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मां से दूर जाने के बाद एक बेटी को आ रही है उसकी याद और मदर्स डे पर उसने अपनी भावनाओं का ताना-बाना ऐसा पिराेया है कि हर पढ़ने वाले को समझ आ रहा है कि मां से बेहतर दोस्त इस दुनिया में और कोई नहीं हो सकता -
जब मैं बचपन में वर्षों बाद ननिहाल जाती थी तो मुझे समझ में नहीं आता था कि मम्मी नानी के साथ घंटों क्या बातें करती रहती थीं. मैं बस तब नानी के चेहरे को चुपचाप देखा करती थी, जिसके भाव हर बात पर बदलते रहते थे. अब जब घर से दूर हूं तो वो सारी बातें समझ में आने लगी हैं.
घर से दूर रहते हुए अर्सा हो गया है. जब भी जाना होता है पहले से प्लान बनाती हूं कि कहां-कहां जाना है. मगर घर जाते ही कहीं जाने का मन नहीं होता. मन बस यही करता है कि मम्मी से बैठकर घंटों बाते करती रहूं. इसी लम्हे को जीते समय समझ आता है वो कभी ना खत्म होने वालामां और नानी की बातों का सिलसिला. मां संग अब मेेरे इसी व्यवहार को देखकर पापा भी कभी-कभी कह देते हैं, 'अरे तुम्हारे पास मुझसे बातें करने के लिए समय ही नहीं है.' दरअसल मां से बेटी का रिश्ता ही ऐसा होता है कि कभी एक-दूसरे को समझना नहीं पड़ता. ऐसा लगता है कि वो बिना देखे, बिना कुछ कहे सब कुछ एक दूसरे के बारे में जान सकती हैं.
जन्म से लेकर बड़े होने तक वो मां ही होती है जिससे हर लड़की अपनी सारी बातें शेयर करती है. मामला चाहे उसके शरीर का हो, भावनाओं का हो या दुनिया का. वह मां ही होती है जो एक मनोचिकित्सक का काम करती है जब उसकी बेटी बड़ी हो रही होती है. लड़कियों के शरीर में युवावस्था के दौरान जितने भी बदलाव आते हैं, उससे संबंधित सारे सवालों के जवाब तो मां को ही देने होते हैं. वह कभी अपनी बेटी के बेवकूफी भरे सवालों पर हंसती है तो कभी उसकी तकलीफों को देखकर रो भी लेती है.
एक दोस्त की तरह वह आपके क्रश और ब्वॉय फ्रेंड की बातें भी बड़े आराम से सुन लेती है और मानें या ना मानें शायद एक मां ही आपको सबसे पहले इंसान की परख करने का हुनर सिखाती है, अनुभवों से सीखने का दौर तो बहुत बाद में आता है. आपके साथ हंसी-मजाक भी कर लेती है. आपके करियर और पढ़ाई को लेकर सीरियस भी रहती है. मां दरअसल एक ऐसी दोस्त है जिसकी पहली प्राथमिकता आप होते हैं. यानी वो आपकी बेस्ट फ्रेंड होती है.