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पुस्तक अंश- मैं हिंदू क्यों हूं: शशि थरूर के शब्दों में हिंदू और हिंदूवाद

कांग्रेस नेता शशि थरूर की पुस्तक 'Why I AM A HINDU' अंग्रेजी में काफी चर्चित रही. अब इसका हिंदी में अनुवाद किया गया है. साहित्य आजतक के पाठकों के लिए इस पुस्तक का खास अंश.

पुस्तक 'मैं हिंदू क्यों हूं' पुस्तक 'मैं हिंदू क्यों हूं'
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:54 PM IST

लेखक, राजनीतिज्ञ शशि थरूर की पुस्तक 'Why I AM A HINDU' अंग्रेजी में काफी चर्चित रही. हाल ही में युगांक धीर ने इसका हिंदी में अनुवाद किया, जिसे वाणी प्रकाशन ने छापा. यह किताब ‘मैं हिंदू क्यों हूं’ के नाम से छपी है. 365 पृष्ठों की इस किताब का लोकार्पण-समारोह पिछले दिनों दिल्ली में काफी भव्य तौर पर आयोजित हुआ, जिसमें राजधानी के कई जाने-माने साहित्यकार, पत्रकार और राजनेता उपस्थित थे. साहित्य आजतक के पाठकों के लिए इसी पुस्तक का खास अंश.

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पहली चुनौती परिभाषा से जुड़ी हुई थी. ‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ सिर्फ़ एक धर्म तक सीमित नहीं है. फ्रेंच और फ़ारसी समेत बहुत-सी भाषाओं में ‘इण्डियन’ या भारतीय के लिए ‘हिन्दू’ शब्द का प्रयोग किया जाता है. मूलतः ‘हिन्दू’ का अर्थ सिन्धु या ‘इंडस’ नदी के पार के लोगों तक सीमित था. अब यह नदी इस्लामी पाकिस्तान में पड़ती है, जिससे स्थिति और उलझ जाती है. किसी भी भारतीय भाषा में ‘हिन्दू’ शब्द का कोई अस्तित्व नहीं था, जब तक कि विदेशियों द्वारा इस शब्द के प्रयोग ने भारतीयों को आत्म-परिभाषा के लिए एक शब्द नहीं दे दिया. दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू जिस शब्द से ख़ुद को परिभाषित करते हैं वह उनका ख़ुद का गढ़ा हुआ शब्द नहीं है, बल्कि दूसरों से अपनाया गया शब्द है. (कई लोग एक अलग शब्द ‘सनातन धर्म’ का भी प्रयोग करते हैं, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे.)

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इस तरह, ‘हिन्दूवाद’ विदेशियों द्वारा भारत के स्वदेशी धर्म को दिया गया नाम है. इसके दायरे में बहुत-से सिद्धान्त और धार्मिक व्यवहार आते हैं, जो ‘पन्थवाद’ से लेकर ‘अनीश्वरवाद’ तक और ‘अवतारों’ में आस्था से लेकर ‘जातिवाद’ में विश्वास तक फैले हुए हैं, परन्तु इनमें से किसी में भी एक हिन्दू के लिए कोई अनिवार्य मूलमन्त्र नहीं है. हमारे धर्म में कोई भी हठधर्मिता नहीं है.

यह निस्सन्देह एक अनोखी बात है. एक कैथलिक इसलिए कैथलिक होता है क्योंकि वह ईसा को ईश्वर-पुत्र मानता है, जिसने मनुष्यता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया. वह ‘निष्कलंक गर्भधारण’ और ‘विर्जिन मैरी’ में विश्वास रखता है; चर्च में स्वीकारोक्ति देता है; और पोप और पादरी के मार्गदर्शन के अनुसार चलता है. एक मुस्लिम यह विश्वास करता है कि अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है और ‘मुहम्मद’ उसका पैग़म्बर है. एक यहूदी अपने तोराह को मानता है, तो एक पारसी फायर टेम्पल में पूजा करता है. एक सिख गुरुग्रन्थसाहिब को सबसे ऊपर और श्रद्धेय मानता है. हिन्दू धर्म में इनमें से किसी का भी कोई समतुल्य पर्याय नहीं है. एक हिन्दू होने के लिए कोई भी अनिवार्य शर्त नहीं है. और तो और, ईश्वर में विश्वास भी नहीं.

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मैं एक हिन्दू परिवार में पला-बढ़ा. हमारे घर में हमेशा एक पूजा-घर होता था, जहां विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र हमारे पूर्वजों के कुछ पुराने चित्रों के साथ शेल्फ़ और दीवार की शोभा बढ़ाया करते थे. इनके आसपास मेरे श्रद्धालु माता-पिता द्वारा प्रतिदिन जलाई जाने वाली अगरबत्तियों की राख बिखरी रहती थी. मैं पहले किसी पुस्तक में लिख चुका हूं कि अपने पिता को पूजा करते देखते हुए किस तरह मेरे मन में धार्मिकता की भावना उपजनी शुरू हुई थी. हर सुबह, स्नान करने के बाद मेरे पिता कमर में तौलिया लपेटे और अपने गीले बालों में कंघी किये बिना पूजा-घर में मन्त्रोचार किया करते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी मुझे अपने साथ खड़े होने के लिए नहीं कहा. यह इस बात का उदाहरण था कि धर्म के बारे में हिन्दू ‘विचार’ यह था कि यह एक पूर्णतया निजी मामला था. यह पूजा-अर्चना सिर्फ आपके और आपके मनचाहे ईश्वरीय प्रतीक के बीच थी. एक हिन्दू के रूप में मुझे अपना सत्य ख़ुद खोजना था.

# पुस्तक अंशः ‘मैं हिंदू क्यों हूं’, पृष्ठ संख्या 24-26.

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