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देश की सबसे बड़ी पंचायत में बीजेपी की प्रचंड जीत के साथ इन राज्यों की किस्मत का हुआ फैसला

साल 2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी ने इतिहास रचते हुए 534 लोकसभा सीटों में से 282 सीटें हासिल की थी. हालांकि इससे पहले 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को भी 295 सीटों पर जीत मिली थी.

2019 आम चुनाव में बरकरार रहा मोदी का जादू (फाइल फोटो) 2019 आम चुनाव में बरकरार रहा मोदी का जादू (फाइल फोटो)
दीपक सिंह स्वरोची
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 9:16 PM IST

  • 1984 आम चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को 415 सीटें मिली थीं
  • 2019 चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटों पर जीत हासिल कर नया इतिहास रच दिया

साल 2019 में हुई आम और राज्यों के चुनाव कई मायनों में बेहद खास रहे. लोकसभा चुनाव से लेकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव तक के परिणाम बताने के लिए काफी है कि कैसे पूरे साल देश का मूड बदलता रहा. लेकिन साल का सबसे चर्चित और परिणाम के मामले में बेहद चौंकानेवाला चुनाव लोकसभा का ही रहा.

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हालांकि एग्जिट पोल में पहले ही स्पष्ट हो गया था कि सरकार बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) की ही बनेगी लेकिन किसी को नहीं पता था कि वो अकेले 303 सीटें जीत पाएगी. वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने कुल 353 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रच दिया.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रचा इतिहास

इससे पहले कांग्रेस ने साल 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कुल 401 सीटों में से 364 सीटें हासिल की थी. वहीं 1957 में हुए दूसरे चुनाव में कांग्रेस को 403 में से 371 सीटों पर जीत हासिल की थी.

जबकि लोकसभा सीटों की कुल संख्या 543 होने के बाद पहली बार इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने 415 सीटों पर जीत हासिल की था. कांग्रेस की ये तीनों जीत आज भी इतिहास में दर्ज़ है.

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साल 2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी ने इतिहास रचते हुए 534 लोकसभा सीटों में से 282 सीटें हासिल की थी. हालांकि इससे पहले 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को भी 295 सीटों पर जीत मिली थी. यानी बीजेपी अकेले सबसे अधिक सीट जीतने वाली तीसरी पार्टी थी. लेकिन मई, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना रिकॉर्ड तोड़ते हुए 303 सीटों पर जीत हासिल कर नई लकीर खींच दी.

इतना ही नहीं इस चुनाव में कांग्रेस की नींव तक हिल गई. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को पहली बार अपने संसदीय सीट अमेठी पर हार का सामना करना पड़ा. राहुल को बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने उनके घर में घुस कर हराया.

राहुल गांधी अमेठी सीट से पहली बार साल 2004 में चुनाव लड़े थे. तब से लेकर 2014 लोकसभा चुनाव तक वो हमेशा इस सीट से सांसद चुने जाते रहे थे.

इतना ही नहीं कांग्रेस की मौज़ूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी बहुत कम अंतर से अपना गृह सीट रायबरेली बचाने में सफल रहीं. यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने 1 लाख़ 67 हजार वोटों के अंतर से बीजेपी के दिनेश सिंह को हराया. यह वहीं दिनेश सिंह हैं जो एक समय में सोनिया गांधी के क़रीबी माने जाते थे.

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2019 लोकसभा चुनाव में दिनेश सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और 3,67,740 वोट हासिल किया. वहीं सोनिया गांधी को कुल 5,34,918 मत मिले थे.

हरियाणा में  चुनाव हार कर भी सरकार बनाने में सफल रही बीजेपी

लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा लगा कि अब आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की फतह तय है और कोई भी विपक्षी पार्टी, सामने खड़े होने की हिम्मत भी नहीं कर सकती. लेकिन अक्टूबर आते-आते माहौल बदलने लगा. हरियाणा चुनाव में बीजेपी को जैसी जीत की उम्मीद थी वैसा हुआ नहीं.

कुल 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को महज़ 40 सीटें ही मिलीं. यानी बहुमत के आंकड़े से दूर. राज्य में सरकार बनाने के लिए 6 और सीटें चाहिए थी. एक समय तो ऐसा लगने लगा कि कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने में सफल हो जाएगी. लेकिन आख़िरी समय में बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली.

दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाली जननायक जनता पार्टी, हरियाणा  में 10 सीटों पर फतह कायम करने में कामयाब रही. दुष्यंत चौटाला फ़िलहाल हरियाणा सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं.

महाराष्ट्र में चुनाव जीतने और शपथ लेने के बाद भी सत्ता से बाहर हो गई बीजेपी

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वहीं महाराष्ट्र, जहां पर बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को बहुमत तो मिला लेकिन उनकी सरकार नहीं बनी. सहयोगी पार्टी शिवसेना, वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए बीजेपी से अलग हो गई और बाद में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सत्ता की कमान अपने हाथों में थाम ली.

महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव हुआ था और परिणाम 24 अक्टूबर को आया. बीजेपी 105 सीटों के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी. वहीं शिवसेना के खाते में 56 सीटें, एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के खाते में 54 और कांग्रेस के खाते में 44 सीटें आयीं.

चुनाव पूर्व गठबंधन सहयोगी दलों बीजेपी और शिवसेना ने कुल मिलाकर 161 सीटें जीती थीं. यह 288 सदस्यीय सदन में बहुमत के 145 के आंकड़े से काफी अधिक था. लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों के बीच खींचतान से दोनों में दरार पड़ गई और सरकार गठन में देरी हुई.

हालांकि महाराष्ट्र में सरकार बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प रही. 24 अक्टूबर को चुनाव परिणाम आने के बाद पहले 15 दिनों तक सरकार बनने को लेकर स्थिति साफ़ नहीं हो पाई. बाद में 12 नवंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना के बीच सरकार बनाने को लेकर लगातार चर्चा चलती रही. ऐसा लग रहा था कि उद्धव ठाकरे ही महाराष्ट्र के अगले सीएम होंगे. लेकिन 23 नवंबर 2019, दिन शनिवार सुबह 8 बजे टीवी स्क्रीन पर देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते दिखे.

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लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था कि देवेंद्र फडणवीस दूसरी बार सीएम कैसे बन रहे हैं? उन्हें कौन सी पार्टी ने सरकार बनाने के लिए सहयोग दिया है? इतने में टीवी स्क्रीन पर एनसीपी नेता अजित पवार भी शपथ लेते दिखे. लोगों को लगा कि शरद पवार ने खेल कर दिया. वो बात तो शिवसेना से कर रहे थे लेकिन सरकार बीजेपी के साथ मिलकर बना ली.

दोपहर होते-होते स्थिति साफ़ हो गई. मालूम पड़ा कि अजित पवार ने पार्टी को दग़ा देकर सरकार बनाई है. ख़ैर, बीजेपी पर विधायकों को तोड़ कर सरकार बनाने का आरोप लगा. वहीं फ्लोर टेस्ट के लिए दिए गए समय का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जहां फ़ैसला कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना गठबंधन के हक़ में गया. कोर्ट ने 26 नवंबर-2019 को फ़ैसला सुनाते हुए तय किया कि अगले 30 घंटे में फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया संपन्न करें.

आख़िरकार 26 नवंबर दोपहर दो बजे के क़रीब अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. लगभग एक घंटे बाद क़रीब 3 बजे देवेंद्र फडणवीस ने भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

जिसके बाद 28 नवंबर को एनसीपी-कांग्रेस के सहयोग से राज्य में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार बनी. शिवाजी पार्क में शाम 6.30 बजे उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली. 

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झारखंड चुनाव

झारखंड में 30 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में चुनाव होने हैं, जिसका परिणाम 23 दिसंबर को घोषित होगा. 2014 के चुनावों में बीजेपी ने 37 सीटें जीती थीं. इसके अलावा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद इन दोनों पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई.

वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के पास 19 सीटें थीं. कांग्रेस के पास छह और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) ने आठ सीटें जीती थीं. जिससे इनकी कुल सीटें 33 तक पहुंच गई थीं. बाकी बची छह सीटें अन्य पार्टियों ने जीती थीं.

चुनावी पंडितों के मुताबिक आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सबसे अधिक 28 से 38 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. लेकिन, कांग्रेस, झामुमो और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का विपक्षी गठबंधन बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है. बीजेपी हालांकि राज्य में सबसे पसंदीदा पार्टी है, लेकिन वह 81 सदस्यीय राज्य विधानसभा में सरकार बनाने के लिए आवश्यक 41 सीटों का विजयी आंकड़ा प्राप्त करती नहीं दिख रही है.

राज्यों में सिकुड़ने लगी बीजेपी

2017-18 में बीजेपी भारत के 71 फीसदी इलाके पर छा गई थी, लेकिन नवंबर 2019 तक वह फिसलकर 40 फीसदी पर पहुंच गई है. 2014 में बीजेपी की सरकार सिर्फ 7 राज्यों में थी. 2015 में 13, 2016 में 15 और 2017 में बढ़कर 19 राज्यों तक बीजेपी की कब्जा हो गया.

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