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साइंस न्यूज़

भांग खाकर गाय हो सकती है High, तो क्या उसका दूध पीकर आप भी नशे में रह सकते हैं?

aajtak.in
  • वॉशिंगटन,
  • 16 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:12 PM IST
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हरे-हरे मैदानों में जब एकसाथ गायें चरती हैं तो खूबसूरत नजारा दिखता है. ऐसे में अगर किसी गाय की आंखें लाल दिखे. चाल लड़खड़ाती हुई दिखे. वो बार-बार जीभ निकालती हुई दिखे तो समझ जाइए उसने मैदान में उगे भांग या उस प्रजाति का कोई पौधा खा लिया है. जिसके बाद वो हाई हो गई है. यानी नशे में है. वैज्ञानिकों की स्टडी में यह बात सामने आई है कि ऐसे गायों के दूध में भांग के केमिकल की मात्रा हो सकती है. लेकिन क्या इंसानों पर इसका असर होता है? 

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एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है जो गायें चरते समय भांग खा जाती हैं, वो इंसानों की तरह ही नशे में रहती हैं. इसकी वजह से कई देशों में किसान और गाय पालक परेशान हैं कि आसानी से उगने वाली और सस्ती भांग के पौधे कहीं उनके मवेशियों के लिए खतरनाक तो नहीं है. इस बात की भी चिंता जताई जा रही है कि भांग या गांजे में मिलने वाले रसायन कहीं दूध के जरिए इंसानी फूड सप्लाई चेन में न शामिल हो जाए. 

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कोरावलिस स्थित ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के एग्रोनॉमिस्ट सरकेन एट्स ने भांग या गांजा के पत्ते खाने वाली गायों, भेड़ों और मुर्गों के व्यवहार में आने वाले बदलाव की स्टडी की. तीनों मवेशियों के व्यवहार में उन्हें काफी अंतर दिखाई दिया. कैनेबिस सटाइवा (Cannabis sativa) पौधे के तौर पर जाने जाने वाले भांग में टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC) की मात्रा गांजे से कम होती है. यह एक साइकोएक्टिव पदार्थ है, जो इंसान को नशे की हालत में लेकर जाता है. 

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लेकिन, भांग के फूल में कैनाबिडियोल (Cannabidiol) रसायन बहुत ज्यादा होता है. इसकी वजह से बेचैनी, नशे की आदत और नींद न आने की बीमारी भी लग सकती है. भांग के फाइबर का इस्तेमाल कपड़े, जूते, कागज और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बनाने में होता है. पिछले कुछ सालों में भांग की खेती ने तेजी से इजाफा किया है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने गायों को भांग खिलाने की अनुमति अभी नहीं दी है. डर है नशीले रसायन का दूध के जरिए इंसानों के फूड सप्लाई चेन में शामिल होने का. नशे के अलावा इसके कई तरह के नुकसान हो सकते हैं. 

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इसे चेक करने के लिए जर्मन फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर रिस्क एसेसमेंट ने 10 दूध देने वाली गायों को अलग-अलग मात्रा में भांग खिलाई. जिनमें अलग-अलग तीव्रता के कैनाबिनॉयड रसायन मौजूद था. एक हफ्ते चले इस प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने गायों के दूध, खून, मल का सैंपल लेकर उसकी जांच की. साथ ही गायों के व्यवहार पर ज्यादा ध्यान दिया. जिन गायों को कम कैनाबिनॉयड वाला भांग खिलाया गया, उनके व्यवहार में सामान्य गायों की तुलना में थोड़ा बदलाव आया. 

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जिन गायों ने ज्यादा रसायनिक मात्रा वाला भांग खाया. उनके व्यवहार में 86 गुना ज्यादा बदलाव आ गया था. उनकी सांस और दिल की धड़कन धीमी हो गई थी. उन्होंने दूध भी कम दिया. ये ज्यादा जम्हाई ले रही थीं. ज्यादा थूक निकाल रही थीं. अधिक बार जीभ निकाल रही थीं. जिसकी रिपोर्ट शोधकर्ताओं ने Nature Food जर्नल में प्रकाशित करवाई है. कुछ की आंखें लाल हुई पड़ी थीं. कुछ चलते समय लड़खड़ा रही थीं. 

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इन गायों को भांग खिलाना बंद कर दिया गया. लेकिन कुछ दिन बाद भी इनके दूध में THC और कैनाबिनॉयड की मात्रा पाई गई. हालांकि ये बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है कि दूध में मिले भांग के रसायनों का असर इंसानों पर क्या होगा. इससे इंसानों के खान-पान पर कितना खतरा पैदा हो सकता है. सेहत संबंधी नुकसान कितना हो सकता है. इसके बारे में फिलहाल स्टडी नहीं की गई है. 
 

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अगर भांग सुरक्षित पाई जाती है तो मवेशियों को पालने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर होगी. क्योंकि भांग कहीं भी उगता है. सस्ता मिलता है. सामान्य चारों की तुलना में वैकल्पिक चारा बन सकता है. सरकेन एट्स ने कहा कि जरूरी नहीं है कि गायों को भांग मिला चारा खिलाया जाए. लेकिन भेड़ जैसे मवेशियों को तो खिलाया जा सकता है. ताकि दूध की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता पर असर न पड़े. 

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