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मिशन पाकिस्तानः क्या मिशन यूपी से पहले छवि सुधार में लगे हैं मोदी

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री और पार्टी के नेता इस वक्त अपना सीना चौड़ा करके कैमरों के सामने हैं.

पीएम मोदी पीएम मोदी
लव रघुवंशी
  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST

नौ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराने पर ही पूरी सरकार और पार्टी जश्न के मूड में आ गई है और ऐसा लग रहा है कि भारत ने कोई बड़ी जंग जीत ली है. चारों ओर जीत और जश्न का माहौल है. भारतीय मीडिया और जनमानस के लिए यह इस्लामाबाद फतह जैसा अवसर बन गया है. बहस और बयान से लेकर सोशल मीडिया और व्हाट्सएप तक जीतने और बदला चुका लेने का भाव महिमामंडित है.

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रह-रहकर सेना और सरकार के हवाले से ख़बरें बाहर भेजी जा रही हैं. सैनिकों की छुट्टियां रद्द, सीमावर्ती क्षेत्र खाली कराए गए, विपक्ष के नेताओं को अवगत कराया गया, तीन किलोमीटर अंदर तक पाकिस्तान में घुसे भारतीय सैनिक जैसे शीर्षक लोगों के बीच प्रसारित हो रहे हैं. जंग का माहौल और जीत का जश्न साथ-साथ जारी है.

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री और पार्टी के नेता इस वक्त अपना सीना चौड़ा करके कैमरों के सामने हैं. 11 दिनों के मौन के बाद शायद पहली बार सरकार के पास ऐसा कुछ बताने को है जिसे वो अपनी जीत और अपने सैनिकों की मौत का बदला जैसा बयान कर सकते हैं.

यह और बात है कि पाकिस्तानी मीडिया और सरकार भारत के इन दावों को मानने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि पहले खबरें आईं कि पाकिस्तान ने दो सैनिकों की मौत की खबर स्वीकार की है लेकिन बाद में पाकिस्तानी मीडिया के हवाले से ही इनका खंडन भी कर दिया गया है. ऐसे में दावों की निष्पक्षता अभी भी पुष्ट नहीं की जा सकती है.

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ऐसा माहौल तब भी था जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लाखों सैनिकों को महीनों तक सीमा पर खड़ा रखा. कितने ही सैनिक मरे और युद्ध का माहौल अखबारों से लेकर सियासी बयानों तक हवा में गोलियां दागता रहा. मोदी के समय में पाकिस्तान से बदला लेने का दृश्य इसी की पुनरावृत्ति जैसा ही है अब तक.

बदले के पीछे की राजनीति
सवाल यह है कि क्या बदला ही इस रणनीति का सबसे बड़ा हिस्सा है. या इसके कुछ और भी निहितार्थ हैं. राजनीति में कुछ भी वहीं तक नहीं रहता, जहाँ तक दिखाया और बताया जाता है. यहां भी नहीं है.

जीत और बदले की यह खबर ऐसे समय में आई है जब मोदी अपने आप को कमज़ोर होता पा रहे हैं. महाराष्ट्र की स्थितियां उनकी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार से संभाले नहीं संभल रहीं. पंजाब में नाव डगमगा रही है. गुजरात से पिछले कुछ दिनों से उन्होंने कोई अच्छी खबर नहीं सुनी है. उत्तर प्रदेश में 2014 की लहर अब एक चिपचिपी उमस में तब्दील हो चुकी है.

यह खबर ऐसे समय में आई है जब पितृतर्पण का समय पूरा हो रहा है और नवरात्रों का मौका आ गया है. इसी के साथ मोदी और उनकी पार्टी का उत्तर प्रदेश में प्रचार का समय भी आ गया है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि राज्यों में अपना प्रचार संभालने से पहले मोदी खुद को मुंह दिखाने लायक तो बनाएं.

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कई मोर्चों पर कमज़ोर पड़ती सरकार और लोगों की आलोचना झेलते मोदी के लिए जीत का यह तानाबाना एक राहत का बादल है. इसमें लोगों के सामने 56 इंच के सीने को दिखाने की गुंजाइश है और असंतुष्टों के सामने- सबका बदला लेगा ये फैजल- जैसा संवाद रचने का अवसर.

मोदी अपने मिशन यूपी और पंजाब का मंगलाचरण लिख रहे हैं. पाकिस्तान में घुसकर मारने का दावा राजनीति में संजीवनी का काम कर सकता है. यह मोदी भी जानते हैं और उनके विरोधी भी. जीत की यह पताका मतदान केंद्रों तक लहराई जाएगी.

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