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साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'अब वो समय नहीं जब देशभक्ति को झंडा बनाकर घूमें'

हिन्दी का सबसे बड़ा महोत्सव साहित्य आजतक शुरू हो गया है. ये कार्यक्रम दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में तीन दिन तक चलेगा, यहां हिंदी के कई जाने माने कवि-लेखक हिस्सा लेंगे.

साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश साहित्य का राष्ट्रधर्म सेशन के दौरान नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:56 PM IST

साहित्य, कला और कविता प्रेमियों के मंच 'साहित्य आजतक' का आगाज हो गया है. राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. 'हल्ला बोल' मंच पर 'साहित्य का राष्ट्रधर्म' मुद्दे पर चर्चा हुई. जिसमें नंदकिशोर पांडेय, ममता कालिया और अखिलेश जैसे वरिष्ठ लेखक शामिल हुए. इस सेशन का संचालन रोहित सरदाना ने किया. सेशन में देश के माहौल, आंदोलन और उसके प्रति लेखकों के विचार पर मंथन हुआ.

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'प्रतिरोध की कविता सिर्फ भारत तेरे टुकड़े होंगे वाली नहीं'

केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के डायरेक्टर नंद किशोर पांडेय ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कहा कि राष्ट्रवाद की जरूरत हर समय रहती है, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को अलग-अलग नहीं रख सकते हैं. कुछ लोगों को 'वाद' शब्द से दिक्कत होती है.

उन्होंने कहा कि आज हमारे लिए राष्ट्र ही भूगोल-इतिहास है. रामचंद्र शुक्ल-राम विलास शर्मा जैसे लोगों ने राष्ट्र पर बहुत कुछ लिखा है. राष्ट्र की पहचान के साथ खुद को जो लोग नहीं जोड़ते हैं, उनका साहित्य राष्ट्र परिधि के साहित्य के बाहर का हिस्सा है.

लेखकों द्वारा अलग-अलग धाराओं के लेखन के मुद्दे पर नंद किशोर ने कहा कि प्रतिरोध राष्ट्रीय साहित्य का स्वर है, ये पहले से चलता आ रहा है. हिन्दी की पहली प्रतिरोधी कविता, विद्यापति ने लिखी थी तीर्थलता में, प्रतिरोध पर चंद्रबरदाई और तुलसीदास ने भी लिखा था.

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उन्होंने कहा कि प्रतिरोध की कविता सिर्फ 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' वाली नहीं है, उस समय में अगर शिवाजी के पक्ष में लिखना भी प्रतिरोध होता था. साहित्य और कविता की जिंदगी में देश को भूगोल और राष्ट्र को भूगोल-संस्कृति के अर्थ में याद किया है. जिस व्यक्ति को ये लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है तो वह साहित्य के जरिए अपनी मांगों को दुनिया के सामने रखता है.

'भेड़ियों पर रहम करना, बकरियों पर जुल्म'

अंग्रेजी और हिंदी की जानी-मानी कथाकार ममता कालिया ने कहा कि पुराने जमाने के लेखकों की रचनाओं में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी रहती थी, क्योंकि ये तब की मांग थी. तब सभी का मकसद अंग्रेजों को भगाना था, लेकिन अब देश आजाद है. देशभक्ति को अब हम झंडे की तरह उठाकर नहीं चल सकते हैं, कुछ गलत होने का विरोध करना भी राष्ट्रभक्ति ही कहलाता है.

उन्होंने कहा कि आज देश में कई समस्याएं हैं, इनमें सबसे बड़ी समस्या है कि भीड़ आज न्याय खुद कर रही है. लेखक को इनके प्रति भी सचेत होना पड़ेगा, लेखक परिवर्तन करने वाली भूमिका में होता है. इस बारे में मनोज पांडे ने 'लालच के बारे में खजाना' में कहा है.

ममता ने बताया कि नागार्जुन ने कहा था, ''जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक''. उन्होंने कहा कि राष्ट्र शब्द को किसी पुलिसवाले की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

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उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि बंदूक उठाने वाले के पक्ष में आज तक कोई कहानी नहीं लिखी गई है. लेकिन आज भी कई पत्रिकाएं अलग विचारधाराओं को प्रतिपादित करती हैं. ममता ने कहा कि भेड़ियों पर रहम करना, बकरियों पर जुल्म है, आज आप सभी के लिए एक कोड नहीं बना सकते हैं, हम लेखक अपनी आवाज-कलम सुरक्षित रखना चाहते हैं. कोई ये नहीं निर्धारित नहीं कर सकता है कि लेखक क्या लिखेगा.

उन्होंने कहा कि अगर आज आप रिपोर्ट लिखाने जाएं तो उल्टा दारोगा आपसे पूछता है कि घर में 50,000 रुपये क्यों रखा था. आज नगरी अंधेर है, लेकिन राजा को चौपट नहीं कह सकती हूं.

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वरिष्ठ लेखक बोलीं कि हम राष्ट्र और देश के बीच में खुद को उलझा रहे हैं. राष्ट्र की इज्जत ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि इसमें सिर्फ हिंदू नहीं हैं बल्कि कई धर्म के लोग रहते हैं. हमें अल्पसंख्यकों के राष्ट्रवाद की भी बातें होनी चाहिए. राष्ट्र और राष्ट्र में रहने वालों के प्रति एक जैसा भाव होना चाहिए. आज देश में दो तिहाई लोग असुरक्षा की भावना से रह रहे हैं,

उन्हें लगता है कि कोई उन्हें कभी भी मार सकता है या फिर जेल में डाल सकता है. ममता कालिया ने कहा कि हमें ये तय करना होगा कि हमें सरकारी साहित्य लिखना है या फिर जनता का साहित्य लिखना है. सारे दिन अधिनायक की जय नहीं होनी चाहिए, आप राशन कितना भी खिला दीजिए लेकिन लिखेंगे हम वही जो लिखना चाहते हैं. 

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'आज राष्ट्रवाद चार्जशीट के रूप में है'

अंधेरा, आदमी नहीं टूटता जैसी किताबें लिखने वाले वरिष्ठ लेखक अखिलेश ने कहा कि एक लेखक राष्ट्र के आइने में अपने साहित्य को रचता है, वह जिस जगह पर रहता है जिस चीज को देखता है उसी को अपनी रचना में व्यक्त है. लेखक की दुनिया में देश बड़ी चीज है, उसके लिए उसका गांव भी देश ही है.

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने भी आजादी को लेकर लिखा, लेकिन उन्होंने समाज में जो सताए हुए लोग थे उनकी आवाज को बुलंद किया. जहां पर राष्ट्र का शोर नहीं है, लेकिन लोगों का दर्द है वो साहित्य देश में ज्यादा है. जिन कविताओं में राष्ट्र और राष्ट्रवाद का शोर है, वह दोयम दर्जे की कविताएं मानी जाती हैं.

अखिलेश बोले कि समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो हिंसा पर लिखना पसंद करते हैं. उन्हें पसंद करने वाले लोग भी काफी हैं. उन्होंने कहा कि आज राष्ट्रवाद चार्जशीट के रूप में है, आज तय होता है कि ये राष्ट्रद्रोही है और इसे सजा दो. असली राष्ट्रद्रोह तो ये है कि किसी एक आबादी को खुलकर नहीं जीने दिया जा रहा है.

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