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'अच्छे बच्चे ज्यादा सवाल नहीं पूछते, वो चुपचाप पढ़ाई करते हैं.' यह बात हम सभी ने अपने घरों या स्कूलों में जरूर सुना होगा. आप भी इस बात के भुक्तभोगी जरूर होंगे कि आपने स्कूल, कॉलेज में कोई सवाल पूछा हो और पूरे क्लास में ठहाके की आवाज गूंज उठी हो. हम में से कई लोग इससे डरकर सवाल पूछना ही बंद कर देते हैं.
एक दिन मैंने भी 9वीं क्लास में द्वितीय विश्वयुद्ध चैप्टर पढ़ने के दौरान अपने शिक्षक से पूछा था, 'हिटलर अच्छा आदमी था या बुरा'. शिक्षक ने डांट कर बैठा दिया. पूरी क्लास मुझ पर हंस रही थी कि बड़े आए अच्छे आदमी और बुरे आदमी का फैसला करने. मुझे दुख तो था लेकिन हंसी का नहीं बल्कि जवाब नहीं मिलने का. इतिहास पढ़ने में मुझे काफी दिलचस्पी रही है, आज भी पढ़ती हूं. सोचती हूं कि अगर उस समय और रुचि पैदा कर पाती तो शायद जिंदगी और बेहतर कुछ कर पाती.
मेरी तरह से इस देश में लाखों ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो हमेशा सवाल पूछने से झिझकते रहते हैं. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण घर-घर में व्यापत वह मान्यता है जिसके मुताबिक बड़े लोगों से काउंटर सवाल करना धृष्टता समझा जाता है. स्कूल में भी किसी सवाल पर बार-बार तर्क करना बेहूदगी का लक्षण माना जाता है. इन्हीं चीजों के कारण बच्चों में सवाल करने की इच्छा खत्म होती जाती है. सवाल खत्म होने के साथ क्रिएटिविटी भी घटती जाती है. वही समाज विकास कर सकता है जो सवाल पूछना और सुनना सिखाता हो.
यह कहानी है एमए में पढ़ाई कर रही एक छात्रा की, जिन्होंने अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया है. अगर आपके पास आपकी जिंदगी से जुड़ी कोई भी खास यादें हों तो aajtak.education@gmail.com पर भेज सकते हैं, जिन्हें हम अपनी वेबसाइट www.aajtak.in/education पर साझा करेंगे.