
चुनावों की आहट के साथ ही यूपी में 'आया राम-गया राम' का खेल शुरू हो गया है. इस खेल में तमाम दूसरे दलों के नेताओं का नया बसेरा फिलहाल बीजेपी ही दिख रही है. जबकि घाटे की बात करें तो सबसे अधिक नुकसान बीएसपी का हुआ है. बीएसपी के दो बड़े नाम स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक अब बीजेपी के खेमे में हैं. हालांकि मायावती इन्हें रिजेक्टेड माल बता चुकी हैं.
बीजेपी में अबतक दूसरे दलों के 10 वर्तमान और पूर्व विधायक आ चुके हैं. जबकि 20 और विधायकों की लिस्ट पार्टी के पास है. इन्हें एकसाथ पार्टी से जोड़ने की तैयारी थी. लेकिन पार्टी कैडर का बागी मूड भांपते ही इरादा बदला गया और अबधीरे-धीरे इन्हें पार्टी ज्वॉइन करवाया जाएगा.
इसी मूड को भांपते हुए प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने हाल ही कहा कि बाहर से आने वाले नेताओं में 30 से ज्यादा लोगों को टिकट नहीं दिया जाएगा. लेकिन जितनी मुंह उतनी बातें. पार्टी के भीतर ये चर्चा आम है कि अब पार्टी में दो बड़े मौर्य और दो पाठक नेता नेता हो चुके, ऐसे में अगर यही रफ्तार रही तो सभी बड़े नेताओं के क्लोन यहां दिखाई देंगे.
पुराने कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय नहीं
पार्टी के भीतर मची खलबली पर प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं, 'पुराने कार्यकर्ता के साथ नेतृत्व कोई अन्याय नहीं होने देगा, लेकिन हम नए ले रहे हैं तो क्या नए लोगों की संभानना खत्म कर देगें. जिनकों हम ले रहे हैं उनमें भी असिमित संभावनाए हैं. हमारे कुछ कार्यकर्ता जो कॉन्स्टिट्यूशन विशेष पर काम कर रहे हैं, उनमें भी असीम संभावनाए हैं. दोनों की संभावनाओ को समोच्च बनाते हुए सबके साथ न्याय हो, इस दृष्टि से हम विचार करेंगे.'
दो पाठक और दो मौर्य के जबाब में पाठक ने कहा कि अभी भी तमाम ऐसी संभावनाए हैं. जो भी आने वाले हैं. पार्टी में उनका स्वागत है. सभी मिलकर 265 प्लस का लक्ष्य पूरा करेंगे.
पाठक ने आगे कहा, 'कोई असंतुष्ट नहीं है. हम सब मिलकर काम कर रहे हैं और हम सब मिलकर उस काम को पूरा करेगें. मैंने फिर कहा जो लोग आ रहे हैं उनमें भी संभावनाए तलाशेंगे.
टिकट उनको, जिनके खिलाफ लड़े
नेता चाहे जो कहे, लेकिन बीजेपी के भीतर नए आयातित नेताओं को लेकर एक बेचैनी है जो खुले तौर पर नहीं दिख रही. कई जिलों में अब ये ज्वालामुखी की तरह उबल रहा है. कार्यकर्ताओं को लगता है कि 5 वर्षों तक सड़कों पर लड़ने के लिए वो थे, वहीं अब जब टिकट की बारी आई तो उन्हीं नेताओं के हाथ जा रही है, जिनसे वो लड़ते आए हैं. हालांकि ये ज्वालामुखी अभी शांत है, क्योंकि पार्टी ने अभी टिकट तय नहीं किए हैं.
बाराबंकी में उबाल और इस्तीफे की चेतावनी
दूसरे दलों से आकर बीजेपी ज्वॉइन करने के बाद पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से बाराबंकी बीजेपी में भी उबाल है. बाराबंकी में पार्टी के सक्रिय सदस्य और पार्टी की जिला कार्यकारिणी के पूर्व महामंत्री पंकज निगम कहते हैं, 'बाहर से जो लोग आए उनकों कम से कम पांच साल पार्टी की सेवा बिना किसी लालच के करनी चाहिए. स्वामी प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के आने से पार्टी मजबूत होगी. लेकिन इनको टिकट या कोई बड़ा पद पार्टी को नहीं देना चाहिए. अगर ऐसा होगा तो हम लोग सामूहिक इस्तीफा देंगे.'
सहारानपुर: 'सौतन की तरह हैं दूसरी पार्टी से आए नेता'
सहारनपुर में बीजेपी की पूर्व विधायक व पार्टी किसान मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य शशीबाला पुंडीर ने दूसरी पार्टियों से आ रहे नेताओं को बीजेपी के कार्यकर्ताओं की सौतन बताया. उन्होंने कहा, 'कौन महिला चाहेगी कि उसके घर में कोई सौतन आए. लेकिन अगर पति घर व परिवार को बढ़ाने के लिए सौतन ले भी आता है तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए.'
'हम आजम और अमर की तरह नहीं'
उन्होंने अमर सिंह और आजम खान को सौतन बताते हुए कहा कि हमारी पार्टी में आने वाली सौतनें समाजवादी पार्टी की सौतनों से बहुत अच्छी हैं. वो सपा के अमर सिंह और आजम खान की तरह एक-दूसरे को गाली नहीं देतीं. बीजेपी में सभी को नियम कानून के दायरे में रहना पड़ता है. बीजेपी के पुराने नेताओं का टिकट काटकर दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट देने के बारे में उन्होंने कहा कि यह बहुत बुरा लगता है.
स्वामी प्रसाद मोर्य के विषय में शशीबाला पुंडीर ने कहा कि उन्हें बीजेपी में आने के बाद पार्टी की नीतियों पर चलना होगा. जैसे वह बीएसपी में ऊंची जाती के लोगों के साथ व्यवहार करते थे, अगर उन्होंने ऐसा व्यवहार बीजेपी के कार्यकर्ताओं के साथ किया तो वह बर्दाश्त नहीं होगा और उनका विरोध किया जाएगा. यानी इशारा साफ है कि सहेली बनना है तो सौतन को नीति-नियम अपनाने होंगे.
लेडी दबंग जैसी है छवि
शशीबाला पुंडीर लखनऊ विश्वविद्यालय की दबंग छात्र नेता रही हैं. 1991 में वह बीजेपी में शामिल हुई थीं. गन्ना किसानों की हड़ताल में कई बार जेल भी जा चुकी हैं. 1993-95 में सहारनपुर की देवबंद विधानसभा से विधायक का चुनाव जीतकर विधायक बनीं. इस चुनाव में वह पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीतने वाली विधायक थीं. 2012 के चुनाव में उन्हें फिर से देवबंद से टिकट दिया गया, लेकिन नामांकन से एक दिन पहले उनका देवबंद से टिकट काटकर उन्हे गंगोह का टिकट दिया गया, जहां वह चुनाव हार गईं. सहारनपुर की राजनीति में शशिबाला पुंडीर को एक दबंग नेता के रूप में देखा जाता है.
बाहरी बनाम भीतरी की रस्साकसी
बाहरी बनाम भीतरी के कारण जितना रेस्पॉन्स स्वामी प्रसाद मौर्य को बीजेपी के कार्यकर्ताओं से मिलना चाहिए, वो नहीं मिल रहा. पिछले हफ्ते मेरठ में एक ही दिन स्वामी प्रसाद मौर्य और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर थे. लेकिन बीजेपी के दोनों कार्यक्रम में एक में खचाखच भीड़ रही, जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम में कुर्सियां खाली रहीं.
मेरठ में मौर्य के कार्यक्रम से नदारद रहे नेता
बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य पिछले दिनों जब मेरठ पहुंचे तो तय समय के मुकाबले घंटों देर हो चुकी थी. लिहाजा, रैली स्थल पर मौर्य को सुनने वाले अधिकतर लोग जा चुके थे. कुर्सियां खाली पड़ी थीं और बीजेपी के स्थानीय नेता भी सभा से नदारद नजर आए.
मेरठ में सबसे बड़ी बात ये दिखी कि मेरठ मंडल के बीजेपी नेताओं ने कार्यक्रम से किनारा किया हुआ था. पहले दिन से ही मेरठ में सूचना एवं प्रसारण केंद्रीय राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर मौजूद थे. एक दिन में दो-दो नेताओं के मेरठ में प्रोग्राम और दोनों को एक दूसरे की जानकारी नहीं थी. यहां तक कि स्वामी से मिलने तक के लिए बीजेपी के नेता नहीं पहुंचे.
बहरहाल बीजेपी भले ही इस बात से उत्साहित हो कि उनकी पार्टी में आने वालों ने पार्टी दफ्तर के बाहर लाइन लगा रखी है, लेकिन बीजेपी को बिहार की तरह का खतरा यहां भी मंडराता दिख रहा है कि अगर टिकट दावेदारों की तादात काफी हो गई, तो उसे हराने वालों की फेहरिस्त भी लंबी हो जाएगी.