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गंगा नदी के ओरिजिनेटिंग पॉइंट भी सीवर के प्रदूषित पानी का शिकार... NGT में पेश रिपोर्ट में खुलासा

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने हस्तक्षेप करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर गौर किया, जिन्होंने राज्य की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री में 1 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से एकत्र किए गए नमूने में 540/100 मिलीलीटर की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) वाला फेकल कोलीफॉर्म पाया गया था.

गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण पर चौंकाने वाला खुलासा (फोटो- Getty) गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण पर चौंकाने वाला खुलासा (फोटो- Getty)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 3:20 AM IST

गंगा में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को जानकारी दी गई कि गंगा का ओरिजिनेटिंग पॉइंट भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) डिस्चार्ज से प्रदूषित है. उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के बारे में कार्यवाही के दौरान यह दलील दी गई. एनजीटी ने पहले राज्य और अन्य से रिपोर्ट मांगी थी. 

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पीटीआई के मुताबिक एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने हस्तक्षेप करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर गौर किया, जिन्होंने राज्य की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री में 1 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से एकत्र किए गए नमूने में 540/100 मिलीलीटर की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) वाला फेकल कोलीफॉर्म पाया गया था. 

फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्म जीवों से होने वाले प्रदूषण को दर्शाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के मुताबिक, "संगठित आउटडोर स्नान" के लिए 500/100 मिलीलीटर से कम एमपीएन होना चाहिए.

बता दें कि 5 नवंबर को पारित आदेश में एनजीटी पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे, जिन्होंने कहा था, "उन्होंने (वकील) प्रस्तुत किया है कि पवित्र नदी गंगा का ओरिजिनेटिंग पॉइंट भी एसटीपी डिस्चार्ज से प्रदूषित है."

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सही से काम नहीं कर रहे एसटीपी

एनजीटी ने एसटीपी के मानदंडों और कार्यक्षमता के अनुपालन के बारे में सीपीसीबी की रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया और कहा कि 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 काम कर रहे थे और 48 एफसी स्तर, जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) हटाने की दक्षता सीमा और उपयोग क्षमता सहित मानदंडों का अनुपालन नहीं कर रहे थे.

राज्य की रिपोर्ट की तुलना सीपीसीबी की रिपोर्ट से करते हुए एनजीटी ने कहा, "हमें लगता है कि उत्तराखंड राज्य द्वारा अपनी नवीनतम रिपोर्ट में किए गए खुलासे संदिग्ध हैं. इस प्रकार, हम मुख्य सचिव से मामले की उचित जांच करने और उचित अनुपालन के साथ उचित स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने की मांग करते हैं." 

न्यायाधिकरण ने एसटीपी के बारे में राज्य की रिपोर्ट में कमियों को भी नोट किया. इसमें कहा गया, "कई एसटीपी या तो कम उपयोग में हैं (देहरादून, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली) या अपनी डिजाइन क्षमता (हरिद्वार, टिहरी) के मुकाबले अधिक मात्रा में सीवेज प्राप्त कर रहे हैं और बाढ़/बैकफ्लो के दौरान एसटीपी के जलमग्न होने का कोई उल्लेख नहीं है."

एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

राज्यों में नालों की स्थिति के बारे में एनजीटी ने कहा कि 63 अप्रयुक्त नाले सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में Untreated सीवेज वेस्ट छोड़ रहे हैं. एनजीटी ने कहा, "हमने यह भी पाया है कि उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर, बाजपुर और किच्छा कस्बों में सभी नालों का उपयोग नहीं किया गया है. राज्य की अगली रिपोर्ट में समयबद्ध तरीके से की जाने वाली कार्रवाई को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी सीवेज (बीओडी) लोड और एफसी गंगा या उसकी सहायक नदियों में न मिले." 

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एनजीटी में अब मामले की आगे की कार्यवाही 13 फरवरी को होगी.

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