
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की ओर से राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाये जाने के प्रस्ताव को खुद राहुल ही क्यों नहीं स्वीकार कर रहे हैं, ये सवाल सबकी जुबान पर है. 'आज तक' को मिली जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी संगठन का चुनाव लड़ कर ही अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज़ होना चाहते हैं. वो संगठन का चुनाव लड़कर ये साबित करना चाहते हैं कि कांग्रेस एक लोकतांत्रित पार्टी है. राहुल साबित करना चाहते हैं कि वो नेहरू गांधी परिवार का वारिस बन के नहीं बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं की पसंद की वजह से अध्यक्ष बने हैं.
राहुल गांधी एक तीर से दो निशाना साधने की जुगत में हैं. एक तो परिवारवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी को जवाब देना चाहते हैं साथ ही पार्टी में खुद की नेतृत्व क्षमता पर उठ रहे सवालों को भी उन्हें जवाब देना है. राहुल के करीबी इस बात को लेकर भी आश्वस्त हैं कि फिलहाल राहुल के खिलाफ कोई मज़बूत उम्मीदवार नहीं खड़ा होगा. ऐसा नहीं है कि राहुल पार्टी में लोकतंत्र की वकालत पहली बार कर रहे हों, राहुल गांधी ने ही यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में चुनाव भी कराये थे.
क्षमता के मुताबिक चुनें पदाधिकारी
2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 15 सीट पर अमेरिका की तर्ज पर कैंडिडेट के चयन के लिए इलेक्टोरल कॉलेज बनाया था. हालांकि राहुल की पार्टी के भीतर चुनाव कराने के लेकर काफी आलोचना भी हुई. इससे पैसे का चलन बढ़ने, नेताओं के बेटों को आसानी से पद मिलने और आपस में मन-मुटाव बढ़ने के भी आरोप सामने आए. फिलहाल पार्टी में सदस्यता अभियान चल रहा है जो 15 मई तक ख़त्म हो जायेगा. फिर ब्लॉक, ज़िला और प्रदेश के डेलिगेट्स चुने जायेंगे. ये डेलिगेट्स एआईसीसी के डेलिगेट्स चुनेंगे और यही डेलिगेट्स चुनाव होने की सूरत में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करेंगे. राहुल कांग्रेस वर्किंग कमिटी के आधे सदस्यों को भी चुनाव के जरिए ही लाना चाहते हैं.
चुनाव आयोग ने कांग्रेस को इस साल के अंत तक संगठन के चुनाव पूरा करा लेने की आखिरी मोहलत दी है. उम्मीद है कि, राहुल पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान अक्टूबर तक संभाल लेंगे. हालांकि पार्टी के कुछ नेता चाहते रहे कि, कांग्रेस वर्किंग कमेटी से राहुल गांधी को अध्यक्ष बना के कांग्रेस के अधिवेशन में उस पर मुहर लगवा दी जाये. लेकिन जब पार्टी में कोई चुनौती न हो तो लोकतंत्र में आस्था दिखाने का मौका मिल रहा है तो राहुल इस मौके को आखिर क्यों छोड़ना चाहेंगे.