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कभी लाहौर कोर्ट में हुई थी सुनवाई, 75 साल बाद अतिक्रमण मुक्त हुआ दिल्ली का ये तालाब

फिलहाल एमसीडी ने तालाब के आसपास जमा कचरे और मलबे को हटा दिया है. पुलिस की मौजूदगी में अवैध निर्माण कार्य हटा दिए और डीडीए ने एमसीडी के पार्क को भी हटाकर अब प्रशासन के सहयोग से कुएं को साफ कर तालाब को पुनर्जीवित करने की कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया है.

दिल्ली हाई कोर्ट दिल्ली हाई कोर्ट
सुरभि गुप्ता/अमित कुमार दुबे/BHASHA
  • नई दिल्ली,
  • 04 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 8:15 PM IST

दक्षिणी दिल्ली के खिड़की गांव का तालाब 75 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अतिक्रमण से मुक्त हुआ है. ब्रिटिश काल में अवैध कब्जे के शिकार हुए 'खिड़की जोहड़' को पुनर्जीवित करने की मुहिम गांव के सैनी परिवार की तीन पीढ़ियों की जद्दोजेहद का नतीजा है.

75 साल की कानूनी लड़ाई

सैनी परिवार की तीसरी पीढ़ी के पक्षकार संदीप सैनी ने बताया कि 75 साल की कानूनी और प्रशासनिक लड़ाई के बाद अतिक्रमण से मुक्त हुए तालाब की जमीन को साफ कर गत 26 जनवरी को पहली बार इस बार गणतंत्र दिवस मनाया गया. बीचोंबीच स्थित प्राचीन कुंआ आज भी इसके जलस्रोत के रूप में तालाब के वजूद को साबित करता है.

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लाहौर हाई कोर्ट में लगी थी फरियाद

उन्होंने बताया कि साल 1942 में गांव के कुछ लोगों ने सात बीघा 17 बिस्वा क्षेत्रफल में फैले इस तालाब पर अवैध कब्जा कर लिया था. इस मामले पर सैनी के दादा मुंशीराम ने तत्कालीन लाहौर हाई कोर्ट में फरियाद लगाई थी. अदालत ने 1944 में दस्तावेजी सबूतों के आधार पर शिकायत को सही पाते हुए गांव की संपत्ति के रूप में दर्ज तालाब को कब्जामुक्त कराने का आदेश दिया था.

तालाब के आसपास अवैध निर्माण

उन्होंने बताया कि अदालत के आदेश का पालन तो नहीं हुआ, बल्कि इसके उलट कब्जाधारकों ने तालाब के चारों तरफ कचरा और मलबा डालकर आसपास अवैध निर्माण शुरू कर दिया. इसके बाद सैनी के पिता खुशहाल सिंह सैनी ने 1965 में दिल्ली स्थित राजस्व मामलों की विशेष अदालत में न्यायाधीश समशेर सिंह के समक्ष वाद दायर किया.

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सभी निर्माण कार्य हटाने का आदेश

दिल्ली सरकार के राजस्व दस्तावेजों में खिड़की गांव का सात बीघा 17 बिस्वा क्षेत्रफल वाला खसरा नंबर 20 पर आज भी तालाब के रूप में दर्ज है. इसी एकमात्र सबूत के आधार पर अदालत ने तालाब को कब्जे से मुक्त कर सभी निर्माण कार्य हटाने का आदेश दिया.

सैनी ने बताया कि कालांतर में दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव होने और तमाम सरकारी एजेंसियों का दखल बढ़ने के साथ 'खिड़की जोहड़' सरकारी दस्तावेजों के साथ जमीन पर अपना वजूद वापस पाने में नाकाम रहा. साल 2009 में इस तालाब को दिल्ली के लुप्त हो चुके लगभग 700 जलाशयों की उस सूची में शामिल किया गया, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर सरकार द्वारा तैयार की गई थी.

तालाब का मूल स्वरूप बहाल करने का आदेश

जलाशयों के संरक्षण से जुड़ी सामाजिक संस्था तापस के संयोजक विनोद जैन की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने साल 2012 में एक बार फिर 'खिड़की जोहड़' सहित राजधानी में अवैध कब्जों के शिकार हुए 683 तालाब, कुएं और जलाशयों को पुनर्जीवित करने का दिल्ली सरकार को आदेश दिया. अदालत ने 'खिड़की जोहड़' पर नगर निगम द्वारा बनाए गए पार्क हो हटाकर तालाब का मूल स्वरूप बहाल करने को भी कहा.

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इस आदेश का भी पालन नहीं होने पर सैनी ने जनकल्याण मोर्चा के बैनर तले साल 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की. अदालत ने तालाब को कब्जा मुक्त कराने के दशकों से हो रहे अदालती आदेशों का पालन नहीं हो पाने पर स्थानीय प्रशासन से नाराजगी जताते हुए ना सिर्फ तालाब बल्कि तालाब के वजूद को साबित करने वाले प्राचीन कुएं को भी अतिक्रमण से मुक्त कराने का आदेश दिया था.

सैनी ने बताया कि अवमानना याचिका पर हुए आदेश के बावजूद आरडब्ल्यूए को नगर निगम, डीडीए और दिल्ली सरकार की एजेंसियों से तालाब को अतिक्रमण से मुक्त कराने में दो साल लग गए. फिलहाल एमसीडी ने तालाब के आसपास जमा कचरे और मलबे को हटा दिया है. पुलिस की मौजूदगी में अवैध निर्माण कार्य हटा दिए और डीडीए ने एमसीडी के पार्क को भी हटाकर अब प्रशासन के सहयोग से कुएं को साफ कर तालाब को पुनर्जीवित करने की कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया है.

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