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उत्तराखंड में गौहत्या करने वालों की अब खैर नहीं

देश के कई हिस्सों में गौहत्या करने वाले और गौहत्या रोकने के नाम पर तथाकथित गौरक्षक दलों के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले, दोनों ही तरह के लोगों ने समाज में एक भय का माहौल बना दिया है, जिसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत कई प्रदेशों में महसूस की गई है.

गौहत्या पर पाबंदी गौहत्या पर पाबंदी
सुरभि गुप्ता
  • देहरादून,
  • 23 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 2:28 AM IST

उत्तर प्रदेश के तर्ज पर उत्तराखंड में भी एक ऐसी टीम का गठन किया गया है, जो सिर्फ गौहत्या और उसके नाम पर की जाने वाली गुंडागर्दी को रोकने का काम करेगी. दोनों ही मंडलों में ग्यारह सदस्यीय टीम रहेगी, जिनमें एक इंस्पेक्टर, दो सब इंस्पेक्टर, एक हेड कांस्टेबल नागरिक पुलिस, 1 हेड कांस्टेबल लोकल इंटेलिजेंस और 6 कॉन्स्टेबल होंगे.

उत्तराखंड सरकार ने गौवध रोकने के लिए प्रदेश के दोनों मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल में एक पुलिस स्क्वाड का गठन किया है, जिस पर तुरंत अमल करते हुए पुलिस विभाग ने दो टीमें बना दी हैं. इसमें गढ़वाल मंडल का ऑफिस हरिद्वार व कुमाऊं मंडल का ऑफिस उधम सिंह नगर में बनाया गया है. इस टीम का नेतृत्व इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी या उससे ऊपर के अधिकारी के हाथों में रहेगी और उनको निर्देश देने की कमान सीधे डीआईजी रेंज को सौंपी गई है. टीम को साफतौर पर ये निर्देश मुख्यमंत्री के द्वारा दिए गए हैं कि चाहे गौवध करने वाले हों या फिर गौहत्या रोकने के नाम पर कानून अपने हाथ में लेने वाले तथाकथित गौरक्षक हों, सभी से सख्ती के साथ निपटा जाए और किसी के भी दवाब में आए बिना काम किया जाए.

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देश के कई हिस्सों में गौहत्या करने वाले और गौहत्या रोकने के नाम पर तथाकथित गौरक्षक दलों के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले, दोनों ही तरह के लोगों ने समाज में एक भय का माहौल बना दिया है, जिसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत कई प्रदेशों में महसूस की गई है.

गौवंश संरक्षण का नियम उत्तराखंड में 2007 में बना. हालांकि पूरे देश की बात की जाए तो पशु क्रूरता को लेकर 1860 से ही ऐसा नियम लागू है, पर उत्तराखंड में इस निष्क्रिय पड़े नियम का जिम्मा त्रिवेंद्र सरकार ने ADG अशोक कुमार को दिया है, जिनकी देखरेख में दोनों ही मंडलों में इसको प्रभावी बनाए जाने के निर्देश हैं. पुलिस ने कहा है कि जो लोग गौवध रोकना चाहते हैं, वो खुद कानून अपने हाथ में ना लें बल्कि तुरंत पुलिस को जानकारी दें.

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ही 2007 में पशुपालन मंत्री रहते हुए इस नियम को प्रदेश में लागू करवाया था. सीएम का मानना है कि अगर गठित की गई टीम को बिना दबाव काम करने का मौका मिला, तो गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा.

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