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बुलंदशहर गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट सरकारी पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी को लेकर दिशा-निर्देश जारी करने पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट में इस बात पर बहस चल रही है कि किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान देने वाले मंत्रियों के व्यवहार और कर्तव्य पर क्या निर्देश जारी हों. बुलंदशहर में मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप केस में यूपी के पूर्व मंत्री के कथित विवादित बयान के बाद कोर्ट दायर याचिका की सुनवाई कर रहा है.
अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल
पिछली सुनवाई में वरिष्ठ न्यायविद फली नरीमन ने ही ये कहा था कि कुछ दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट को जारी करने चाहिए. बुधवार को सुनवाई के दौरान फली नरीमन ने कहा कि क्या हम किसी व्यक्ति की टिप्पणी करने की संवैधानिक आजादी वापस ले सकते हैं, वो आज़म खान हों या कोई और?
इस पर कोर्ट ने पूछा कि किसी सरकारी पद पर रह कर इस तरह का बयान किसी रेप पीड़िता पर कर सकते हैं? क्या सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों को ऐसा करने का अधिकार है?
संविधान में टिप्पणियों पर रोक नहीं
नरीमन ने कहा हमें देखना होगा हम कहां तक जा सकते हैं. हमे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और 19 (2) (पाबंदियों) को लेकर काफी सावधान रहना होगा. नरीमन ने बताया कि संविधान में इस तरह की टिप्पणियों पर कोई रोक नहीं है.
अभिव्यक्ति पर तर्कसंगत पाबंदी
इस पर कोर्ट ने 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाई गई तर्कसंगत पाबंदियों का जिक्र किया, जिसमें कानून-व्यवस्था, नैतिकता और शिष्टाचार की बात पर बल दिया गया है. कोर्ट ने ये भी कहा कि इस मसले को संविधान में दिए गए मूल कर्तव्यों के परिपेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए.
रेप पीड़िता पर टिप्पणी
जस्टिस दीपक मिश्रा ने सवाल पूछा, 'क्या संविधान का अनुछेद 19(1)(ए) और 19(2 )सम्पूर्ण है? क्या कोई भी व्यक्ति जो किसी संवैधानिक या राजकीय पद पर है उसको अधिकार है कि वो रेप जैसे जघन्य अपराध की पीड़िता पर टिप्पणी करे, जिससे पीड़िता के संवैधानिक अधिकार प्रभावित होते हों?' कोर्ट ने कहा, 'महिलाओं पर इस तरह की टिप्पणी एक संवैधानिक सवाल है क्योंकि वो एक ऐसी परेशानी से गुजर रही है, जिसमें उसकी खुद की गरिमा प्रभावित हुई हो.'
बयानबाजी पर आपराधिक अभियोजन नहीं
इस पर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस तरह के कमेंट पर कोई आपराधिक अभियोजन नहीं हो सकता क्योंकि अभी तक इस तरह के मामले के लिए कोई कानून नहीं है. अगर ऐसा होगा तो कोई कुछ बोल ही नहीं पाएगा. संसद में भी बोला जाता है, फिर तो उस पर भी विचार करना होगा.
कोर्ट ने कहा कि संसद में दिया गया बयान कोर्ट के विचार के दायरे में नहीं है. कोर्ट की तरफ से ये भी पूछा गया कि कोई कानून ना होने की वजह से क्या कोई कुछ भी टिप्पणी कर सकता है.
वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे से मांगी मदद
कोर्ट ने ये भी कहा कि उदाहरण के तौर पर अगर कोई एफआईआर दर्ज होती है तो क्या पुलिस महानिदेशक जैसे पद का अधिकारी ये कमेंट कर सकता है कि ये राजनैतिक साजिश का नतीजा है. आखिर फिर जांच का सवाल ही कहां रह जाएगा? कोर्ट ने वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे को कोर्ट की मदद के लिए आग्रह किया है.
20 अप्रैल को होगी अगली सुनवाई
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में मां-बेटी से गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट में पीड़ित परिवार की ओर से किसलय पांडे ने याचिका दायर की है. इस गैंग रेप के मामले में यूपी के पूर्व मंत्री आज़म खान ने कथित रूप से ये बयान दिया था कि ये एक राजनीतिक साजिश थी. बाद में आज़म खान ने अपने बयान के लिए बिना शर्त कोर्ट से माफी मांगी थी. इस मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी.