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कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न के मामले में महिलाओं को जिस मानसिक तनाव और अपमान से गुजरना पड़ता है, उससे अब उन्हें मुक्ति मिल जाएगी.
सरकार द्वारा जारी नए सख्त दिशा-निर्देशों के अनुसार अब कार्यालयों में यौन उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं की शिकायतों का निपटान 30 दिनों के भीतर ही करना अनिवार्य कर दिया गया है. नये निर्देश कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) द्वारा जारी किए गए हैं.
पीड़िता की सुरक्षा
ज्यादातर मामलों में यह पाया गया है कि कार्यालय में यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने या
शिकायत दर्ज कराने वाली महिलाओं के खिलाफ लोगों का रवैया बदल जाता है. ऐसे में DoPT ने पीड़िता के
हितों की रक्षा को सुनिश्चित करने का निर्देश जारी किया है और अगर महिला के आरोप साबित हो जाते हैं तो यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अगले पांच वर्षों तक पीड़िता प्रतिशोध का शिकार न बने.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का हस्तक्षेप
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून के तहत, जांच समिति को अब 90 दिनों के भीतर ही अपनी रिपोर्ट
देनी होगी.
दरअसल, कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न जैसे मामलों की सुनवाई में होने वाली देरी को
लेकर अक्टूबर 2016 में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने निराशा व्यक्त की थी और कहा था कि
इसमें जल्द ही बदलाव होंगे और महिलाओं की शिकायतों पर समय रहते कार्रवाई होगी.
दोषी के साथ काम करने की नहीं होगी मजबूरी
DoPT के निदेशक मुकेश चतुर्वेदी ने बताया कि नये नियमों के तहत पीड़िता को किसी भी ऐसे व्यक्ति
के साथ काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिस पर उसने आरोप लगाए हैं या जहां उसका
उत्पीड़न हो सकता है.
यौन उत्पीड़न मामलों की रिपोर्टिंग बेहद कम
यह गौर करने लायक बात है कि यौन उत्पीड़न मामलों का खुलासा कम ही किया जाता है. साल 2015
में सिर्फ आठ विभागों ने यौन उत्पीड़न पर आधारित रिपोर्ट जारी किए, जिसमें एटोमिक एनर्जी विभाग से सबसे
ज्यादा 15 मामलों की रिपोर्ट दी गई. नये निर्देशों के तहत अब ऐसे मामलों और उन पर की गई कार्रवाई पर
आधारित सालाना रिपोर्ट विभागों को जमा करनी होगी.