Advertisement

साहित्य आजतक 2018- वडाली ने कव्वाली से बांधा समां

साहित्य आजतक 2018 में सजे मंचों पर साहित्य और कलाप्रेमी शब्द, कला, कविता, संगीत, नाटक, सियासत और संस्कृति से जुड़ी बातों को देखेंगे और सुनेंगे. यहां मौजूद कई हस्तियां जिन्हें अबतक आपने सिर्फ पढ़ा है, या परदे पर देखा है. साहित्य आजतक पर इन हस्तियों से अब आप रूबरू होंगे.

साहित्य आजतक 2018, नई दिल्ली साहित्य आजतक 2018, नई दिल्ली
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST

साहित्य आजतक 2018 के पहले दिन के आखिरी सत्र में मशहूर कव्वाल 'पद्मश्री' पूरनचंद वडाली ने समां बांधा. उनके साथ उनके बेटे  लखविंदर वडाली ने भी कव्वालियां गाईं. दोनों की जोड़ी ने ''...तेरा नाम'' कव्वाली से शुरुआत की.

हल्ला बोल मंच पर पांचवां सत्र टेढ़ी बात

साहित्य आजतक के इस सत्र में देश के जाने-माने व्यंग्यकार शामिल हुए. इनमें आलोक पुराणिक, ज्ञान चतुर्वेदी, अर्चना चतुर्वेदी और प्रेम जनमेजय शामिल हुए. इस सत्र का संचालन संजय सिन्हा ने किया.

Advertisement

इस सत्र के दौरान अर्चना चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्य में महिलाएं कम हैं लेकिन वह पूरी ततपर्ता से डटी हुई हैं. मर्द शिकार पर हैं मेरा पहला संग्रह आया था. अर्चना ने कहा कि कटाक्ष करना ही व्यंग्य है.

ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्य जिगर के पार होने की कला नहीं बल्कि अटक जाने की है. अच्छी रचना वो है जो पढ़ने के बाद भी आपके साथ बनी रहे. व्यंग्य आधा फंसा हुआ तीर है जो जाकर फिर पाठक के सीने में फंस जाए. व्यंग्य टेढ़ा लेखन नहीं है. बल्कि सच टेढ़ा होता है.

प्रेम जन्मय ने कहा कि वह साहित्य के डॉक्टर हैं. जीवन में हर व्यक्ति व्यंग्य का प्रयोग करता है. यहां तक कि न्यायालय भी व्यंग्य का प्रयोग करता है. व्यंग्य एक हथियार है. उसका प्रयोग आप कैसे करते हैं, ये आप पर निर्भर करता है. प्रेम ने कहा कि हमारे पास व्यंग्य का गोदाम है. जयशंकर प्रसाद कहते हैं कि व्यंग्य कटार की तरह जो चुभता है और व्यंग्य एक हथियार है लिहाजा इसका प्रयोग किया जाना चाहिए दुरुपयोग नहीं.

Advertisement

इस सत्र के दौरान आलोक पुराणिक ने कहा कि जिस माहौल में हम रहते हैं, उसमें व्यंग्य हमारे आसपास है, और व्यंगकार का काम बस उसे कैप्चर करना है.

पुराणिक ने कहा कि हाल में विराट कोहली उबर टैक्सी का विज्ञापन करते देखे जा रहे हैं लेकिन सवाल है  कि क्या वह खुद कभी उबर में सफर करेंगे. पुराणिक ने कहा कि टीवी चैनलों पर एक ही बगदादी को 20 बार मार दिया जाता है. पुराणिक के  मुताबिक टीवी चैनलों पर बगदादी मनरेगा बन गया है.

हल्ला बोल मंच पर चौथा सत्र "क्या खो गई हैं किताबें इस इंटरनेट के दौर में?"

साहित्य आजतक 2018 के दूसरे मंच हल्ला बोल के चौथे अहम सत्र क्या खो गई हैं किताबें इंटरनेट के दौर में में गार्गी कॉलेज से वर्णिका मिश्रा, जीसस एंड मेरी कॉलेज से दिव्यांशी भारद्वाज, हंसराज कॉलेज से प्रशांत चौधरी, हिंदू कॉलेज से उत्कर्ष शर्मा और इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर वुमन से श्रावस्ती हलदर ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन सईद अंसारी ने किया.

साहित्य आजतक के सत्र "क्या खो गई हैं किताबें इस इंटरनेट के दौर में?", मे उन युवा छात्रों ने हिस्सा लिया जो साहित्य में दिलचस्पी रखते हैं.

'इंटरनेट कुछ पलों के लिए किताबों को छिपा सकता है लेकिन खत्म नहीं कर सकता'

Advertisement

आज के इस दौर में सारे काम जब मोबाइल फोन से हो रहे हैं ऐसे दौर में जब सारी सूचनाएं इंटरनेट और गूगल पर हैं तो यह सवाल उठता है कि किताबें आखिर गई कहां?

श्रावस्ती हलदर इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज  ने कहा अभी भी लोग किताबें दिलचस्पी रखते हैं. लेकिन इंटरनेट एक माध्यम है जहां लोग अपनी रचना को शेयर कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इंटरनेट किताबों की खुशबू और उसके स्पर्श की जगह नहीं ले सकता.

हिंदू कॉलेज के छात्र उत्कर्ष चौधरी ने कहा कि वे नहीं मानते कि किताबें खत्म होंगी. लेकिन इंटरनेट ने वो तरीका बदल दिया है कि हम किताबों का प्रयोग कैसे करते हैं. उन्होंने कहा यदि एक कवि के नाते मुझे अपनी रचनाएं छपवानी है तो प्रकाशक सोचेगा कि कही ये चलेगी या नहीं. लेकिन वर्डप्रेस और कम्यूनिटी पर अपनी रचनाएं साझा कर सकते और उसपर प्रतिक्रिया पा सकते हैं. 

हंसराज कॉलेज के प्रशांत चौधरी ने कहा कि किताबें कोई मोनोलीथिक कल्चर नहीं है, जब हम समझने की कोशिश करते तो देखते हैं कि इंटरनेट कहीं न कहीं किताबों को प्रमोट ही करता है और वे नहीं मानते कि इंटरनेट किताबों को खत्म कर सकता है. 

प्रशांत चौधरी ने कहा कि कहीं न कहीं इंटरनेट ध्यान भटकाता है, लेकिन लोगों ने इंटरनेट का मतलब सोशल मीडिया तक सीमित कर दिया है. लेकिन ऐसा नहीं है इंटरनेट का मतलब सबकुछ है.

Advertisement

दस्तक दरबार पर चौथा सत्र लोक संगीत

साहित्य आजतक के प्रमुख मंच दस्तक दरबार पर चौथे अहम सत्र लोक संगीत में सिंगर मालिनी अवस्थी ने शिरकत की. इस सत्र  का संचालन श्वेता सिंह ने किया. इस सत्र की शुरुआत मालिनी अवस्थी ने भगवान राम के लिए भजन से की.

लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने लोकगीतों की छटा बिखेरी और अपने गीतों से समां बाध दिया. पद्मश्री से सम्मानित मालिनी अवस्थी ने भगवान राम के भजन 'राम अवध घर आएं' से शुरुआत की. उसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई गाने गए. उनका मानना है कि लोकगीतों को गाने के लिए उसे जीना होता है.

उसके बाद मॉरीशस में भोजपुरी के प्रचार प्रसार, विदेश में भोजपुरी गाने और उनपर किए जाने वाले डांस पर बात की. इस दौरान उन्होंने मंच पर थिरकते हुए एक गाना गाया, जिसके बाद दर्शक भी झूमते नजर आए.

अपने करियर के बारे में बताया कि उन्होंने पांच साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था और उन्होंने मन से ही ये शुरू किया था, क्योंकि उनके परिवार में कोई भी नहीं गाता है. बता दें कि उनके पिता डॉक्टर थे. उन्होंने बताया, ' साल 1975 में जब भारत ने हॉकी वर्ल्ड कप जीता था और उस वक्त ध्यानचंद के बेटे झांसी आए थे. तब मैं 7 साल की थी, तब मैंने पहली बार मंच पर गाना गाया. उसके बाद संगीत नाटक अकादमी में फर्स्ट आई.

Advertisement

हल्ला बोल मंच पर तीसरा सत्र कलम आजाद है तेरी

साहित्य आजतक 2018 के  दूसरे मंच हल्ला बोल पर तीसरा सत्र कलम आजाद है तेरी में उपन्यासकार और लेखक इंदिरा डांगी, उपन्यासकार और लेखक नीलिमा चौहान और उपन्यासकार और लेखक शर्मीला जालान ने किया. इस सत्र का संचालन अंजना ओम कश्यप ने किया.

इस सत्र के दौरान इंदिरा दाँगी से सवाल हुा कि कलम की आजादी का मतलब कहीं बोल्ड और बेलगाम लेखन तो नहीं? इस पर डांगी ने कहा कि सहानुभूति और स्वानभूति में जो फर्क होता है, वही यहां पर भी है. पहले के लेखन और आज के लेखन का ढंग अलग है, लेकिन यह बेलगाम या बोल्ड नहीं हैं. प्रेमचंद्र की नायिका में पीड़ित महिलाओं की बात लिखी जाती है.

कलम आजाद है तेरीः लेखिका बोल्ड होकर लिखती है, तो क्यों होने लगती है बेचैनी?

इस सत्र के  दौरान कहा गया  कि आज कोई जौहर को न्याय संगत नहीं कह सकता है. लेकिन इतिहास में एक समय था जब इसका जमकर महिमामंडन हुआ था. हम उन महिलाओं की कहानी लिखते हैं, जिनको जलाया जाता है, रेप किया जाता था,  मारा जा रहा है, काटा जा रहा है.

इस सत्र के दौरान कहा गया  कि मौजूदा दौर में कलम अथवा लेखन सिर्फ बुद्धिजीवियों तक ही सीमित नहीं है. समाज में  बदलाव के साथ अभिव्यक्ति के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है और लेखन पर आज किसी विशेष का अधिकार नहीं रह गया है.

Advertisement

दस्तक दरबार पर तीसरा सत्र कुछ इश्क किया, कुछ काम किया

आजतक साहित्य 2018 के तीसरे अहम सत्र कुछ इश्क किया, कुछ काम किया में कवि और अभिनेता पीयूष मिश्रा ने शिरकत की. इस सत्र का  संचालन श्वेता सिंह ने किया.

इस सत्र की शुरुआत पीयूष मिश्रा ने अपनी कविता ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है....से किया.

जब फिल्म मैनें प्यार किया में पीयूष मिश्रा के हांथ से निकल गया सलमान खान वाला रोल!

इस सत्र के दौरान पीयूष मिश्रा ने किस्सा सुनाया कि कैसे एनएसडी के दिनों में उन्हें मैंने प्यार किया फिल्म में मुख्य किरदार की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने उस फिल्म को नहीं किया और बाद में वह किरदार सलमान खान को  दे दिया गया.

पीयूष में बताया कि कैसे वह 40 साल की उम्र में मुंबई पहुंचे और 46 साल की  उम्र में उन्हें पहली फिल्म के तौर पर ब्रेक मिला.

हल्ला बोल मंच पर दूसरा सत्र कविता के बहाने

साहित्य आजतक 2018 के दूसरे मंच हल्ला बोल पर दूसरा सत्र कविता के बहाने में कवि मदन कश्यप, कवि अरुण देव और कवि तेजिंदर लूथरा ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन नेहा बाथम ने किया.

इस सत्र में समकालीन काव्य जगत की तीन शख्सियत मदन कश्यप, अरुण देव और तेजेंदर सिंह लूथरा ने अपनी कविताएं पढ़ी साथ ही हिन्दी साहित्य को लेकर दर्शकों के साथ अपने विचार साझा किए.

Advertisement

मदन कश्यप ने बताया क्या है कवि और कविता का राष्ट्रधर्म?

कवि अरुण देव ने सबसे पहले अपनी नई कविताओं से कार्यक्रम का आगाज किया. उन्होंने सोशल मीडिया कैंपेन #MeToo से जुड़ी अपनी नई कविता साझा की, जिसमें स्त्री को लेकर समाज की सोच के बारे में बताया गया है. साथ ही यह कविता पुरुष समाज को चेताती है और स्त्री के लिए समाज के नजरिये पर करारा प्रहार करती है.

पत्रकार और हिन्दी के कवि मदन कश्यप ने कहा कि एक अच्छी कविता कभी झूठ नहीं बोलती और उसपर हमेशा समय का सच दिखाई देता है. उन्होंने समय और समाज की विडंबना पर अपनी कविता संकट सुनाई. साथ ही उन्होंने कहा कि आज आत्याचारों को एक वैश्विक समाज गढ़ने की कोशिश हो रही है, जहां लोगों को उसी के भीतर रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. मदन कश्यप ने समाज की विडंबना पर ही एक कविता उद्धारक पढ़ी.

दस्तक दरबार पर दूसरा सत्र: एक चांद है सर-ए-आसमान

साहित्य आजतक के दूसरे अहम सत्र एक चांद है सर-ए-आसमान में कवि, आलोचक और लेखक शम्स उर रहमान फारूखी और कवि और लेखक प्रेम कुमार नज़र ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन अहमद महफूज़ ने किया.

शम्स उर रहमान फारूकी ने बताया- उर्दू में कैसे है उनकी अलग तनकीद?

इस सत्र के दौरान प्रेम कुमार नज़र ने शम्स उर रहमान फारूखी से गुफ्तगी का आगाज किया. प्रेम कुमार ने कहा कि फारूखी साहेब की हैसियत भी लिटरेरी डिक्टेटर की है. प्रेम कुमार ने कहा कि जब फारूखी साहेब ने साहित्यिक आलोचना शुरू की तब पूरा जमाना हैरान हो गया कि इस तरह की बातें कौन कह रहा है. प्रेम ने कहा कि फारूखी साहेब ने नई दिशा और नई सोच के साथ लिखना शुरू किया.

फारूखी ने कहा कि पहले के जमाने में आलोचना में किसी के लिए कुछ भी कह दिया जाता था. लेकिन क्या किसी ने ये  कहा कि गालिब और मीर में अंतर क्या है? मैनें ये सवाल खड़ा किया. फारूखी ने कहा कि बदलते समय के साथ लिखने और पढ़ने वालों का रिश्ता कमजोर हो जाता है. फारूखी ने कहा कि आमतौर पर आलोचना में उन्हीं शब्दों को घुमा-फिरा कर लगभग एक जैसी चीजे किसी के बारे में कह दिया जाता है और यह आलोचना एक कारोबार बन कर रह गई है.

'राष्ट्र शब्द का इस्तेमाल किसी पुलिसवाले की तरह नहीं करना चाहिए'

फारूखी ने कहा कि पहले लोग आलोचना के लिए शायरों की ऐसी शायरी को बाहर कर देते थे जिसे वह गलत समझते थे. मीर के आलोचकों पर फारूखी ने कहा वे मीर की उन शेरों को देखा ही नहीं जिसमें उन्हें लगा कि गंदगी या गलत बात लिखी गई है. यदि कहीं क्लास पर तंज दिखा तो उसे बाहर कर दिया गया या फिर महिलाओं के लिए कुछ लिखा गया तो उसे गंदगी कहकर बाहर कर दिया गया. लिहाजा फारूखी ने दलील दी कि यदि मीर की आलोचना करनी हो तो मीर को पूरा पढ़ने की जरूरत है.

हल्ला बोल पर पहला सत्र: साहित्य का राष्ट्रधर्म

साहित्य आजतक 2018 के दूसरे अहम मंच हल्ला बोल के पहले सत्र साहित्य का राष्ट्रधर्म में डायरेक्टर, केंद्रीय हिंदी संस्थान नंदकिशोर पांडेय, लेखक ममता कालिया और लेखक अखिलेश ने शिरकत की. इस सत्र का  संचालन रोहित सरदाना ने किया.

साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'प्रतिरोध की कविता सिर्फ भारत तेरे टुकड़े होंगे वाली नहीं

साहित्य का राष्ट्रधर्म: 'अब वो समय नहीं जब देशभक्ति को झंडा बनाकर घूमें'

केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के डायरेक्टर नंद किशोर पांडेय ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कहा कि राष्ट्रवाद की जरूरत हर समय रहती है, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को अलग-अलग नहीं रख सकते हैं. कुछ लोगों को 'वाद' शब्द से दिक्कत होती है.

उन्होंने कहा कि आज हमारे लिए राष्ट्र ही भूगोल-इतिहास है. रामचंद्र शुक्ल-राम विलास शर्मा जैसे लोगों ने राष्ट्र पर बहुत कुछ लिखा है. राष्ट्र की पहचान के साथ खुद को जो लोग नहीं जोड़ते हैं, उनका साहित्य राष्ट्र परिधि के साहित्य के बाहर का हिस्सा है.

'आज नगरी अंधेर है, लेकिन राजा को चौपट नहीं कह सकते'

लेखकों द्वारा अलग-अलग धाराओं के लेखन के मुद्दे पर नंद किशोर ने कहा कि प्रतिरोध राष्ट्रीय साहित्य का स्वर है, ये पहले से चलता आ रहा है. हिन्दी की पहली प्रतिरोधी कविता, विद्यापति ने लिखी थी तीर्थलता में, प्रतिरोध पर चंद्रबरदाई और तुलसीदास ने भी लिखा था.

दस्तक दरबार पर पहला सत्र: सूफी संगीत

साहित्य आजतक के पहले सत्र में सूफी गायक जावेद अली ने शिरकत की. दस्तक दरबार में इस सत्र का संचालन मिनाक्षी कंडवाल ने किया. इस सत्र के दौरान जावेद अली ने अपनी सूफी गायकी से महफिल में समा बांधने का काम किया.

साहित्य आजतक 2018 के मंच पर जावेद अली का 'जश्न-ए-बहारा', 'अली मौला'

स्वागत भाषण: कली पुरी, वाइस चेयरपर्सन, इंडियाटुडे ग्रुप

सरस्वती वंदना के साथ साहित्य आजतक 2018 का शुभारंभ हुआ. साहित्य के इस महाकुंभ के प्रमुख मंच दस्तक दरबार में सरस्वती वंदना हुई. मंच पर  प्रमुख अतिथि के भाषणो सत्र का  संचालन मिनाक्षी कांडवाल ने किया.

सोशल मीडिया के जमाने में अनफॉलो न हो जाए हमारी संस्कृति: कली पुरी

सरस्वती वंदना के साथ साहित्य आजतक 2018 का शुभारंभ हुआ. साहित्य के इस महाकुंभ के प्रमुख मंच दरबार हॉल से स्वागत भाषण हुआ. इंडिया टुडे की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए ये भाषण दिया. मंच पर  प्रमुख अतिथि के भाषणो सत्र का  संचालन मिनाक्षी कांडवाल ने किया.

कली पुरी ने कहा कि साहित्य आजतक 2018 को स्वागत राजधानी दिल्ली के खूबसूरत मौसम ने भी किया. कली ने कहा कि अब साहित्य आजतक का मंच डिजिटल जगत में सालभर आपके बीच रहेगा.

इस साल साहित्य का महाकुंभ दिल्ली के इंडिया गेट स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 16, 17 और 18 नवंबर को आयोजित हो रहा है. इस महाकुंभ को सौ के करीब सत्रों में बांटा गया है और तीन दिनों के दौरान 200 से अधिक विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार, अभिनेता, प्रकाशक, कलाकार, व्यंग्यकार और समीक्षक मंच पर शिरकत करेंगे.

साहित्य आजतक 2018 में सजे मंचों पर साहित्य और कलाप्रेमी शब्द, कला, कविता, संगीत, नाटक, सियासत और संस्कृति से जुड़ी बातों को देखेंगे और सुनेंगे. यहां मौजूद कई हस्तियां जिन्हें अबतक आपने सिर्फ पढ़ा है, या परदे पर देखा है. साहित्य आजतक पर इन हस्तियों से अब आप रूबरू होंगे.

हिंदी समाचार चैनल ‘आजतक’  की ओर से आयोजित साहित्य के इस महाकुंभ का यह तीसरा साल है. पिछले सालों की तरह इस साल भी यह महाकुंभ दिल्ली के इंडिया गेट स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 16, 17 और 18 नवंबर को आयोजित हो रहा है.

तीन दिनों तक इस कार्यक्रम में हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, अवधी, भोजपुरी, पंजाबी साहित्य और कला से जुड़ी बड़ी हस्तियां जुट रही हैं. इसके साथ ही इस साल दूसरी भारतीय भाषाओं और विधाओं के दिग्गजों की बातों का आप आनंद उठा सकें.

कार्यक्रम में हिस्सा लेने के यहां रजिस्टर करें-

तीन दिनों के इस महाकुंभ में अन्नू कपूर, वडाली ब्रदर्स फेम उस्ताद पूरन चंद वडाली जी, उस्ताद राशिद खान, नूरा सिस्टर्स से लेकर शेखर सुमन, दीप्ति नवल, गिन्नी माही, नरेंद्र कोहली से लेकर सुरेंद्र मोहन पाठक, राहत इंदोरी से लेकर डॉ हरिओम पंवार, जयराम रमेश से लेकर मनोज तिवारी शिरकत करेंगे.

पूरा कार्यक्रम यहां देखें

‘साहित्य आज तक’ का यह कार्यक्रम फ्री है, पर इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है. इसके लिए आप ‘आज तक’ और हमारी दूसरी सहयोगी वेबसाइट पर दिए गए लिंक पर जाकर या फिर 7836993366 नंबर पर मिस्ड कॉल करना भर होगा, और आपका पंजीकरण हो जाएगा. तो तैयार हो जाइए साहित्य के इस महाकुंभ से जुड़ने के लिए.

साहित्य आजतक 2018: पहले दिन ये सितारे होंगे शामिल, जानें पूरा कार्यक्रम

To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement