महीने में लोकसभा में इस मसले को उठाते हुए वह इतनी गुस्से में आ गईं थीं कि उन्होंने स्पीकर की तरफ कागज फेंक दिया और इस्तीफा तक दे दिया था.

यह 4 अगस्त, 2005 की बात है. लोकसभा में ममता बनर्जी ने गुस्से में आकर स्पीकर के चेयर की तरफ कागज के कई टुकड़े फेंक दिए थे. उस समय सदन की अध्यक्षता डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल कर रहे थे. असल में ममता बनर्जी का गुस्सा चटवाल से नहीं बल्कि तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से था, जो उस समय चेयर पर नहीं थे.

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ममता ने कहा-वोटर लिस्ट में अवैध बांग्लादेश‍ियों का नाम

द टेलीग्राफ की 5 अगस्त, 2005 की खबर के अनुसार ममता बनर्जी अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का मसला सदन में उठाना चाहती थीं. अटवाल ने बताया कि लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने इसकी इजाजत नहीं दी है. तब ममता पश्चिम बंगाल में विपक्ष में थीं. वह इससे गुस्से में आ गईं. उन्होंने कहा, 'बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों का नाम पश्चिम बंगाल की मतदाता सूचियों तक में शामिल कर लिया गया है. राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही है, इसलिए इस मसले पर चर्चा होनी चाहिए.'  

अटवाल ने बताया कि इस मसले पर चार घंटे पहले ही सत्र की शुरुआत में चर्चा हो चुकी है. इस पर ममता ने कहा, 'जब भी मैं इस मसले को उठाना चाहती हूं, मुझे बोलने नहीं दिया जाता. इस सदन की सदस्य होने के नेता मेरा यह अधिकार है कि अपनी जनता की आवाज उठाऊं.'  तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी. कांग्रेस और वाम दलों के सांसदों ने ममता के इस व्यवहार की आलोचना की थी.

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संसद की सदस्यता से दिया था इस्तीफा

वह इतने गुस्से में आ गईं कि उन्होंने डिप्टी स्पीकर को संसद की सदस्यता से अपना इस्तीफा सौंप दिया और सदन से बाहर चली गईं. उन्होंने कहा कि जब वह अपनी जनता की आवाज नहीं उठा सकतीं, तो उनके सांसद बने रहने का कोई मतलब है. हालांकि कुछ तकनीकी कारणों से उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया.

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