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वाराणसी के इस मंदिर में एक दिन पहले से लग जाती है भक्तों की कतार

यूपी के वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है जिसमें नवरात्रि में भारी भीड़ देखने को मिलती है. भक्त मां के दर्शन के लिए ख‍िंचे चले आते हैं.

मां शैलपुत्री मां शैलपुत्री
स्वाति गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 07 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 9:58 AM IST

यूपी के वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है. पहले नवरात्रि‍ पर मां के इसी स्वरूप का पूजन होता है और इस दिन खासतौर पर इस मंदिर में भक्तों की खूब भीड़ जुटती है.

पूरी होती है हर मुराद
वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री के इस मंदिर की मान्यता है कि पहले नवरात्र में मां शैलपुत्री के दर्शन मात्र से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है. वैसे तो यहां भक्तों का हर दिन तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र में यहां लोग दूर दूर से खींचे चले आते हैं.

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दूर होते हैं वैवाहिक कष्ट
यहां हर रोज मां की पूजा की जाती है लेकिन नवरात्रि में यहां पूजा का खास महत्व है कहा जाता है नवरात्र में मां के दर्शन से शादीशुदा जोड़े के वैवाहिक कष्ट दूर हो जाते हैं इतना ही नहीं यहां नवरात्र के पहले दिन भक्त मां के दर्शन को इतने आतुर रहते हैं कि नवरात्रि के एक दिन पहले से ही मां के भक्त दर्शन के लिए लाइन में लग जाते हैं. तब जाकर वो मां के दर्शन कर पाते हैं.

कैलाश से काशी आई थीं मां शैलपुत्री
वाराणसी के मां शैलपुत्री के इस मंदिर के बारे में एक कथा बहुत ही प्रचलित है. कहा जाता है कि मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं. एक बार की बात है जब माता किसी बात पर भगवान शिव से नाराज हो गई और कैलाश से काशी आ गईं. इसके बाद जब भोलेनाथ उन्हें मनाने आए तो उन्होंने महादेव से आग्रह करते हुए कहा कि यह स्थान उन्हें बेहद प्रिय लगा लग रहा है और वह वहां से जाना नहीं चाहती जिसके बाद से माता यहीं विराजमान हैं. माता के दर्शन को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंग में रंग जाता है.

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तीन बार होती है आरती, चढ़ता है सुहाग का सामान
मां शैलपुत्री के इस मंदिर में दिन में तीन बार आरती होती है और चढ़ावे में इन्हें नारियल के साथ सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है. भगवती दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है. हिमालय के यहां जन्म लेने से उन्हें शैलपुत्री कहा गया. इनका वाहन वृषभ है. उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है. इन्हें पार्वती का स्वरूप भी माना गया है. ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी. इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट दूर हो जाते हैं.

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