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जानिए क्यों इस बीमारी से पीड़ित लोग कर लेते हैं खुदकुशी

ऐसी परिस्थितियों में मरीजों के मानवाधिकारों को भी ध्यान में रखना जरूरी हो जाता है.

फोटो: Getty फोटो: Getty
रोहित
  • ,
  • 28 मई 2018,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

मानसिक बीमारियों के सबसे गंभीर विकार सिजोफ्रेनिया का इलाज नहीं होने पर करीब 25 प्रतिशत मरीजों के खुदकुशी कर लेने का खतरा होता है. भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं. मनोचिकित्सकों ने इस बात की जानकारी दी. मनोचिकित्सों ने बताया कि सिजोफ्रेनिया के इलाज से वंचित करीब 90 प्रतिशत रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं. करीब एक अरब की आबादी वाले हमारे देश भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं, जिसके कारण कुल मिलाकर ढाई करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं. यह बीमारी प्रति एक हजार वयस्कों में से करीब 10 लोगों और ज्यादातर 16-45 आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करती है.

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नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ 'ह्युमन बिहेवियर एंड एप्लाइड साइंसेज संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ. निमेश जी. देसाई ने कहा, "सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है लेकिन अनुसंधानों की मदद से इसके उपचार में काफी प्रगति हो रही है. उन्होंने सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि डॉक्टरों और देखभाल करने वालों को रोग के कानूनी पहलुओं से भी अवगत कराया जाना चाहिए."

डॉ. देसाई ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी नये अधिनियम (मानसिक हेल्थकेयर अधिनियम, 2017) को संभवत अगले महीने से लागू किया जाना है और इसके कारण सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों से संबंधित कानूनी ढांचे और जटिल बन जाएंगे. ऐसी परिस्थितियों में मरीजों के मानवाधिकारों को भी ध्यान में रखना जरूरी हो जाता है.

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वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अवनी तिवारी ने कहा कि "आत्महत्या के जोखिम का आकलन करने में सुरक्षा संबंधी कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए. किसी व्यक्ति में एक बार इनके लक्षण ध्यान में आने पर, इसकी पहचान के लिए व्यक्ति को मनोचिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए. इस बीमारी का इलाज जितना जल्दी होगा उपचार की प्रतिक्रिया भी बेहतर होगी."

उन्होंने कहा, "सिजोफ्रेनिया का इलाज संभव है, इसलिए इसके इलाज में देर नहीं करनी चाहिए. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उसके सामाजिक जीवन में वापस लाने के लिए मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की टीम परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत करती है."

नई दिल्ली स्थित कॉस्मोस इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज (सीआईएमबीएस) में कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, "सिजोफ्रेनिया क्यों होता है और क्या इसके लिए पर्यावरणीय और आनुवांशिक कारण भी जिम्मेदार हैं, इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं हो पाई है. लेकिन, जितनी जल्दी संभव हो, इसका उचित इलाज कराना बहुत महत्वपूर्ण है. यह एक आम मिथक है कि सिजोफ्रेनिया का इलाज नहीं किया जा सकता, जबकि वास्तविकता यह है कि यह ठीक हो सकता है."

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मानस गंगा सेंटर (नोएडा) के निदेशक डॉ. मनु तिवारी ने कहा कि जब हमने सिजोफ्रेनिया के रोगियों के परिवारों का रोगियों के देखभाल करने वालों का रोगियों के प्रति दृष्टिकोण के बारे में सर्वेक्षण किया, तो हमने यह पाया कि देखभाल करने वालों में मरीज को लेकर भेदभाव पूर्ण टिप्पणियां करने और शत्रुता की भावना अधिक थी.

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डॉ. मनु तिवारी ने कहा, "मानसिक बीमारियों और इन बीमारियों से जुड़े लक्षणों के बारे में आम लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने से समाज में मरीजों के लिए अधिक स्वीकृति बनाने में मदद मिल सकती है. लोगों को यह समझना चाहिए कि मानसिक बीमारियों वाले मरीजों के प्रति नकारात्मक टिप्पणी या अस्वीकृति उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और इसलिए इससे बचा जाना चाहिए."

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