
हिंदी साहित्य के सबसे बड़े कार्यक्रम 'साहित्य आजतक' का आगाज शुक्रवार को हुआ. कार्यक्रम की शुरुआत धमाकेदार रही और लेखकों ने कई मुद्दों पर बहस की. 'हल्ला बोल' मंच पर 'साहित्य का राष्ट्रधर्म' मुद्दे पर चर्चा हुई. जिसमें नंद किशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश जैसे वरिष्ठ लेखक शामिल हुए. इस सेशन का संचालन रोहित सरदाना ने किया.
इसी सेशन में बहस के दौरान केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के डायरेक्टर नंद किशोर पांडेय ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बात की. जब उनसे देश में कई तरह की विचारधाराओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि प्रतिरोध की कविता सिर्फ 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' वाली नहीं है, एक समय में अगर शिवाजी के पक्ष में लिखना भी प्रतिरोध होता था.
नंद किशोर बोले कि साहित्य और कविता की जिंदगी में देश को भूगोल और राष्ट्र को भूगोल-संस्कृति के अर्थ में याद किया है. जिस व्यक्ति को ये लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है तो वह साहित्य के जरिए अपनी मांगों को दुनिया के सामने रखता है.
बता दें कि इस सेशन में नंदकिशोर पांडेय के अलावा ममता कालिया और अखिलेश जैसे बड़े लेखक भी शामिल हुए. इन लेखकों ने भी देश में राष्ट्रवाद, आज के साहित्य, लेखकों के बारे में बात है.
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अंग्रेजी और हिंदी की जानी-मानी कथाकार ममता कालिया ने कहा कि पुराने जमाने के लेखकों की रचनाओं में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी रहती थी, क्योंकि ये तब की मांग थी. तब सभी का मकसद अंग्रेजों को भगाना था, लेकिन अब देश आजाद है. देशभक्ति को अब हम झंडे की तरह उठाकर नहीं चल सकते हैं, कुछ गलत होने का विरोध करना भी राष्ट्रभक्ति ही कहलाता है.
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अंधेरा, आदमी नहीं टूटता जैसी किताबें लिखने वाले वरिष्ठ लेखक अखिलेश ने कहा कि एक लेखक राष्ट्र के आइने में अपने साहित्य को रचता है, वह जिस जगह पर रहता है जिस चीज को देखता है उसी को अपनी रचना में व्यक्त है. लेखक की दुनिया में देश बड़ी चीज है, उसके लिए उसका गांव भी देश ही है.
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