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भीमा कोरेगांव: SC ने अगले हफ्ते के लिए सुरक्षित रखा फैसला, मांगा लिखित जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने अर्बन नक्सलियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को खतरे को लेकर चल रही सुनवाई के मामले में अपना फैसला अगले हफ्ते के लिए सुरक्षित रख लिया है.

नजरबंद पांच कार्यकर्ता और विचारक नजरबंद पांच कार्यकर्ता और विचारक
भारत सिंह/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:28 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव विवाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को 'अर्बन नक्सल' से कथित खतरे के मामले में चल रही सुनवाई में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत ने दोनों पक्षों से इस मामले में शनिवार तक लिखित जवाब देने को कहा है. तब तक सभी पांच आरोपियों को उनके घरों में नजरबंद रखा जाएगा. महाराष्ट्र पुलिस को सुप्रीम कोर्ट के सामने केस डायरी पेश करनी होगी.  

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इस मामले में अपनी गिरफ्तारी और ट्रांजिट रिमांड को रोकने को लेकर याचिकाकर्ताओं- सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, वर्नोन गोंजालविस और अरुण फरेरा की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, वृंदा ग्रोवर, आनंद ग्रोवर जैसे वकील पेश हुए.

सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और महाराष्ट्र पुलिस की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अपनी दलीलें रखीं. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएम खानविलनकर की बेंच कर रही है.

पढ़ें, क्या जिरह हुई गुरुवार की सुनवाई में-

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वृंदा ग्रोवर और आनन्द ग्रोवर ने आरोपियों की 'कॉमरेड प्रकाश को लिखी गई चिट्ठियों' पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि सुधा भार्गव हिंदीभाषी हैं, लेकिन जो चिट्ठी उनकी लिखी बताई जा रही है उसमें मराठी शब्द भी हैं.

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इस चिट्ठी को देखते हुए बेंच ने टिप्पणी की, 'हां, यह मराठीभाषी ही लिख सकता है. साथ ही लिखने में आधा चन्द्रमा भी मराठी ही इस्तेमाल करते हैं.'

इससे पहले सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'नौ महीने हो गए लेकिन माओवादी होने का आरोप लगा कर भी सरकार ट्रांजिट रिमांड के लिए अर्जी नहीं लगा पाई. अब अचानक यह कदम क्यों उठाया जा रहा है? बिना कोर्ट आदेश के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस बल का ये एक्शन कतई गैरकानूनी था.' उन्होंने कहा कि ट्रांजिट रिमांड की अर्जी भीमा कोरेगांव पर आधारित है, लेकिन पुलिस द्वारा पेश की जा रही तीन चिट्ठियों में इसका कहीं जिक्र नहीं है.

इसके बाद कोर्ट ने पुलिस की केस डायरी तलब की. डायरी देते हुए तुषार मेहता बोले ये मराठी में है. इस पर कोर्ट ने कहा कि हम मराठी समझ लेंगे. इस पर सिंघवी ने कहा कि इस बेंच में मराठी जानने वाले जज हैं इसलिए आपको आसानी होगी. हमें ये सुविधा नहीं है.

हरीश साल्वे ने कहा कि अगर इस जांच से गैरकानूनी काम करने वालों की करतूतों का खुलासा हो रहा है तो जांच आगे बढ़नी चाहिए. उन्होंने एसआईटी बनाने की मांग पर कहा कि आजकल तो सभी पीआईएल में एसआईटी बनाने की ही याचना होती है, क्योंकि कोर्ट भी अक्सर एसआईटी बनाकर जांच का आदेश दे देता है.

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इससे पहले, हरीश साल्वे ने कहा, कई मामलों में कोर्ट एसआईटी बनाती है. इससे जनता में ये छवि बन रही है कि सीबीआई, एनआईए जैसी एजेंसियां अविश्वसनीय हैं, तभी लगभग हर पीआईएल में एसआईटी की मांग कॉपी-पेस्ट की तरह होती है.

सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा कि एक टीवी चैनल में हुए डिस्कशन में भी इन चिट्ठियों का जिक्र हुआ. वे चिट्ठियां न्यूज चैनल को कैसे मिलीं? इतने गोपनीय दस्तावेज कैसे सार्वजनिक हुए? सिंघवी ने चिट्ठी का हवाला दिया तो हरीश साल्वे ने याचिकाकर्ताओं के पास चिट्ठी आने पर सवाल उठाया. इस पर सिंघवी ने कहा कि यह चिट्ठी तो कई समाचार चैनलों की वेबसाइट पर मौजूद है.

सुनवाई के दौरान बेंच में शामिल जस्टिस खानविलकर ने पूछा कि जो मैटेरियल पुलिस ने इकट्ठा किया है, उसका गिरफ्तार लोगों से क्या संबंध है? इसी दौरान तुषार मेहता ने आरोपियों के बीच हुए संवाद का ब्यौरा दिया.

तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रकाश चेतन और जी साईबाबा एक ही आदमी के नाम हैं. वह न केवल हिंदी जानता है बल्कि हिंदी में भाषण भी देता है. उसको लिखी चिट्ठी में कई षड्यंत्रों और ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो (ERB) की मीटिंग का भी जिक्र है. उन्होंने कहा कि आरोपियों से मिले दस्तावेजों में कई जगह ऐसी गंभीर बातें हैं जिन्हें कोर्ट में बोलकर पढ़ना उचित नहीं है. आरोपियों के पत्राचार में कई कोड हैं. मसलन लो इंटेंसिटी कॉम्बैट को (LIC) कहा गया है. इस पर सिंघवी ने कहा कि अगर प्रकाश और साईबाबा एक ही आदमी है तो कोई जेल में रहकर कैसे चिट्ठी लिख सकता है.

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इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है और अब दोनों पक्षों से लिखित में अपना जवाब देने को कहा गया है. जवाब देने की समयसीमा आगामी शनिवार तक है.

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