
शनिवार को लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह का मकसद था पार्टी के 25 साल पूरे होने का उत्सव मनाना. इस उत्सव में लाखों लोगों की भीड़ जुटी, पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा, अजीत सिंह, अभय चौटाला, लालू यादव, शरद यादव और राम जेठमलानी जैसे नेता भी जुटे, लेकिन रजत जयंती समारोह चाचा-भतीजे के बीच सुलह कराने की पंचायत में तब्दील हो गया.
सुलह के लिए तमाम नेताओं की नसीहत का ज्यादा कुछ असर होता नहीं दिखा. लालू यादव के कहने पर अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के पैर तो छू लिए लेकिन उस वक्त भी दोनों के हाथों में तलवारे चमक रही थी, जो मंच पर उन्हें भेंट की गई थी.
चाचा शिवपाल यादव अपने मन की भड़ास खूब निकाली और कहा कि पार्टी को यहां तक लाने में उनकी कुर्बानी और उनके त्याग का कोई मुकाबला नहीं है. भावुक होते हुए शिवपाल यादव ने यह भी कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं है और जरूरत पड़ी तो अपना खून देने को तैयार हैं. यह भी कह दिया कि अखिलेश यादव की सरकार में कुछ चापलूस लोग सत्ता का मजा उठा रहे हैं, जबकि तमाम संघर्ष करने वाले लोगों को कुछ नहीं मिला.
जब अखिलेश यादव की बोलने की बारी आई, तो उन्होंने नपे-तुले शब्दों में ही सही, लेकिन जवाब दे दिया. शिवपाल यादव का नाम लिए बिना कह दिया कि कुछ लोगों को समझ तो आएगी लेकिन तब तक पार्टी लुट चुकी होगी. शिवपाल यादव ने मंत्रिमंडल से बर्खास्त होने पर तंज कसते हुए कहा था की उन्हें चाहे जितनी बार बर्खास्त किया जाए और उनका चाहे जितना अपमान किया जाए वह पार्टी के लिए काम करते रहेंगे.
अखिलेश यादव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि समाजवादी लोग उन्हें तलवार भेंट तो करते हैं लेकिन उम्मीद करते हैं कि तलवार चले नहीं. यह कैसे हो सकता है. खचाखच भरे पंडाल के बीच भी नेताओं की गुटबाजी साफ दिख रही थी. शिवपाल और अखिलेश के समर्थक अलग-अलग झुंड बनाकर बैठे थे और अपने नेता का झंडा बुलंद करने के लिए नारेबाजी का मुकाबला कर रहे थे. आलम यह था कि जब शिवपाल यादव कहते थे वह पार्टी के लिए कुर्बानी देने को तैयार हैं, तो अखिलेश यादव के समर्थक समर्थक नारे लगाते थे, 'अखिलेश भईया तेरे नाम यह जवानी है कुर्बान'.
अखिलेश के नाम पर ताली बजाने वाले और नारे लगाने वालों को तो शिवपाल नहीं रोक पा रहे थे, लेकिन मंच पर अपनी धौंस बनाए रखने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. जब माइक पर अखिलेश के राज्यमंत्री जावेद आब्दी को मौका मिला, तो उन्होंने बुलंद आवाज में अखिलेश यादव की शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर दिया. जब भीड़ ने खूब तालियां बजाना शुरू किया, तो चाचा शिवपाल इस कदर लाल-पीले हुए कि जावेद आब्दी को धक्का देकर हटा दिया और माइक पर आकर समर्थकों से अनुशासन में रहने की डांट लगा दी.
देवेगौड़ा, लालू यादव से लेकर अजीत सिंह सबने समाजवादी पार्टी को एकजुट होकर सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबला करने की नसीहत दी. यह भी कहा कि नेता जी के नेतृत्व में सब लोग साथ गठबंधन में आने को तैयार हैं ताकि बीजेपी को यूपी पर झंडा फहराने से रोका जा सके. लेकिन जब अंत में मुलायम सिंह यादव बोलने आए, तो परिवार और पार्टी में मचे घमासान के बजाए अतीत के गलियारों में अपनी पुरानी यादों के साथ भटकते हुए दिखे. पार्टी के सामने मंडरा रहे संकट के बजाय उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया और राज नारायण से लेकर समाजवादी नेताओं के साथ अपने अनुभव की ज्यादा चर्चा की.
दो दिनों पहले रथयात्रा में अखिलेश यादव ने अपनी लोकप्रियता दिखाई थी, तो रजत जयंती समारोह में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर शिवपाल यादव ने अपनी ताकत दिखाई. भीड़ तो लाख से ऊपर की आई, लेकिन पार्टी में सुलह होने की राह किसी को नहीं दिखी. लोगों को दिखा तो सिर्फ इतना कि लखनऊ के सबसे विशाल और सबसे खूबसूरत जनेश्वर मिश्र पार्क में रैली खत्म होने के बाद हर तरफ गंदगी का अंबार था. रौंदे गए पौधे शायद यही सोच रहे होंगे कि पार्टी के घमासान की कीमत उन्हें क्यों चुकानी पड़ रही है.