
सरकारी कोषागार में डबल लॉक में रखे गए फैजाबाद के गुमनामी बाबा के 26वें बक्से को खोलने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई सुरेश चंद्र बोस को खोसला कमीशन की ओर से 1972 में भेजे गए समन की मूल प्रति मिली. बक्से में गुमनामी बाबा के टूटे हुए चार दांत भी मिले हैं.
नेताजी के परिवार की तस्वीर भी मिली
इसके बाद रहस्यमयी गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाष चंद्र बोस होने की अटकलों को और ताकत मिल गई है. अदालत के आदेश के बाद लगातार गुमनामी बाबा के सामान के बॉक्स खोले जा रहे हैं. इससे पहले उनके बक्से से नेताजी की फैमिली फोटो मिली थी. फोटो में नेताजी के माता-पिता जानकीनाथ बोस और प्रभावती बोस के साथ परिवार के लोग दिखाई दे रहे हैं.
आखिरी दिनों में राम भवन था बाबा का ठिकाना
अपनी जिंदगी के आखिरी तीन साल (1982-85) गुमनामी बाबा फैजाबाद के राम भवन में रहे. भवन के मालिक शक्ति सिंह ने उनकी तस्वीरों की तस्दीक की है. सिंह का कहा था कि तस्वीर में बोस के माता-पिता के अलावा परिवार के 22 सदस्य भी नजर आ रहे हैं.
बाबा के निधन पर पहुंचे थे नेताजी के परिजन
गुमनामी बाबा के सामानों की जांच के लिए फैजाबाद कलेक्ट्रेट की ओर से बनाई गई प्रशासकीय समिति में शक्ति सिंह भी विशेष तौर पर शामिल किए गए थे. सिंह ने बताया कि 4 फरवरी 1986 में सुभाष चंद्र बोस के भाई की बेटी ललिता बोस राम भवन आई थीं. उन्होंने तब इस तस्वीर में परिवार के लोगों की पहचान की थी.
कई मशहूर लोगों की चिट्ठियां भी मिलीं
गुमनामी बाबा के बक्से से मिले सामानों में पवित्र मोहन राय की चिट्ठियां भी हैं. वह आजाद हिंद फौज की गुप्तचर शाखा के अधिकारी थे. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एमएस गोलवरकर समेत कई जानी मानी हस्तियों की चिट्ठियां भी मिली हैं. इस बक्से में कुछ टेलीग्राम भी पाए गए हैं साथ ही जर्मनी का बना हुआ एक टाइपराइटर भी मिला है. इसके अलावा कई निजी इस्तेमाल की चीजें भी सामने आई.
गुमनामी बाबा के नेताजी होने के दावे
इन चीजों के मिलने के बाद ये दावा किया जा रहा है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर आज भी रहस्य बरकरार है. 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुए विमान हादसे में नेताजी की मृत्यु हो जाने की बात को ही आधिकारिक माना जाता रहा है. हालांकि, इस पर यकीन नहीं करने वालों की संख्या भी कम नहीं है.