
तमिलनाडु में तूतीकोरिन के पास चिदंबरनार बंदरगाह पर आसपास के बिजली घरों को देसी कोयले की खेप लगातार सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार के साथ करार किया है. इसके मुताबिक सरकार दो कोल जेटी का विकास करेगी. इस पर आठ सौ करोड़ रुपये की लागत आएगी.
केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने एमओयू पर दस्तखत होने के बाद इसके फायदे गिनाते हुए कहा कि अभी चिदंबरनार पोर्ट के कोल जेटी एक को डेव्लप कर उसकी गहराई 14 मीटर से 16 मीटर की जाएगी. इससे पोर्ट पर पचास हजार टन के जहाज के बजाय एक लाख टन के जहाज लंगर डाल सकेंगे. कार्यक्षमता की बात करें तो फिलहाल साल भर में इन कोल जेटी से सिर्फ सवा छह मीट्रिक टन माल की आमद होती है लेकिन नये स्वरूप में ये क्षमता लगभग चार गुना बढ़कर 24 मीट्रिक टन सालाना हो जाएगी.
इस परियोजना को नए सिरे से बनाया जाता तो चार हजार करोड़ रुपये का खर्च आता लेकिन मरम्मत और विकास के लिए सिर्फ आठ सौ करोड़ में काम चकाचक हो जाएगा. इन दोनों जेटी को विकसित करने के लिए एमओयू में दो साल की मियाद तय की गई है.
गडकरी के मुताबिक सरकार के जहाजरानी मंत्रालय के नए उपक्रम उन्नति के तहत देश के बंद पड़े या कम काम की वजह से सुस्त पड़े बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाकर इन्हें रफ्तार देने का काम चल रहा है.
इसके बाद कोल पोर्ट दो का नंबर आएगा. तब तक सरकार दोनों पोर्ट की गहराई बारी बारी से 18 मीटर तक कर सकेगी और इसके बाद दो लाख टन के जहाज वहां लंगर डालकर कोयला उतार सकेंगे. इस पूरे प्रोजेक्ट का असर ये होगा कि अभी जिन तटवर्ती बिजली घरों के लिए इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीकी खदानों का कोयला मंगाया जाता है उसकी जगह अच्छी गुणवत्ता वाले सस्ते देसी कोयले की सप्लाई होने लगेगी. यहां उतरने वाले कोयले को विशाल कनवेयर बेल्ट के जरिये सीधे बिजली घर के बॉयलर तक पहुंचाया जाएगा. यानी ढुलाई का खर्च भी खत्म.
बिजली की लागत में पचास पैसे प्रति यूनिट की कमी आएगी. हमारे बंदरगाहों की कमाई बढ़ेगी और बिजली कंपनियों के साथ उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा. स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. यानी इस परियोजना में सभी की जय जय होनी तय है.