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साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'आज राष्ट्रवाद का इस्तेमाल चार्जशीट की तरह हो रहा है'

हिन्दी का सबसे बड़ा महोत्सव साहित्य आजतक शुरू हो गया है. ये कार्यक्रम दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन दिन तक चलेगा, यहां हिंदी के कई जाने माने कवि-लेखक हिस्सा लेंगे.

साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन में वरिष्ठ लेखक अखिलेश साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन में वरिष्ठ लेखक अखिलेश
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 3:08 AM IST

'साहित्य आजतक' के हल्लाबोल पर मंच हुए साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन में वरिष्ठ लेखक अखिलेश ने खुलकर बात की. अखिलेश ने देश में चल रही राष्ट्रवाद की बहस के बारे में अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि आज देश में कुछ शक्तियां ऐसी हैं जो राष्ट्रवाद का इस्तेमाल किसी चार्जशीट की तरह कर रही हैं.

'अँधेरा', 'आदमी नहीं टूटता', 'मुक्ति', 'शापग्रस्त', 'अन्वेषण', 'निर्वासन', 'वह जो यथार्थ था' जैसी किताबें लिख चुके अखिलेश ने कहा कि समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो हिंसा पर लिखना पसंद करते हैं.

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उन्होंने कहा कि आज राष्ट्रवाद चार्जशीट के रूप में है, आज तय होता है कि ये राष्ट्रद्रोही है और इसे सजा दो. असली राष्ट्रद्रोह तो ये है कि किसी एक आबादी को खुलकर नहीं जीने दिया जा रहा है.

अखिलेश ने कहा कि एक लेखक राष्ट्र के आइने में अपने साहित्य को रचता है, वह जिस जगह पर रहता है जिस चीज को देखता है उसी को अपनी रचना में व्यक्त है. लेखक की दुनिया में देश बड़ी चीज है, उसके लिए उसका गांव भी देश ही है.

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वरिष्ठ लेखक बोले कि प्रेमचंद ने भी आजादी को लेकर लिखा, लेकिन उन्होंने समाज में जो सताए हुए लोग थे उनकी आवाज को बुलंद किया. जहां पर राष्ट्र का शोर नहीं है, लेकिन लोगों का दर्द है वो साहित्य देश में ज्यादा है. जिन कविताओं में राष्ट्र और राष्ट्रवाद का शोर है, वह दोयम दर्जे की कविताएं मानी जाती हैं.To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com

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