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PM को गले लगाने पर राहुल की आलोचना की तो RJD ने प्रवक्ता को पार्टी से निकाला

प्रधानमंत्री को गले लगाना को लेकर आरजेडी को उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता शंकर चरण त्रिपाठी द्वारा की गई आलोचना इतनी नागवार गुजरी कि उन्हें सीधा पार्टी से बाहर का रास्ता ही दिखा दिया.

लालू प्रसाद यादव और शंकर चरण त्रिपाठी (फाइल फोटो) लालू प्रसाद यादव और शंकर चरण त्रिपाठी (फाइल फोटो)
रोहित कुमार सिंह/वरुण शैलेश
  • पटना,
  • 23 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 5:20 PM IST

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती के बाद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रति 'अनर्गल' बयानबाजी करने वाले एक प्रवक्ता को सोमवार को पार्टी से निकाल दिया.

लोकसभा में बीते शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगा लिया था और उसके बाद अपने एक साथी को देखकर आंख मारी थी. इस पर आरजेडी ने उनकी तारीफ की थी, लेकिन उनकी पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता को राहुल की आलोचना करना महंगा पड़ गया है.

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प्रधानमंत्री को गले लगाना को लेकर आरजेडी को उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता शंकर चरण त्रिपाठी द्वारा की गई आलोचना इतनी नागवार गुजरी कि उन्हें सीधा पार्टी से बाहर का रास्ता ही दिखा दिया.

दरअसल, राहुल गांधी की इस हरकत पर शंकर चरण त्रिपाठी ने बयान दिया था कि उनका आचरण काफी बचकाना था और 2019 में प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले किसी व्यक्ति को शोभा नहीं देता था. शंकर चरण त्रिपाठी का यह बयान आरजेडी को नागवार गुजरा और उन्होंने सबसे पहले उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब मांगा. मगर 2 दिनों के बाद भी जब उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो आज पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.

गौरतलब है कि शंकर चरण त्रिपाठी एक ज्योतिष हैं और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें पिछले साल अपनी पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया था जिसके बाद भी उनके इस फैसले को लेकर काफी बवाल मचा था.

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राहुल के खिलाफ बयान के कारण गिरी गाज

आरजेडी से पहले बसपा प्रमुख मायावती राहुल गांधी के प्रति 'अनर्गल' बयानबाजी करने वाले पार्टी के उपाध्यक्ष जयप्रकाश सिंह को पार्टी से निष्कासित कर चुकी हैं. मायावती ने सिंह को यह बयान देने के तुरंत बाद अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था. सिंह की 'अनर्गल' बयानबाजी को बसपा के सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत यह फैसला किया गया था.

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