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मकर संक्रांति सिर्फ तिल से बने पकवान खाने और दूसरों की पतंग काटने के लिए नहीं है. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के अलावा सेहत और आम रहन-सहन से भी इसका नाता है तो यह आस्था का केन्द्र भी है. कटाई का मौसम इसी के साथ आता है, लिहाजा इसे किसानों से भी जोड़कर देखा जाता है.
जानें मकर संक्रांति से जुड़ीं 7 ऐसी बातें जो इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व साबित करती हैं -
क्यों है यह नाम
मकर एक राशि है और सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं. इस त्योहार के साथ ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और जिससे इसे यह नाम दिया गया है.
हर साल एक ही तारीख को आता है
यह इकलौता ऐसा त्योहार है जो हर साल एक ही तारीख पर आता है. दरअसल यह सोलर कैलंडर को फॉलो करता है. दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र कैलेंडर (चन्द्रमा के स्थान) के आधार पर होती है. यह साइकल हर आठ साल में एक बार बदलती है और तब यह त्योहार एक दिन बाद मनाया जाता है. कई जगह यह भी गणना की गई है कि 2050 से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा और फिर हर आठ साल में 16 जनवरी को. जानकारी के लिए बता दें कि इस बार भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है.
क्या महत्व है तिल-गुड़ का
मकर संक्रांति पर रसोई में तिल और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है.
इसके पीछे बीती कड़वी बातों को भुलाकर मिठास भरी नई शुरुआत करने की मान्यता
है. अगर वैज्ञानिक आधार की बात करें तो तिल के सेवन से शरीर गर्म रहता है
और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी भी मिलती है.
एक त्योहार, कई नाम
भारत के साथ दक्षिणी एशिया के कई अन्य देशों में भी मकर संक्रांति का
त्योहार मनाया जाता है. अलग-अलग प्रदेशों में इसे अलग-अलग विधियों के साथ
मनाया जाता है. देश के अधिकतर हिस्सों में इसे मकर संक्रांति कहा जता है.
हालांकि तमिलनाडु में इसे पोंगल, गुजरात में उत्तरायन, पंजाब में माघी, असम
में बीहू, और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी कहते हैं.
इस त्योहार को नेपाल, थाइलैंड, मयांमार, कंबोडिया, श्री लंका आदि जगहों पर भी इसे ऐसी श्रद्धा के साथ मनाते हैं.
क्यों उड़ाई जाती है पतंग
मकर संक्रांति का त्योहार सेहत के लिए भी कई तरीके से फायदेमंद है. सुबह-सुबह पतंग उड़ाने के बहाने जो धूप शरीर को लगती है, उससे भरपूर विटामिन डी मिलता है. इसे त्वचा के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है और सर्द हवाओं से होने वाली कई समस्याओं को दूर करने में भी यह मददगार होती है.
तीर्थ की शुरुआत का प्रतीक
देश के कई हिस्सों में मकर संक्रांति के साथ तीर्थ की शुरुआत भी होती है. उत्तर प्रदेश में इसी के साथ कुंभ मेला शुरू होता है तो केरल में शबरीमाल. इस दिन लोग पवित्र नदियों में डुबकी भी लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से सभी पाप धुल जाते हैं.
दिन और रात की बराबर अवधि
वैज्ञानिक तरीके से देखें तो यह सर्दी के मौसम के बीतने का सूचक है और मकर
संक्रांति पर दिन व रात बराबर अवधि के माने जाते हैं. इसके बाद से दिन लंबे
और मौसम में गर्माहट होने लगती है. इसके बाद कटाई या बसंत के मौसम का आगमन
मान लिया जाता है.