25 दिसंबर की तारीख पश्चिमी देशों में रहने वाले लोगों के लिए एक खास दिन होता है. ईसाई धर्म के लोग इसे जीसस के जन्मदिन के रूप में सेलिब्रेट करते हैं. दोनों धर्मों में बड़ी विषमाताएं होने के बावजूद ईसाई धर्म को इस्लाम बड़ी सम्मान की दृष्टि से देखता है.
इस त्योहार का किसी अन्य धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. मुस्लिम समुदाय के
लोग भी क्रिसमस सेलिब्रेट नहीं करते. फिर भी ईसा के प्रति उनकी आस्था साफ
नजर आती है.
मुस्लिम समुदाय में ईसा को ईसाई धर्म का पैगंबर माना जाता है. कुरान में भी ईसा और मैरी के नाम का जिक्र हुआ है. इसके बावजूद ईद और क्रिसमस के त्योहार में बड़ा फर्क है.
अरबी जुबान में जीसस को ही ईसा कहा जाता है. मुस्लिम परिवारों में आज भी लड़कों का नाम ईसा रखा जाता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुरान में उनके नाम का कई बार जिक्र हुआ है. यहां तक कि पैगंबर मोहम्मद से ज्यादा बार उनका नाम लिया गया है.
ये जानना दिलचस्प है कुरान में सिर्फ एक ही महिला के नाम का जिक्र हुआ है और वो महिला ईसा की मां मैरी हैं. वर्जिन मैरी को अरबी जुबान में मरियम भी कहा जाता है.
कुरान में मरियम के नाम का एक पूरा चैप्टर है जिसमें ईसा मसीह के जन्म की कहानी बताई गई है. कई मुस्लिम परिवारों में लड़कियों के नाम भी मरियम रखे जाते हैं. ये नाम ईसा की मां मैरी का ही है.
हालांकि बाइबल में मुहम्मद या इस्लाम शब्द का कहीं भी जिक्र नहीं है. बेल्जियम की एक चर्च में तो 17वीं शताब्दी की मूर्तियां में इस्लाम के पैगम्बर को स्वर्गदूतों के पैरों तले दबा हुआ दिखाया गया है.
हालांकि मौजूदा वक्त में ईसाइयत इस तरह की सोच का समर्थन नहीं करती है. लोग भले ही क्रिसमस सेलिब्रेट न करें, लेकिन ईसाइयों को इस त्योहार की शुभकमानाएं देते हैं और मौका मिलने पर जश्न में शामिल भी होते हैं.