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अध्यक्ष बनने के बाद बेमिसाल रहा राहुल के एक साल का कार्यकाल

गुजरात विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद नतीजों से कांग्रेस कैडर में यह संदेश जरूर गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपराजेय नहीं है और उनको चुनौती दी जा सकती है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो-पीटीआई) कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फोटो-पीटीआई)
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:08 AM IST

कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए राहुल गांधी ने 11 दिसंबर, 2017 को नमांकन दाखिल किया था, इसके साथ ही उन्हें पार्टी का अध्यक्ष मान लिया गया था. हालांकि इसकी घोषणा पांच दिन बाद यानी 16 दिसंबर को हुई. राहुल गांधी के लिए यह एक इत्तेफाक था, जब ठीक एक साल बाद 11 दिसंबर, 2018 को कांग्रेस हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता पर काबिज हुई.

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राहुल गांधी ने जब कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे वक्त तक अध्यक्ष रहीं अपनी मां सोनिया गांधी से पार्टी की कमान अपने हाथों में ली, तब महज चार राज्यों-कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम और पुड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकार थी. उनके सामने लगातार हार से हताश हो चुके कांग्रेस संगठन में नई जान फूंकने की चुनौती थी. यही नहीं, सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की अजेय जोड़ी भी थी. 

गुजरात चुनाव में मोदी के छूटे पसीने

अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के समक्ष सबसे पहली चुनौती गुजरात विधानसभा थी. वो बखूबी जानते थे कि राज्य में लगातार हार से संगठन का मनोबल धरातल पर है. इसके साथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गृहक्षेत्र होने के लिहाज से इस चुनाव के नतीजों से निकलने वाले राजनीतिक संदेश को भी वे बखूबी समझ रहे थे. राहुल ने गुजरात में लोकप्रिय हो चले युवा ब्रिगेड हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी को एक मंच पर ला दिया. जिस वजह से पार्टी को नई ऊर्जा मिली.

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इसके साथ ही राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व को अपना हथियार बनाया और जमकर मठों और मंदिरों में दर्शन किए. हालांकि गुजरात में कांग्रेस चुनाव हार गई, लेकिन ग्रामीण इलाकों से बीजेपी का लगभग सफाया हो गया. हार के बावजूद गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों से कांग्रेस कैडर में यह संदेश जरूर गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपराजेय नहीं है.

कर्नाटक में हारी हुई बाजी पलटी

गुजरात के बाद बड़े राज्यों में कर्नाटक के चुनाव हुए, जहां कांग्रेस की सरकार थी. कर्नाटक के चुनावों में जनता ने खंडित जनादेश दिया और बीजेपी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी. लेकिन राहुल ने बड़ा दांव खेलते हुए जेडी (एस) के एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश करते हुए समर्थन का ऐलान कर दिया.

हालांकि राज्यपाल ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया और आनन-फानन में बीएस येदियुरप्पा को शपथ भी दिला दी. लेकिन राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस हारी हुई बाजी को पलटने पर आमादा थी.

मामला न्यायालय पहुंचा और देर रात में कांग्रेस की तरफ से राज्यपाल के फैसले के खिलाफ अपील की गई जिसमें कांग्रेस की जीत हुई. चूंकि राज्यपाल ने येदियुरप्पा को शपथ दिला दी थी इसलिए उन्हें बहुमत साबित करने का मौका देना था. लेकिन बहुमत परीक्षण के दिन संख्याबल न होने के कारण येदियुरप्पा ने वॉक ओवर दे दिया और इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद कांग्रेस-जेडीएस सरकार का रास्ता साफ हो गया.

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राहुल ने इस जीत को महागठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के मंच में तब्दील कर दिया जिसमें सभी गैर एनडीए दलों के आला नेताओं ने शिरकत की.

मोदी के चैलेंजर के तौर पर खुद को स्थापित किया

कर्नाटक के बाद राहुल गांधी ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चैलेंजर के तौर पर पेश किया. संसद में टीडीपी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में बहस के दौरान उन्होंने राफेल, नोटबंदी, जीएसटी, कृषि संकट और बेरोजगारी को हथियार बनाते हुए पीएम मोदी पर सीधा हमला किया. इसके साथ ही उन्होंने आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर एनडीए में सेंधमारी भी शुरू कर दी. उन्होंने एनडीए गठबंधन के बड़े दल टीडीपी को अपनी तरफ लाने में कामयाबी हासिल की.  

हिंदी पट्टी के राज्यों में कांग्रेस की वापसी

सीटों के लिहाज से अहम उत्तर भारत के राज्यों से लगभग साफ हो चुकी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती मध्य प्रदेश, छ्त्तीसगढ़ और राजस्थान में वापसी करने की थी. राहुल गांधी ने इस चुनौती से मुकाबले के लिए इन राज्यों में कई गुटों में बंट चुकी कांग्रेस को एकजुट किया.

मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एक ओर पर्दे के पीछे सक्रिय रहे तो वहीं राजनीतिक तिकड़मों के माहिर कमलनाथ को प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी दी गई. वहीं युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार की कमान सौंपी गई. कहना न होगा कि राहुल की रणनीति रंग लाई और आरएसएस-बीजेपी के किले में कांग्रेस के इन दिग्गजों ने अपने-अपने क्षेत्र में बेहतरीन नतीजे दिए.

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छत्तीसगढ़ में लगभग नेतृत्व विहीन हो चुकी पार्टी की अप्रत्याशित जीत के राहुल गांधी ने खूब मेहनत की. उन्होंने नए सिरे से संगठन खड़ा किया पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को बाहर का रास्ता दिखाया और जब सब मान कर चल रहे थे कि जोगी फैक्टर के चलते कांग्रेस को नुकसान होगा और बीजेपी एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो जाएगी. कांग्रेस ने दो तिहाई बहुमत हासिल कर सबको चौंका दिया.

राजस्थान के इतिहास में अब तक के न्यूनतम स्तर पहुंच चुकी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती थी. राहुल ने सचिन पायलट, अशोक गहलोत, सीपी जोशी सरीखे दिग्गजों को एकजुट किया. यहां भी कांग्रेस ने पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग पांच गुना सीटें हासिल करते हुए सत्ता में वापसी की.

स्टालिन ने राहुल को बताया पीएम उम्मीदवार

तमिलनाडु में यूपीए की सहयोगी दल डीएमके के अध्यक्ष एमके स्टालिन ने उस वक्त सबको चौंका दिया जब तीन राज्यों में कांग्रेस की सफलता को देखते हुए उन्होंने राहुल गांधी का नाम का प्रस्ताव विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर यह कह कर किया उनमें यह क्षमता है कि वो फासीवादी बीजेपी को हरा सकते हैं.

हालांकि स्टालिन के इस बयान पर टीएमसी, समाजवादी पार्टी ने सहमति नहीं जताई और एनसीपी भी पहले कह चुकी है कि चुनाव के नतीजों से पहले पीएम के उम्मीदवार की घोषणा न हो. हालांकि शरद पवार यह भी कह चुके हैं कि चुनाव के बाद सबसे बड़े दल का नेता ही पीएम होगा.

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यही नहीं, तीन राज्यों के परिणाम कांग्रेस अध्यक्ष के तौर राहुल गांधी को एनडीए की सहयोगी दल शिवसेना की भी तारीफ मिली. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी के अहंकार की आंधी में राहुल अपनी विनम्रता की बदौलत ही टिक पाए.

बहरहाल, राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता. अगला लोकसभा चुनाव फाइनल है, तो सेमीफाइनल में जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. लिहाजा कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के एक साल को बेमिसाल तो कहा ही जा सकता है.

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